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15 नवंबर 2010

रंग उद्योग में करिअर

रंग-बिरंगी पेंट्स इंडस्ट्री का दुनिया भर में कारोबार अत्यंत तेजी से फैल रहा है। अत्याधुनिक रहन-सहन की शैली, उठते जीवन स्तर, बढ़ती व्यक्तिगत आय और परंपरागत रंगों के बजाय चटकीले और आकर्षक रंगों की ओर झुकाव ने निस्संदेह पेंट्स इंडस्ट्री को आज बहुआयामी बना दिया है। अब पेंट्स का मतलब रंग-रोगन तक ही नहीं रह गया है। पर्यावरण हितैषी, सोलर कोटिंग, हीट रिफ्लैक्टर, सालोसाल तक धूप एवं बरसात की मार के बावजूद चमकदार बने रहने की क्षमता वाले पेंट्स की विविधता अब देश के पेंट्स बाजार में देखी जा सकती है। भारतीय पेंट्स बाजार फिलहाल २१,००० करोड़ रुपए के करीब है जोकि लगभग १८ प्रतिशत की दर से विकसित हो रहा है। इस अनूठी इंडस्ट्री में भारी संख्या में लोगों के लिए आने वाले समय में रोजगार सृजित होंगे। युवाओं को इस व्यवसाय की जरूरतों के अनुसार स्वयं को ढालना होगा तभी वे समय पर अवसरों का लाभ इस क्षेत्र में कॅरिअर निर्माण हेतु उठा सकते हैं।

पेंट्स इंडस्ट्री की जॉब्स महज पेंट्स उत्पादन और विक्रय एजेंट्स तक ही सीमित नहीं हैं। अन्य प्रोफेशन की तरह इसमें भी तमाम तरह की पेशेवर विशेषज्ञताओं की आज बड़े पैमाने पर जरूरत हो गई है। इनमें नए, आकर्षक, चमकदार एंव सस्ते पेंट्स उत्पादन की तकनीक आरएंडडी में कार्यरत लोगों के लिए विकसित करने की चुनौती उपभोक्ताओं की पसंद के अनुसार रंगों की नई श्रृंखलाएं तैयार कर बाजार में उतारने का लक्ष्य, पेंट्स की दीर्घायु के लिए विभिन्न रसायनों और अन्य घटकों का इस्तेमाल करने की सोच वाले अनुभवी लोग शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक पेंट्स की मांग बढ़ाने वाली मार्केटिंग कोर्स की हिस्सेदारी मजबूत करने का चैलेंज स्वीकारने वाले युवा आदि का खासतौर से इस संदर्भ में उल्लेख किया जा सकता है।

यहां बताना जरूरी है कि पेंट्स का काम महज घर सुंदर बनाना ही नहीं बल्कि लोहे से तैयार स्ट्रक्यर्स को जंग से बचाना, तपती धूप की गर्मी को परावर्तित करना आदि भी है। यही कारण है कि पेंट टेक्नोलॉजी के अंतर्गत रेजिन पॉलीमर, पिग्मेंट्स तथा अन्य रसायनों का अध्ययन किया जाता है जिनका इस्तेमाल इनके उत्पादन में किया जाता है। रंगों की नई श्रृंखलाओं का विकास भी इसी शोध एवं अध्ययन की प्रमुख कड़ी है। विशिष्ट उत्पादों एवं इंडस्ट्री के लिए खास प्रकार के रंगों के उत्पादन की प्रक्रिया विकसित करना इस प्रोफेशन में कम चुनौतीपूर्ण कार्य नहीं है। जैसे एयरक्रास्ट इंडस्ट्री ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री, घरेलू डेकोरेशन आदि।

केमिकल टेक्नोलॉजी कै मिस्ट्री अथवा पॉलीमर साइंस आदि की एजुकेशनल बैकग्राउंड वाले युवाओं के लिए इस प्रोफेशन में अपेक्षाकृत तेजी से बढ़ने के अवसर हो सकते हैं। वैसे बीटेक (पेंट टेक्नोलॉजी) का विशिष्ट कोर्स १०+२ के बाद देश के कई इंजीनियरिंग कॉलेजों में संचालित किया जाता है। दाखिले अमूमन चयन परीक्षा के ही आधार पर होते है। इसके अलावा डिप्लोमा इन पेंट एप्लीकेशन टेक्नोलॉजी का खास तरह का कोर्स मुंबई के गरवारे इंस्टिट्यूट में उपलब्ध है। इंस्टिट्यूट ऑफ कैमइन्फार्मेटिक्स , नोएडा में पत्राचार माध्यम से पेंट एंड कोचिंग टेक्नोलॉजी आधारित कोर्स उपलब्ध है।

बैंकों द्वारा सस्ते अवासीय ऋण की सुलभता, ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की तीव्र गति से हो रही वृद्धि तथा इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में बढ़ते निवेश से यह निष्कर्ष निकालना कतई गलत नहीं होगा कि भविष्य में पेंट्स की मांग में तेजी आएगी। इस क्रम में न सिर्फ उत्पादन से जुड़े ट्रेंड लोगों के लिए रोजगार के मार्ग प्रशस्त होंगे बल्कि महानगरों की परिधि से बाहर भी मार्केटिंग की जरूरत पड़ेगी।

देश की प्रमुख पेंट उत्पादक कंपनियों में एशियन पेंट्स बर्जर पेंट्स, जैनसन एंड निकोल्सन पेंट्स शालीमार पेंट्स आईसीआई (इंडिया) नेरोलेक आदि का जिक्र किया जा सकता है। हालांकि असंगठित क्षेत्र में २ हजार से अधिक छोटी-बड़ी कंपनियां भी इस क्षेत्र में कारोबार कर रही हैं।

देश में फिलहाल पेंट्स की खपत महज ०.५ किग्रा प्रतिव्यक्ति सालाना है जोकि दक्षिणी एशियाई देशों में ४ किग्रा तथा विकसित देशों में २२ किग्रा है। जाहिर है कि आने वाले समय में यह अनुपात घटेगा और देश में पेंट्स की मांग में जबर्दस्त बढ़ोतरी होगी। इसका प्रभाव ज्यादा नौकरियों के रूप में भारतीय युवाओं के समय आएगा(अशोक सिंह,मेट्रो रंग,नई दुनिया,दिल्ली,15.11.2010)।

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