मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

11 नवंबर 2010

केबीसी-4:प्रशांत तो चूक गए, आप मत चूकिएगा!

केबीसी-4 में मेरठ के प्रशांत बातर पहले करोड़पति तो बने लेकिन लालच ने उन्हें लपेट लिया। आठ नवंबर को प्रशांत ने 25 लाख की रकम बिना लाइफ लाइन के जीत ली। और ऐसा करने वाले वे पहले खिलाड़ी भी बने। आठ नवंबर के बाद दूसरे दिन भी हॉट सीट पर बैठना इनकी किस्मत में था। 12 सवालों के जवाब ने इन्हें एक करोड़ का मालिक भी बना दिया। आखिर क्यों प्रशांत पांच करोड़ के चक्कर में करोड़पति बनने से भी रह गए? आखिर क्या है इसका मनोविज्ञान और जब आप कभी इंटरव्यू की हॉट सीट पर पर हों तो किन बातों का रखें ध्यान? आपके लिए यह जान लेना भी जरूरी है। तो चलिए सीखते हैं केबीसी के बहाने। 

प्रशांत के लिए करोड़पति बनने के लिए सवाल था किस देश में कौन पहला राष्ट्रपति बना है । जवाब आसान था। प्रशांत ने नेपाल के राष्ट्र पति रामबरन यादव का नाम बताया। वे करोड़पति बन चुके थे। जैक पॉट सवाल आया पांच करोड़ का। सवाल था-1978 में अंटार्कटिका में जन्म लेने वाला पहला शख्स कौन था। प्रशांत को इस प्रश्न का सही जवाब पता नहीं था। लेकिन सामने पांच करोड़ की रकम थी। दुविधा के बाद प्रशांत ने 5 करोड़ के लिए खेलने का निर्णय किया। उनके पिता चाहते थे कि बेटा एक करोड़ पर ही संतोष कर ले। पांच करोड़ के सवाल के वक्त एक लाइफ लाइन शेष थी। बातर ने डबल डेक लाइफ लाइन की भी मदद ली। फिर इस सवाल के जवाब के लिए दो विकल्प चुनने के लिए कहा गया। दुर्भाग्य से दोनों गलत हुए। आखिर प्रशांत का लालच सब पर भारी क्यों पड़ा? और ऐसा क्या था कि पांच क रोड़ के चक्कर में एक करोड़ की रकम तीन लाख 20 हजार में तब्दील हो गई?

प्रशांत बातर के हारने के बाद अमिताभ बच्चन कहते हैं,साहस और दुस्साहस में फर्क होता है, विश्वास और अतिविश्वास में फर्क होता है। प्रशांत की हार के निहितार्थ इसी में है। यदि कोई ज्यादा पाने के चक्कर में पाई गई संपत्ति को खारिज कर किस्मत और भाग्य पर सब कुछ न्योछावर कर देता है तो यह लालच की पराकाष्ठा है। किस्मत पर आप विश्वास करते हैं तो इसकी मजबूत बुनियाद भी होनी चाहिए। इससे युवाओं को यह सीखना चाहिए कि जब आप कभी साक्षात्कार से गुजर रहे हों तो संयम अपेक्षित है। जवाब में अति-उत्साह और दुस्साहस ठीक नहीं। 

क्या था मनोविज्ञान 
दर्शकों के जेहन में यह सवाल अभी भी उमड़-घुमड़ रहा है कि आखिर प्रशांत बातर ने इतना बड़ा जोखिम क्यों उठाया? उस समय हॉट सीट पर बैठे प्रशांत के अंदर आखिर क्या चल रहा था कि वे दुस्साहस तक पहुंच गए? मनोवैज्ञानिक डॉ. विनय कु मार कहते हैं किसी भी इंसान का मनोविज्ञान उसके प्रोफेशन पर भी निर्भर करता है। बातर शेयर ट्रेडर हैं। इस ट्रेड में बैठे-बैठे लाखों रुपए पल भर में कमाए-गंवाए जाते हैं। डॉ.विनय कहते हैं, शेयर मार्केट और केबीसी में ज्यादा फर्क नहीं है। यदि यहां एक किसान होता तो दावे के साथ कह सकता हूं वह पांच करोड़ का लालच नहीं करता। क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट बिंदा सिंह का भी कहना है कि इसके पीछे दुनिया को मुट्ठी में कर लेने की सोच होती है। कहती हैं, 30 वर्ष से 35 वर्ष की उम्र रिस्क लेने की होती है और मामला दुस्साहस तक पहुंच जाता है(रजनीश,हिंदुस्तान,पटना,11.11.2010)।

1 टिप्पणी:

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।