आज दो अभी दो, उत्तराखंड राज्य दो उत्तराखंड आंदोलन के समय यह नारा हर युवा की जुबान पर तैर रहा था। मन में अपने पहाड़ी राज्य के सुनहरे सपने जो दिखाई दे रहे थे। उन सपनों में बेहतर रोजगार और खुशहाल जीवन का अक्स उभर कर सामने आ रहा था। हजारों आंदोलनकारियों के बलिदान की बदौलत नौ नवंबर 2000 को नया राज्य भी मिल गया। नवोदित उत्तरांचल जल्द जवां उत्तराखंड भी बन गया। मगर, इन 10 सालों में यहां के युवाओं को न तो ढंग का रोजगार मिल पाया और न ही सुरक्षित भविष्य। हर साल नौजवान बेरोजगारों की फौज खड़ी होती जा रही। जो नौकरियां मिल भी रही हैं, वह बेरोजगारी के मुंह में जीरा साबित हो रही हैं। वर्ष 2000 में राज्य निर्माण के दौरान में सूबे में लगभग 68 हजार युवा बेरोजगार थे। ठीक एक साल बाद यह आंकड़ा 99 हजार पार कर गया था। जबकि महज 836 लोगों को नौकरियां मिल पाई थीं। जबकि आज करीब 10 लाख युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। इन बीते 10 सालों में राज्य सरकार सिर्फ 40 हजार युवाओं को ही रोजगार दे पाई है। हर साल औसतन एक लाख युवा बेरोजगार हो रहे हैं। इसके मुकाबले चार हजार को ही नौकरी नसीब हो पा रही है। राज्य निर्माण की 10वीं वर्षगांठ पर बेरोजगारी का मुद्दा सबसे विकराल रूप में दिखाई दे रहा है। आज यहां का हर नागरिक खुद से सवाल करता नजर आ रहा है, क्या यही दिन देखने के लिए उत्तराखंड मांगा था? वहीं, सिडकुल क्षेत्र में राज्य के युवाओं को नौकरी तो मिली, मगर अधिकतर ठेका प्रथा पर तैनात हैं। जिनकी सेवा कंपनी कभी भी समाप्त कर सकती है। अब तक सिडकुल की विभिन्न कंपनियों में उत्तराखंड के करीब 45 हजार युवक-युवतियों को नौकरी मिली है। जिसमें से अधिकतर युवा ठेके पर काम कर रहे हैं(सुमन सेमवाल,दैनिक जागरण,देहरादून,9.11.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।