मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

07 नवंबर 2010

हिमाचल प्रदेश विविःशोधकार्यों के प्रकाशन का निर्णय

एचपी यूनिवर्सिटी के इंस्टिट्यूट ऑफ इंटिगेट्रिड हिमालयन स्टडीज विभाग में हिमालय पर किया गया सालों का शोधकार्य अब फाइलों तक ही सीमित नहीं रहेगा। इसके लिए विभाग ने जल्द ही इन शोधकार्यों को प्रकाशित करने का निर्णय लिया है।

सके तहत प्रदेश में हिमालय से संबंधित किए गए 150 से ज्यादा शोधकार्यो को विभिन्न पुस्तकों के माध्यम से प्रकाशित किया जाएगा। इससे जहां छात्रों को हिमालय की अहम जानकारी मिलेगी वहीं, आम लोग भी हिमालय के विभिन्न पहलुओं से रूबरू हो सकेंगे।

गौरतलब है कि यूनिवर्सिटी के आईएचएस विभाग में पिछले करीब सात साल से सौ से ज्यादा शोधकर्ताओं द्वारा किया गया शोधकार्य फाइलों के रूप में सड़ रहा है। इसमें हिमालय की स्थिति, यहां की जलवायु, भौगोलिक परिस्थिति, प्रदेश की संस्कृति, जैविक तत्वों और विज्ञान आदि विषयों पर किया गया शोध शामिल है। इनमें से विभाग ने अभी तक सिर्फ 25 पुस्तकों के माध्यम से अनुसंधान को प्रकाशित किया है जबकि डेढ़ सौ से ज्यादा रिपोर्टें अभी भी विभाग में बेकार पड़ी हैं।

शोधकार्य के प्रकाशित होने से शोर्धकर्ताओं को भी इस क्षेत्र में और बेहतर करने का प्रोत्साहन मिलेगा और छात्रों में इसके लिए रुचि बढ़ेगी। करीब से हिमालय जानने का मौका : अनुसंधान के प्रकाशित होने से लोगों को अब बाजार में भी आसानी से ये शोधकार्य उपलब्ध होंगे।

इनको पढ़कर लोग न सिर्फ हिमालय को और करीब से जान पाएंगे बल्कि विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृति और दूसरे विषयों के बारे में भी जानकारी जुटा पाएंगे। इसके लिए एक जैसे विषय से संबंधित शोधकार्य को पुस्तक में प्रकाशित किया जाएगा। दूसरी ओर शोधार्थी भी विवि की इस पहल को बेहतर मान रहे हैं। शोधार्थियों का मानना है कि इससे उन्हें कई नए पहलुओं का ज्ञान होगा।

अगले माह प्रकाशित होगी पुस्तक
विभाग ने इन शोधकार्यों को प्रकाशित करने के लिए पूरी तैयारी कर ली है और अगले माह तक एक किताब प्रकाशित करने की योजना है। इसमें सबसे पहले विज्ञान से जुड़े अनुसंधान को प्रकाशित किया जाएगा। इसके बाद दूसरे अनुसंधान को भी प्रकाशित किया जाएगा। इसके लिए इन शोध रिपोटरें को अपडेट और एडिट किया जाएगा जिसके बाद इसे प्रकाशन के लिए भेजा जाएगा(दैनिक भास्कर,शिमला,7.11.2010)।

1 टिप्पणी:

  1. शोध प्रबंधों का प्रकाशन तो हो जाएगा लेकिन बाजार में इनके खरीदार कितने होंगे? इसके लिए भी सरकारी खरीद का ही सहारा लेना पड़ेगा।

    जवाब देंहटाएं

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।