कार्यकाल पूरा होने के मात्र एक दिन पूर्व इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हर्षे पत्रकारों से रूबरू हुए। उन्होंने इस दौरान कहा कि पांच वर्षीय कार्यकाल में आधा कार्य पूरा हुआ, आधा अभी बाकी है। उन्होंने इस दौरान विश्वविद्यालय में लिंगदोह समिति की सिफारिशों के आधार पर छात्र परिषद गठित करने की बात कही। उनका कहना था कि मैं खुद जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्र प्रतिनिधि था और वहां के नियम बनाने में सक्रिय था। पुराने तरीके का छात्र संघ तो कत्तई मंजूर नहीं है, पर विश्वविद्यालय में छात्र परिषद होना चाहिए।
प्रो. हर्षे का कहना है कि किसी राज्य विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। वह भी इलाहाबाद जैसी बिगड़ी व अराजक स्थिति में तो और भी समस्या आती है। इन सबके बावजूद खासा प्रयास किया गया। आज कम से कम विश्वविद्यालय में शांति व शिक्षा का वातावरण तो है। इस दौरान छात्रों व शिक्षकों के साथ ही कर्मचारियों की भी मांगें मानी गईं तथा उनकी समस्याएं दूर की गईं हैं।
उन्होंने अच्छे शिक्षकों के चयन, एफसीआई मैदान में बन रहे भवन आदि को अपने कार्यकाल की उपलब्धि बताया। उनका कहना था कि पद बहुत रिक्त थे, पर चयन की प्रक्रिया काफी देर से शुरू हो सकी। तीन साल तो अधिनियम बनने में लग गए। दो-दो बार विज्ञापन निकाला गया। इसके बाद योग्य व्यक्ति भी कम मिले। प्रो. हर्षे के अनुसार मैंने जाति देखकर कोई चयन नहीं किया। मेरिट के आधार पर ही सारे चयन हुए हैं। उन्होंने इस दौरान रजिस्ट्रार समेत अन्य महत्वपूर्ण पदों पर हुए चयनों का भी बचाव किया(दैनिक जागरण,इलाहाबाद,13.10.2010)।
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