नौकरी के लिए मुस्लिम बच्चे संस्कृत विद्यालयों की ओर रुख कर रहे हैं। हर साल बिहार राज्य संस्कृत बोर्ड की परीक्षा में अल्पसंख्यक समुदाय के परीक्षार्थियों की संख्या बढ़ रही है। सुनने में भले ही यह अटपटा लगे लेकिन आंकड़े तो यही कहते हैं। वर्ष 2009 की संस्कृत बोर्ड परीक्षा में अल्पसंख्यक समुदाय के 1026 विद्यार्थी शामिल हुए थे। इससे पहले 2008 में 968 छात्र शामिल हुए थे। वर्ष 2010 की परीक्षा में 1054 परीक्षार्थी शामिल हुए हैं। ये बच्चे उर्दू व अरबी-फारसी में रुचि लेने के बदले वेद-पुराण और संस्कृत व्याकरण में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। रोचक यह कि ऐसे परीक्षार्थी अच्छे अंकों से उत्तीर्ण भी हो रहे हैं। दानापुर स्थित मदरसे के एक मौलवी (शिक्षक) रहमानी साहब ने बताया कि भले ही संस्कृत शिक्षा उपेक्षित पायदान पर हो पर इस विषय से अच्छी डिग्री हासिल करने पर आसानी से नौकरी मिलने की संभावना बढ़ जाती है। बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष सिद्धेश्वर प्रसाद ने बताया कि जिस तरह उर्दू पढ़ने-लिखने के प्रति बहुसंख्यक समाज में रुचि बढ़ी है, उसी तरह संस्कृत के प्रति अल्पसंख्यक समुदाय के विद्यार्थियों में दिलचस्पी बढ़ रही है। हर वर्ष बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक परीक्षार्थी शामिल हो रहे हैं। परीक्षार्थी मुहम्मद हामिद अंसारी, इकबाल अहमद, मुख्तार कुरैशी ने बताया कि संस्कृत के पाठ्यक्रम में रोजगार की संभावना ज्यादा महसूस हुई तो उनके अभिभावकों ने सातवीं कक्षा के बाद संस्कृत स्कूल में दाखिला करा दिया(दैनिक जागरण,पटना,18.11.2010)।
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