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18 सितंबर 2010

हिमाचलःबोर्ड में नहीं, बोर्ड के साथ हुआ फर्जीवाड़ा

हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. सीएल गुप्त ने कहा है कि प्रमाण पत्रों का फर्जीवाड़ा शिक्षा बोर्ड में नहीं बल्कि शिक्षा बोर्ड के साथ हुआ है। उन्होंने कहा कि शिक्षा बोर्ड के साथ किए गए फर्जीवाड़े को खुद बोर्ड प्रशासन ने पकड़ा और उजागर किया लेकिन दुखद यह है कि अब इसे राजनीतिक रंगत देते हुए बोर्ड प्रशासन को ही दोषी ठहराने का प्रयास किया जा रहा है। शुक्रवार को धर्मशाला में उन्होंने पत्रकारों से कहा कि जैसे ही यह मामला उनके ध्यान में पहली सितंबर को आया था, उसी समय इस की जांच करने के आदेश दे दिए थे। इसके बाद तीन सिंतबर को इस जांच में दसवीं कक्षा के 63 ऐसे विद्यार्थियों के नाम सामने आए जो परीक्षा केंद्र से अनुपस्थित थे। लेकिन उनकी उत्तर पुस्तिकाएं बाकायदा बोर्ड में चेक होकर पहुंची थी तथा सभी को बोर्ड द्वारा अंकतालिका भी जारी की गई थी। इसका पता लगते ही उन्होंने पांच सितंबर को सभी 63 विद्यार्थियों को नोटिस जारी किए ताकि इस मामले के बारे में पता लगाया जा सके, लेकिन किसी का कोई जबाव नहीं आया। इसी के साथ उन्होंने एसएसपी कांगड़ा से भी इस मामले बारे चर्चा की तथा इसमें फर्जीवाड़ा देखते हुए पुलिस में मामला दर्ज करवाया गया। पुलिस ने एकदम से कार्रवाई करते हुए इस मामले में दो मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार किया। उनसे मिली जानकारी से इस पूरे फर्जीवाड़े की परतें खुली। इसमें उन्होंने बाकायदा यह बताया किस ढंग से वे बाहर से ही इस फर्जीवाड़े को स्कैनर की मदद से उत्तर-पुस्तिकाएं तैयार कर अंजाम देते थे। उन्होंने कहा कि इस मामले में बोर्ड में भी एक समिति जांच कर रही है लेकिन अभी तक कुछ मामलों में ही छोटी-छोटी गलतियां सामने आई हैं तथा इस बारे में बोर्ड के कुछ कर्मियों को कारण बताओ नोटिस भी जारी किए जा रहे हैं लेकिन अभी तक न तो समिति और न ही पुलिस जांच में बोर्ड के किसी कर्मी की इस मामले में सीधी संलिप्तता पाई गई है। बकौल गुप्त, ऐसे में बार-बार इस मामले में बोर्ड को घसीटा जाना उचित नहीं है। अब तक सामने आया उसके मुताबिक यह फर्जीवाड़ा 2006 से चल रहा था तथा इसमें कई बच्चों, उनके अभिभावकों सहित कई लोग संलिप्त हैं। ऐसे में बोर्ड को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले उस समय कहां सो रहे थे, जब यह फर्जीवाड़ा चल रहा था। अब उन्होंने अगर एक अपराध को खुद रोकने की कोशिश कर इस सारे फर्जीवाड़े का खुलासा करने में मदद की है, तो इस पर भी बोर्ड प्रशासन व उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पिछले सत्र में परीक्षा के लिए बोर्ड द्वारा कुल 835 परीक्षार्थियों को अंतिम तारीख के बाद लेट फीस के साथ आज्ञा दी गई थी तथा इसमें से केवल आठ परीक्षार्थियों की ही इस मामले में संलिप्तता पाई गई है। यह आज्ञा नियमों के अनुसार ही दी जाती है तथा इसमें किसी से कोई भेदभाव नहीं किया जाता है, इस पर अंगुली उठाना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि इस मामले में संलिप्त सभी विद्यार्थियों के पते गलत पाए गए है। अब सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि उन्हें बोर्ड द्वारा भेजा गया रोल नंबर तथा उसके बाद रजिस्टर डाक से भेजी गई अंकतालिका कैसे मिली। इस मामले में भी जांच होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि बोर्ड ने 63 विद्यार्थियों के प्रमाण पत्र रद कर दिए हैं तथा बाकी के 140 को नोटिस भेजे गए हैं। उन्हें भी जल्द रद किया जाएगा। बोर्ड में कम स्टाफ होने के बावजूद भी पांच लाख विद्यार्थियों का परीक्षा परिणाम तैयार किया गया है तथा ऐसे में इस सारे मामले का खुलासा करने वाले बोर्ड का नाम बार-बार उछाला जाना पूरी तरह से गलत है।
उधर,परीक्षा दिए बगैर बाहरी स्तर पर पेपर करवाकर स्कूल शिक्षा बोर्ड की मा‌र्क्सशीट हासिल करने के मामले में अब डाक विभाग भी जांच की आंच आ सकता है। स्कूल शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष ने इस मामले में डाक विभाग पर भी कई निशाने साधते हुए कई पहलुओं को देखते हुए पुलिस से इस संबंध में जांच की मांग की है। जिस ढंग से यह मामला हुआ है उसमें कई पहलुओं में डाक विभाग के कुछ कर्मियों की भी मिलीभगत के साफ संकेत मिल रहे हैं। इस फर्जीवाड़े में जितने भी विद्यार्थी संलिप्त थे उन्होंने बोर्ड को अपने जो भी पते दिए थे वह सभी गलत पाए गए हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर पते गलत थे तो इन पर सामान्य डाक में भेजे गए रोल नंबर कहां गए। अगर यह पते गलत थे तो ये पत्र वापस बोर्ड के पास ही पहुंचने चाहिए थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अगर एक दो की बात होती तो इस पर गौर भी नहीं किया जाता, लेकिन 63 विद्यार्थियों को भेजे गए पत्र ही वापस नहीं आए। जबकि जांच में सभी पते गलत पाए गए हैं। 63 का यह आंकड़ा बढ़कर करीब 180 भी पहुंच सकता है। दसवीं के अलावा बाकी कुछ कक्षाओं के ऐसे ही विद्यार्थियों के जो मामले सामने आए हैं, उनके पते भी गलत होने की एक दो दिन में पुष्टि होने वाली है। बात अगर सामान्य डाक तक ही होती तो भी इस पर गौर नहीं किया जाता। लेकिन इसके बाद इन विद्यार्थियों को बोर्ड द्वारा रजिस्टर डाक से भेजे गए रोल नंबर कहां गए व इन्हें डाक विभाग ने किसे दिया। यह भी सवाल है। वहीं, पुलिस जांच में भी इस बारे सामने आ चुका है कि यह सभी पत्र इस गोरखधंधे के मास्टरमाइंड तक पहुंच जाते थे। ऐसे में किस ढंग से डाक द्वारा भेजे गए यह पत्र मास्टरमाइंड तक पहुंचे थे। यह भी एक बड़ा प्रश्न है। उधर, शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. चमन लाल गुप्त का कहना है कि अब तक 63 विद्यार्थियों के पते गलत पाए गए हैं। ऐसे में उन्हें डाक से भेजे गए रोल नंबर व मा‌र्क्सशीट कैसे मिल गई। इस बारे भी जांच होनी चाहिए।
(दैनिक जागरण,धर्मशाला,18.9.2010)।

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