भारत में सैकड़ों टन अनाज हर साल गोदामों में बेकार हो जाता है। खेत से लेकर खलिहान तक और घर से लेकर गोदाम तक अनाजों के संरक्षण और उसे इस्तेमाल लायक बनाने का हुनर एग्रो कैमिकल एंड पेस्ट कंट्रोल बखूबी सिखाता है। यह एक ऐसा कोर्स है, जिसे करने के बाद छात्र उत्पादन के समय से लेकर खलिहान, गोदाम और किसानों के घरों में फसलों व अनाजों के रखरखाव की तरकीब जानता है। इसके लिए उसे अलग से ट्रेनिंग भी लेनी पड़ती है। स्पेशलाइज्ड कोर्स के रूप में इस कोर्स के तहत छात्रों को कीट की पहचान व उससे बचाव की अलग-अलग विधियों से भी रूबरू कराया जाता है। साथ ही प्रदूषण पर कैसे लगाम लगाई जाए, इस बारे में भी उसे हर तरह की जानकारी दी जाती है। देश में इस तरह की जरूरतों को पूरा करने के लिए आज कई विश्वविद्यालयों में एग्रो कैमिकल एंड पेस्ट कंट्रोल की पढ़ाई होती है। दिल्ली विश्वविद्यालय में स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज में यह स्पेशलाइज्ड कोर्स के रूप में चल रहा है। कोर्स की रूपरेखा : बीएससी इन एग्रो कैमिकल एंड पेस्ट कंट्रोल को आमतौर पर एप्लाइड लाइफ साइंस के गिना जाता है। इसमें पहले साल में छात्रों के पेपर साइंस के अन्य कोर्सो की तरह ही कॉमन होते हैं, जिनमें छात्र रसायनशास्त्र, बायोलॉजी, गणित व भौतिकी आदि के बारे में पढ़ते हैं। दूसरे साल से वे पेस्ट यानी कीट से संबंधित चीजों को पढ़ते हैं। श्रद्धानंद कॉलेज के शिक्षक एसबी त्यागी के मुताबिक पहले साल के बाद अगले दो सालों में छात्रों को पेस्ट की पहचान व उस पर नियंत्रण कैसे करें, इसकी जानकारी दी जाती है। खेत, गोदाम, स्टोर व आवासीय जगहों पर रखे गये अनाजों को नुकसान से बचाने के रासायनिक उपचार बताये जाते हैं। उसके बाद छात्रों को इस्तेमाल में लाई जाने वाली विभिन्न तरह की खादों के बारे में जानकारी दी जाती है। उन्हें फंगिसाइड यानी फफूंदनाशी चीजों से अवगत कराया जाता है। फसलों में जगह-जगह उग आए जंगली पौधे व अवांछित पौधों को नष्ट करने की विधि बताई जाती है। इन सबके बाद पौधे का उत्पादन, उसका विकास कैसे हो, इसकी जानकारी दी जाती है। आखिरी साल में इस्तेमाल में लाए जाने वाले विभिन्न कैमिकल्स से छात्रों को रूबरू कराते हैं। उसकी पहचान, उसका पेड़ों के अंदर इस्तेमाल कैसे करें, इस बारे में छात्र सीखते हैं। छात्र कैमिकल्स के विश्लेषण की विधि, उसका फॉम्यरूलेशन ठीक बना है कि नहीं, इन सबके बारे में इस कोर्स में पढ़ते व जानते हैं। एक और बात यह कि कैमिकल्स का इस्तेमाल कैसे हो, ताकि प्रदूषण न फैले, इस बारे में भी इस कोर्स के जरिए छात्रों को जानकारी दी जाती है। छात्र तीन साल के अंदर थ्योरी और प्रैक्टिकल, दोनों से जुड़े पेपर पढ़ते हैं। छात्रों को कोर्स के दौरान फील्ड सर्वे व पेस्टिसाइड फॉम्यरूलेशन भी दिखाने ले जाते हैं। त्यागी के मुताबिक इस कोर्स की पढ़ाई दिल्ली में इस कॉलेज के अलावा कहीं और नहीं होती। पूसा स्थित इंस्टीटय़ूट में भी इस तरह की जानकारी दी जाती है, लेकिन कोर्स दूसरा है। रोजगार के रास्ते : कोर्स को करने के बाद बहुत सारे छात्र एमएससी करते हैं। कुछ उसके बाद रिसर्च के क्षेत्र में चले जाते हैं। स्नातक के बाद बहुत सारे छात्रों की मांग उन उद्योगों में होती है, जहां पेस्टिसाइड्स बनते हैं। आज इससे जुड़े उद्योग मुम्बई, गुड़गांव, उदयपुर, बैंगलोर, केरल आदि जगहों पर काफी हैं। अनुसंधान के लिए छात्र पेस्टिसाइड्स संबंधित कंपनियों में जाते हैं। (आनंद कुमार,हिंदुस्तान,दिल्ली,7.9.2010)
दाखिला : कोर्स में दाखिला हर साल जून-जुलाई महीने में 12वीं की मेरिट के आधार पर होता है। आवेदन के बाद कटऑफ सूची निकाल कर कॉलेज दाखिला देता है। आवेदक बारहवीं कक्षा में भौतिकी, रसायनशास्त्र, बायोलॉजी व किसी भाषा के साथ उत्तीर्ण होना चाहिए।
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15 सितंबर 2010
डीयू में बनें फसलों के डॉक्टर
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