हिंदी के राष्ट्रभाषा न बनने को लेकर भले ही हम राजतंत्र को कोस लें परंतु हिंदी शिक्षण को लेकर स्थिति काफी शर्मनाक है। इस दुखद तथ्य की ओर भी ध्यान देना होगा कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपी बोर्ड) की हाईस्कूल और इंटर की परीक्षा में हर साल आठ से दस लाख विद्यार्थी अकेले हिंदी में फेल होते हैं। बोर्ड परीक्षा- 2010 के परिणामों पर गौर करें तो पहली बार बोर्ड ने ग्रेडिंग प्रणाली लागू कर छात्रों को पूरक परीक्षा का अवसर दिया। एक विषय में फेल छात्रों की जुलाई में परीक्षा कराई गई। इसके बावजूद हाईस्कूल की हिंदी परीक्षा देने वाले 33.36 लाख छात्रों में 5.15 लाख फेल हो गए। इंटर के सामान्य और साहित्यिक हिंदी के 16.32 लाख परीक्षार्थियों में से पौने तीन लाख फेल हुए। कुल मिलाकर आठ लाख परीक्षार्थी मातृभाषा में सौ में से 33 अंक भी नहीं प्राप्त कर पाए। यही स्थिति 2009 परीक्षा की थी। 2008 की बोर्ड परीक्षा में हिंदी में फेल छात्रों की संख्या (10 लाख 7 हजार 39) चौंकाने वाली थी। हाईस्कूल परीक्षा में शामिल 25 लाख 91 हजार 395 छात्रों में 7 लाख 86 हजार 907 मातृभाषा में फेल हुए। इंटर के 16 लाख 33 हजार 290 परीक्षार्थियों में से 2 लाख 20 हजार 132 छात्र फेल हुए(डॉ. सुरेश अवस्थी,दैनिक जागरण,कानपुर,15.9.2010)।
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