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10 सितंबर 2010

अमरीकी चाल के कारण लाखों भारतीयों का रोजगार खतरे में। इधर भारत में अमरीकी कंपनियों के मज़े

दुनिया भर में वैश्वीकरण व मुक्त बाजार का नारा लगाने वाला अमेरिका अब आर्थिक संरक्षणवाद के रास्ते पर निकल पड़ा है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन कंपनियों को टैक्स में छूट देने से इनकार कर दिया है जो आउटसोर्सिंग के जरिये देश से बाहर रोजगार भेज रही हैं। ओबामा के इस कदम पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सड़क परिवहन मंत्री कमलनाथ ने कहा कि आउटसोर्सिंग एक कारोबारी मसला है, इसकी अनुमति देकर अमेरिकी सरकार भारत पर कोई एहसान नहीं कर रही है। इसी माह वाशिंगटन में भारत-अमेरिका की उच्चस्तरीय ट्रेड पॉलिसी फोरम (टीपीएफ) की बैठक होने वाली है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कहा, यह मसला निश्चित रूप से हमारे एजेंडे पर होगा। मैं इसे टीपीएफ की बैठक में उठाउंगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति की नई नीति से विप्रो व इंफोसिस जैसी कंपनियों के कामकाज पर नकारात्मक असर पड़ेगा। यदि ओबामा ने नई नीति लागू कर दी तो लाखों भारतीयों का रोजगार खतरे में पड़ जाएगा। दिलचस्प यह है कि अमेरिकी वाणिज्य विभाग के प्रतिनिधि वर्षों से भारत से यह मांग करते रहे हैं कि वह अनाज की सरकारी खरीद की नीति छोड़े क्योंकि इससे अनाज के मुक्त व्यापार पर असर पड़ रहा है।

अमेरिकी राज्य ओहयो ने बुधवार को घोषणा की थी कि वहां से संचालित होने वाली किसी भी कंपनी को अपना काम किसी दूसरे देश में भेजने की इजाजत नहीं होगी। इस निर्णय से विप्रो पर सीधा असर पड़ेगा क्योंकि ओहयो की कई निजी कंपनियों ने कई तरह के काम विप्रो से आउटसोर्स किए हैं। भारत की साफ्टवेयर कंपनियों को आशंका है कि अमेरिका के अन्य राज्य भी ओहयो के रास्ते पर चल पड़ेंगे।

यह तब हो रहा है, जब भारत सरकार ने अमेरिकी परमाणु ऊर्जा कंपनियों के लिए दरवाजे पूरी तरह खोल दिए हैं। अमेरिका के लिए यह दस अरब डॉलर का बाजार होगा। इंफोसिस के वरिष्ठ अधिकारी मोहनदास पई ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से अनुरोध किया है कि नवंबर में जब राष्ट्रपति ओबामा भारत आएं तो आउटसोर्सिंग का मुद्दा मजबूती से उठाया जाए। मनमोहन सरकार के कुछ मंत्रियों का यह भी सुझाव है कि यदि अमेरिका आउटसोर्सिंग रोकने की नीति लागू करता है तो भारत को भी जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए। पिछले दिनों भारत ने अमेरिकी कंपनियों से कई अरब डालर के सैनिक साजोसामान खरीदे थे। यह देखा गया है कि जब भी अमेरिका में चुनाव आते हैं तो आउटसोर्सिंग की बात उठाई जाती है। लेकिन इस बार यह मुद्दा अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ से उठा है। इस मामले में भारत विश्व व्यापार संगठन में अमेरिका के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकता है। अमेरिका की माइक्रोसॉफ्ट व गूगल जैसी बड़ी कंपनियां आउटसोर्सिंग पर किसी भी तरह की रोक के खिलाफ हैं। अमेरिकी उद्योग संगठनों का भी कहना है कि भारत में आउटसोर्सिंग करने से अमेरिकी उद्योगों की प्रतियोगी क्षमता बढ़ी है। होम लोन के भयानक संकट के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था बुरी स्थिति में है। रोजगार के अवसरों में लगातार कटौती हुई है(नई दुनिया,दिल्ली,10.9.2010)।

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अमेरिकी मंदी के दौर में हुए राष्ट्रपति चुनाव के दौरान आउटसोर्सिग पर आग उगलने वाले बराक ओबामा के तेवर अभी भी जस के तस हैं। बीते साल 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से उन्होंने आउटसोर्सिग (नौकरियां विदेश भेजने) के खिलाफ कई कदम उठाए हैं। ओहायो राज्य द्वारा आउटसोर्सिग पर रोक लगाने के ठीक अगले ही दिन ओबामा ने अमेरिकी धरती पर रोजगार पैदा नहीं करने वाली कम्पनियों को टैक्स छूट देने से इंकार कर दिया है। बराक के इस कदम से न सिर्फ भारतीय आईटी कंपनियों की मुश्किलें और बढ़ेंगी, बल्कि सॉफ्टवेयर व बीपीओ उद्योग में बेहतर करियर की उम्मीद लगाए युवाओं को भी झटका लगेगा। बराक के संरक्षणवादी कदम : सॉफ्टवेयर जैसे क्षेत्रों के कुशल पेशेवरों को दिए जाने वाले एच-1 बी वीजा पर 2000 डॉलर शुल्क बढ़ाकर ओबामा प्रशासन पहले ही आईटी कम्पनियों की परेशानी बढ़ा चुका है। इससे भी पहले बराक अमेरिकी संसद में वह विधेयक पारित करा चुके हैं, जिसके तहत आउटसोर्सिग करने वाली कम्पनियों को सरकारी मदद के रूप में फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी। क्या कर सकता है भारत : भारत अब आउटसोर्सिग पर रोक के मुद्दे को विश्व व्यापार संगठन में उठाने की संभावनाएं तलाश रहा है। वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने अमेरिका के इस कदम पर कड़ी आपत्ति जताई है। इस महीने की 21 व 22 तारीख को वह अमेरिका जा रहे हैं, जहां यह मुद्दा भी उनके एजेंडे पर होगा। सड़क परिवहन मंत्री कमलनाथ ने भी अमेरिका के इस कदम की तीखी आलोचना की है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सूचना सलाहकार सैम पित्रोदा ने इसे अमेरिका का घबराहट भरा कदम बताया है। नासकॉम के पूर्व चेयरमैन किरण कार्णिक का मानना है कि अंतत: अमेरिका को ही इसका नुकसान होगा। कम्पनियों की कमाई : भारतीय आईटी कम्पनियों के कुल कारोबार में अमेरिकी हिस्सेदारी 60 प्रतिशत है। इन आईटी व बीपीओ कम्पनियों को सालाना करीब 50 अरब डॉलर की कमाई होती है। इतना ही नहीं इन कम्पनियों में देश के लगभग 50 लाख पेशेवरों को रोजगार मिला हुआ है(दैनिक जागरण,दिल्ली,10.9.2010)।

उधर,इसी विषय पर बिजनेस भास्कर लिखता है कि एक ओर अमेरिका भारतीय आईटी कंपनियों पर तरह तरह के प्रतिबंध लगाता जा रहा है तो दूसरी ओर भारत में काम कर रही उसकी आईटी कंपनियां यहां मजे काट रहीं हैं। भारत सरकार की बड़ी योजनाओं में अमेरिकी कंपनियों को मोटा काम मिल रहा है।

दुनिया की सबसे बड़ी आईटी कंपनी आईबीएम को भारत सरकार की परियोजनाओँ में अच्छा काम मिला है। प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की 2000 करोड़ रुपए का काम मिला हुआ है। हजारों करोड़ रुपए की यह परियोजना अभी शुरुआती चरण में है।

आईबीएम और दूसरी अमेरिकी कंपनी एचपी यूनीकआईडी प्रोजेक्ट की 2000 करोड़ रुपए की एक परियोजना में ठेका लेने की होड़ में लगी हुई है। आईबीएम को जीवन बीमा निगम का 50 करोड़ रुपए का काम मिला हुआ है।

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