मामला है मध्यप्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मंडल का। आकृति पाटकर महर्षि विद्या मंदिर पन्ना की होनहार छात्रा थी। उसने दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरे मनोयोग से की। उसे प्रावीण्य सूची में पहला स्थान मिलने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन जब रिजल्ट आया तो उसे निराशा हाथ लगी। उसे अन्य विषयों में विशेष योग्यता मिली थी, जबकि संस्कृत में महज ७० अंक दिए गए थे। यह बात उसे हजम नहीं हुई। लिहाजा, उसने पुनर्गणना का आवेदन किया, लेकिन रिजल्ट आशानुरूप नहीं आया। इस रवैये के खिलाफ उसने हाईकोर्ट की शरण ली।
जस्टिस अजित सिंह की एकलपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता का पक्ष अधिवक्ता पराग चतुर्वेदी, परिमल चतुर्वेदी व केजी तिवारी ने रखा। कोर्ट को अवगत कराया गया कि आवेदिका को दसवीं की अंकसूची मिली, तो वह हतप्रभ रह गई। उसे संस्कृत में महज ७० अंक मिले थे, जबकि अन्य विषयों में विशेष योग्यता थी। उसे संस्कृत में कम से कम ९५ अंक मिलने की उम्मीद थी। इसी वजह से उसने पुनर्गणना का आवेदन किया, जिसके बाद उसके केवल ४ अंक बढ़ाए गए। यह बात उसे गंवारा नहीं हुई इसीलिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
उक्त दलीलों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए दो स्वतंत्र परीक्षकों से संस्कृत की उत्तरपुस्तिका जंचवाने के माशिमं को निर्देश दिए। जिसके पालन में दो परीक्षकों ने जांच की तो २३ अंकों की वृद्धि सामने आई। इस तरह उसके अंक बढ़कर ९३ हो गए। जिस पर गौर करने के बाद कोर्ट ने छात्रा को नयी अंकसूची प्रदान करने माशिमं को निर्देशित किया। इसी के साथ वह महर्षि विद्या मंदिर पन्ना स्कूल की मेरिट सूची में दूसरे स्थान पर आ गई। कोर्ट ने अपने आदेश में कड़ा रुख अपनाते हुए माशिमं पर तीन हजार का जुर्माना लगाया। साथ ही लापरवाह परीक्षक के खिलाफ जांच कर दंडित किए जाने के निर्देश दे दिए(सुरेन्द्र दुबे,नई दुनिया,दिल्ली,15.11.2010)।
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