नक्सलियों की डर की वजह से देश के नक्सल प्रभावित इलाकों में एक अलग तरह की आउटसोर्सिंग चल रही है। बताया गया है कि इन इलाकों में जान के खतरे के डर के चलते लंबे समय तक स्कूलों से अनुपस्थित रहने वाले शिक्षक अब अपनी ओर से कक्षाओं में पढ़ाने के लिए स्थानीय युवकों को किराए पर नियुक्त कर रहे हैं। ये शिक्षक ऐसे युवकों को अपना आधा वेतन देते हैं।
यह स्थिति दोनों के लिए फायदेमंद है। शिक्षकों का काम हो जाता है और स्थानीय अर्धशिक्षित बेरोजगार युवकों को काम मिल जाता है। लेकिन इसमें छात्रों की शिक्षा दांव पर लग जाती है। शिक्षकों को घर पर रहते हुए आधा वेतन मिलता है और अर्धशिक्षित होने के बावजूद युवक स्कूलों में छात्रों को पढ़ाते हैं तथा आधा वेतन भी पा जाते हैं। छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा में यह चलन बढ़ता जा रहा है क्योंकि यहां के दूरस्थ इलाकों में माओवादियों की मौजूदगी और सुरक्षा के अभाव के कारण स्कूल के निरीक्षक कभी कभार ही इन इलाकों में जा पाते हैं। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि यह चिंताजनक बात है। ऐसे स्कूलों में शिक्षा का स्तर क्या होगा, हम कल्पना कर सकते हैं। हमें उम्मीद है कि सुरक्षा बल जैसे-जैसे ज्यादा से ज्यादा नक्सली बहुल इलाकों पर नियंत्रण करेंगे, वैसे-वैसे स्थिति में सुधार होगा। मध्य भारत के बड़े हिस्सों पर माओवादियों की गहरी पकड़ है। इसकी वजह से यहां के कई हिस्सों में गरीबों के लिए स्वास्थ्य और प्राथमिक शिक्षा की सुविधाएं प्रभावित हो रही हैं क्योंकि जान के खतरे के डर से डॉक्टर और अन्य चिकित्साकर्मी तथा शिक्षक अपनी ड्यूटी पर जाने से बचते हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों में कई स्वास्थ्य केंद्रों में केवल इसलिए कई पद रिक्त पड़े हैं क्योंकि वहां कोई काम नहीं करना चाहता। राज्य सरकारों को भी माओवाद प्रभावित इलाकों में स्कूल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का संचालन करने में दिक्कत हो रही है क्योंकि सैकड़ों शिक्षक और डॉक्टर नक्सली खतरे के कारण काफी समय तक अनुपस्थित रहते हैं। कई लोग तो नियुक्ति पत्र मिलने के बाद भी कार्यभार नहीं ग्रहण करना चाहते। नक्सलियों ने कई शिक्षकों को पुलिस का मुखबिर बता कर या माओवादी विचारधारा का विरोध करने के कारण मार डाला है। कुछ का अपहरण किया गया और कुछ को बुरी तरह पीटा गया है।
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सात जिलों में केवल ५२६ शिक्षक काम कर रहे हैं जबकि यहां स्वीकृत पदों की संख्या २५५८ है। झारखंड के माओवाद प्रभावित ११ जिलों में ४,०६६ स्वीकृत पद हैं लेकिन केवल २,९३७ शिक्षक ही काम कर रहे हैं। उड़ीसा में नक्सल प्रभावित पांच जिलों में शिक्षकों के ६,००३ पद स्वीकृत हैं जबकि वहां केवल ३,५६६ शिक्षक कार्यरत हैं। इस साल ३० सितंबर तक माओवादियों ने छत्तीसगढ़ में दो डॉक्टरों को, झारखंड में एक डॉक्टर को मार डाला। इसी अवधि में पश्चिम बंगाल में एक पशु चिकित्सक की माओवादियों ने हत्या कर दी(नई दुनिया,दिल्ली,15.11.2010)।
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