कश्मीर के बिगड़े हालात के बीच जम्मू सेंट्रल यूनिवर्सिटी में किसी बाहरी व्यक्ति को कुलपति बनाने का जोखिम लेने के मूड में केंद्र सरकार फिलहाल नहीं है। यही वजह है कि वह अभी इस मामले में कोई पहल नहीं करना चाहती। सूत्रों के मुताबिक, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने जम्मू सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति की नियुक्ति के लिए इसी साल अप्रैल में पांच लोगों के नामों का पैनल विजिटर (राष्ट्रपति) के पास भेज दिया था, लेकिन इस बीच स्थानीय लोगों ने संभावित कुलपति का विरोध शुरू कर दिया है। उनकी मांग जम्मू क्षेत्र से ही कुलपति की नियुक्ति की है। इस बारे में राज्य सरकार ने भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय को आगाह किया है। चूंकि इस बीच सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को हटाने, सेना की तैनाती में कटौती और अलगाववादियों की अन्य मांगों को लेकर कश्मीर सुलग रहा है। ऐसे में कुलपति की नियुक्ति से जम्मू में भी विरोध की आग भड़क सकती है। लिहाजा इसे अभी ठंडे बस्ते में ही रखना मुनासिब है। सूत्र बताते हैं कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विजिटर के पास कुलपति के चयन के लिए जिन पांच नामों का पैनल भेजा था, उसमें जम्मू राज्य विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अमिताभ मट्टू का भी नाम शामिल है। मट्टू कश्मीरी पंडित हैं। बताते हैं कि मट्टू की कार्यशैली को लेकर जम्मू के कुछ राजनीतिक दलों ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सामने कई सवाल उठाये ही हैं। उन्होंने उनकी नियुक्ति का विरोध किया है। जबकि जम्मू के मंडलायुक्त की एक रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार ने भी मट्टू की नियुक्ति होने पर स्थिति बिगड़ने को लेकर विजिटर व मानव संसाधन विकास मंत्रालय को आगाह किया है। हालांकि केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति के मामले में उनका स्थानीय होना कोई मुद्दा नहीं है। फिर भी चूंकि जम्मू सेंट्रल यूनिवर्सिटी का फैसला ही राजनीतिक वजहों की देन है। लिहाजा स्थानीय विरोध को मतलब तो है ही। सूत्र बताते हैं कि राज्य सरकार के आगाह करने के बाद विजिटर में पूर्व में भेजे गए पैनल पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय से फिर से विचार करने की बात कही थी(राजकेश्वर सिंह,दैनिक जागरण,दिल्ली,15.9.2010)।
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