पंजाब आईएएस ऑफिसर्स असो. आईएएस अधिकारियों के लिए संपत्ति की घोषणा को अनिवार्य बनाने की पहल से हमें कोई आपत्ति नहीं है। इस बारे में हमारी स्पष्ट राय है कि सिविल सर्वेंट की संपत्तियों की जानकारी पब्लिक डोमेन में होनी चाहिए। पंजाब की आईएएस असोसिएशन ने इस संबंध में एक मिसाल पेश की है। हमने अपनी संपत्तियों से जुड़ी जानकारियां इंटरनेट पर वेब पेज बनाकर दे रखी हैं। पर, हमारा एक मत और है। हम चाहते हैं कि पारदर्शिता की इस पहल का दायरा और बढ़े। यानी यह सिर्फ आईपीएस, आईएसएस या आईएफएस तक सीमित नहीं रहे। बल्कि इसमें सभी सरकारी, गैरसरकारी अधिकारी शामिल हों।
आम जनता से डील करने वाली मीडिया के लोग भी इस दायरे में आएं। जहां, तक आईएएस अधिकारियों का सवाल है, तो वे अपने हर काम के लिए जवाबदेह ठहराए जा सकते हैं और सीबीआई, विजिलेंस ब्यूरो, चीफ मिनिस्टर और चीफ सेक्रेटरी से लेकर दूसरे कई लोग उनके कार्यों की जांच-पड़ताल कर सकते हैं। कोर्ट उनके कार्यालय का रेकॉर्ड मंगा सकता है, उन्हें खुद कोर्ट में पेश होने को कह सकता है और उन्हें क्रॉस एग्ज़ामिन किया जा सकता है। संक्षेप में एक सिविल सर्वेंट जो कुछ करता है, वह किसी से छिपा नहीं रहता। ऐसे में अगर किसी नौकरशाह के क्रियाकलाप का सारा ब्यौरा इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिया जाता है, तो ऐसे में भी वह कुछ खोता नहीं है, क्योंकि असल में उसके पास छिपाने को कुछ नहीं है। इस तरह की पारदर्शिता से तो सरकारी अधिकारियों को और ताकत मिल सकती है।
यह अहसास कि जनता उनके हर क्रियाकलाप और उनकी संपत्तियों पर नजर रख रही है, उन लोगों को भी हतोत्साहित करेगा जो सिविल सर्वेंट्स पर अनैतिक दबाव डालते हैं और उनका करियर तबाह करने या तबादले की धमकी देकर उल्टे-सीधे काम करवाते हैं।
विश्वसनीय हो रेगुलेटरी अथॉरिटी
-वेद मारवाह,पूर्व कमिश्नर,दिल्ली पुलिस
वैसे तो सिविल सर्वेंट हर साल अपनी आय और संपत्ति का ब्यौरा दाखिल करते ही हैं, पर अगर सरकार चाहती है कि नौकरशाहों के लिए संपत्ति की घोषणा करना अनिवार्य हो, तो वह ऐसा कर सकती है। इस बारे में उसके द्वारा कानून बना देने पर उसका पालन करना अनिवार्य हो जाएगा। फिर चाहे वे आईपीएस हों, आईएफएस या आईएएस। सभी को अपनी संपत्तियों की जानकारी सार्वजनिक करनी पड़ेगी। ऐसे महत्वपूर्ण बदलाव पर नौकरशाह लॉबी यह अवश्य कह सकती है कि इस कानून के तहत सार्वजनिक की जाने वाली जानकारियों का दुरुपयोग हो सकता है, पर ऐसा तो सुधार के हर मामले में हो सकता है। जब बात करप्शन पर काबू पाने की हो तो ऐसे कायदों की जरूरत बनती ही है। हालांकि, इस बारे में मेरा यह भी कहना है कि ऐसे नियम के अंतर्गत कोई भी ऐक्शन भ्रष्टाचार और भ्रष्ट व्यक्ति के खिलाफ ही होना चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि भ्रष्ट लोग तो पकड़ में आते नहीं हैं जबकि ईमानदार अफसर झूठे आरोप झेलता रहता है। ईमानदार अफसरों पर तमाम दबाव डाले जाते हैं। उनसे कहा जाता है कि अगर आपने हमारी बात नहीं मानी तो आपका ट्रांसफर कर दिया जाएगा या किसी झूठे मामले में फंसा दिया जाएगा। यह दुखद है। इसलिए जरूरी है कि आय और संपत्ति की घोषणा के बारे में जो इंतजाम किए जाएं, वे विश्वसनीय हों। उनके दायरे में क्रेडिबल इन्क्वायरी की व्यवस्था हो। उनकी जांच करने वाली संस्थाओं के शीर्ष पदों पर योग्य, समझदार और निष्पक्ष लोग तैनात हों। मेरा मानना है कि सिर्फ संपत्ति की घोषणा को सार्वजनिक करने के नियम भर से करप्शन नहीं रुकेगा। इसकी रोकथाम तभी होगी जब रेगुलेटरी अथॉरिटी में नियमों का कड़ाई से पालन होगा। उसमें काम करने वाले लोगों की रेपुटेशन अच्छी होगी। अभी तो आलम यह है कि सीवीसी की नियुक्ति पर ही अंगुलियां उठ रही हैं(सर्वेश कौशल,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,10.11.2010)।
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