वकालत से पहले प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के बार काउंसिल ऑफ इंडिया के फैसले को विभिन्न राज्यों के बार काउंसिल, वकीलों और छात्रों ने एकसिरे से खारिज कर दिया है। उनका मानना है कि प्रवेश परीक्षा आयोजित करने का फैसला पूरी तरह असंवैधानिक और गैरजरूरी है।
ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन ने अधिवेशन में यह तय किया है कि बार में प्रवेश के पहले प्रवेश परीक्षा आयोजित करना अनुचित है और बार काउंसिल ऑफ इंडिया(बीसीआई) को यह प्रस्ताव वापस ले लेना चाहिए। वकीलों और विभिन्न राज्यों के बार काउंसिल के पदाधिकारियों एवं सदस्यों का मानना है कि बीसीआई द्वारा यह प्रस्ताव पारित करने से पहले राज्यों के बार काउंसिल से कोई सलाह नहीं ली गई। यहां तक कि इसकी जानकारी तक नहीं दी गई।
अधिवेशन में मौजूद विभिन्न राज्यों से आए वकीलों ने एकजुट होकर फैसला लिया कि बीसीआई के बतौर सदस्य नियुक्त विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों से इस प्रस्ताव को वापस लेने का दबाव डाला जाएगा। अधिवेशन में मौजूद लोगों का कहना है कि वास्तव में प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के पीछे विदेशी वकीलों को भारत में प्रवेश देना है और निचले तबके के लोगों को इस पेशे में आने से रोकना है। बीसीआई और निजी कंपनी इस प्रस्तावित प्रवेश परीक्षा के लिए प्रश्न पत्र तैयार करेंगे, जो छोटे शहरों के विधि स्नातक छात्रों के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। उनका कहना है कि प्रवेश परीक्षा का प्रस्ताव वकालत के पेशे का अपमान है। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि डॉक्टर, इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट आदि पेशेवर कोर्स के लिए तो इस तरह की परीक्षाएं नहीं होती, तो वकीलों के लिए क्यों? वक्ताओं का कहना था कि बीसीआई को तो विधि शिक्षा में सुधार, कॉलेजों को आधारभूत सुविधाएं आदि की दिशा में पहल करनी चाहिए। कॉरपोरेट वर्ल्ड को फायदा पहुंचाने के लिए प्रवेश परीक्षा का प्रस्ताव लाया गया। अधिवेशन में पश्चिम बंगाल के विधि मंत्री रवि लाल मैत्रा, दिल्ली बार काउंसिल के चेयरमैन राकेश टिक्कू, ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन के महासचिव डीके अग्रवाल, संयक्त सचिव एसपी सिंह, उपाध्यक्ष विकास रंजन भट्टाचार्य सहित विभिन्न राज्यों के बार काउंसिल के पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया(नई दुनिया,दिल्ली,21.11.2010)।
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