मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

15 नवंबर 2010

प्रार्थना और व्यक्तित्व विकास

सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में यूं तो विद्यालय का हर क्षण अति महत्वपूर्ण होता है परन्तु प्रार्थना सभा-काल इसलिए अधिक महत्व रखता है कि इस समय समस्त विद्यालय को एक नजर में समेटा जा सकता है। शिक्षक-शिक्षार्थी एक साथ यहां उपस्थित होते हैं। ईश-स्तुति द्वारा हृदय पक्ष मजबूत होता है वहीं सृष्टिï रचयिता के प्रति निष्ठा, कृतज्ञता, का भाव उत्पन्न होता है। इसके साथ ही स्वर में स्वर मिलाने का अभ्यास होता है।

अनुशासन का पहला पाठ भी प्रार्थना सभा से शुरू होता है। तन साधकर पंक्ति में खड़े होना, सभा आयोजक के निर्देशों का पालन अनुशासन के ही आरम्भिक चरण हैं। इस दौरान गाये जाने वाले राष्ट्रगीत व राष्ट्रगान, देशभक्तिपूर्ण नारे विद्यार्थियों में मातृभूमि के प्रति प्यार, लगाव तथा समर्पण का जज्बा पैदा करते हैं। दुबले से दुबला विद्यार्थी भी बुलंद आवाज में नारे लगाता है तो देशमाता का सीना अवश्य गर्व से फूल उठता होगा। विद्यालय संबंधी निर्णय, सूचना, आदेश, निर्देश से सबको अवगत कराने का सर्वोत्तम समय प्रार्थना सभा ही होता है।

विद्यार्थियों की विशेष उपलब्धियों के लिए उनकी पीठ थपथपानी हो, पुरस्कार देना हो तो इसके लिए भी यह समय उचित है। इससे शिक्षार्थी का मनोबल बढ़ता है वहीं अन्य छात्रों को प्रेरणा भी मिलती है। उद्दण्ड छात्रों को अल्प समय के लिए ही सही, सभा में खड़ा करना कारगर सजा है।

इस दौरान विद्यार्थी चुनिंदा विषयों पर विचार पेश करते हैं। आज का विचार, दैनिक समाचार, प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत करते हैं। इससे उन्हें मंच मिलता है, आत्मविश्वास बढ़ता है, सामान्य ज्ञान में वृद्धि होती है तथा वाक्-निपुणता का विकास होता है। प्रार्थना सभा के समय छात्र पारस्परिक परिचय प्राप्त कर, संवाद स्थापित कर सामाजिकता का विकास करते हैं। सामूहिक पी. टी., योग क्रियाओं द्वारा विद्यार्थियों का शारीरिक विकास होता है। साथ ही,उनकी व्यक्तिगत सफाई की जांच होने से वे स्वच्छता संबंधी लापरवाही नहीं बरत सकते क्योंकि कोई भी छात्र सार्वजनिक रूप से ‘गंदा विद्यार्थी’ के रूप में चिह्नित नहीं होना चाहेगा। इस समय ली जाने वाली हाजिरी से विद्यार्थियों में समय की पाबंदी व नियमितता के गुण का समावेश होता है। विद्यालय में खोई-पाई वस्तुओं के आदान-प्रदान के लिए भी यह समय अति महत्वपूर्ण होता है। प्रशासनिक व्यस्तता के कारण संस्था के मुखिया का विद्यार्थियों से सम्पर्क कम रहता है परन्तु प्रार्थना सभा इस क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होती है।

प्रार्थना सभा की इन अनेकानेक गतिविधियों में भागीदारी होने से छात्रों को अपनी कमियों-खूबियों का बोध होता रहता है और वे भविष्य में बेहतर प्रस्तुति के लिए प्रयत्न करते हैं। इस बहुमुखी उद्देश्य वाले कालांश के महत्व का जितना बसान किया जाये, कम है। विद्यालय की समय-सारिणी से प्रार्थना सभा का निष्कासन देह से आत्मा के निष्कासन के समान है।

इस काल को सार्थक, सदुपयोगी व प्रभावपूर्ण बनाना संस्था के मुखिया, शिक्षक-शिक्षार्थी की सामूहिक जिम्मेवारी है। आगामी जीवन में सम्पन्न किए जाने वाले दायित्वों की मानसिक तैयारी का यह दौर गम्भीरता से लिया जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो एक अधूरापन रह जाएगा और यह रिक्ति सभी के लिए भारी पड़ेगी(कृष्णलता यादव,दैनिक ट्रिब्यून,10.11.2010)।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।