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15 नवंबर 2010

मध्यप्रदेशःआयुर्वेदाचार्यों के वेतन निर्धारण में भारी विसंगति

बीस साल की नौकरी के बाद भी अगर एक आयुर्वेद प्राचार्य का वेतन आज भर्ती होने वाले शिक्षक के बराबर हो तो इससे बड़ी विषमता क्या हो सकती है। लेकिन, सरकार का ध्यान इस पर नहीं है। उधर आयुर्वेद कालेजों के शिक्षक नौकरी छोड़ अन्य प्रदेशों में जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें यहां दो गुना-तिगुना वेतन दिया जा रहा है। सेंट्रल काउंसिल आफ इंडियन मेडिसीन की सिफारिश व आयुर्वेद शिक्षक संघ की दर्जनों मांगों के बाद भी इस पर कोई विचार नहीं किया जा रहा है। भारतीय चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने की बात तो सरकार बहुत करती है, लेकिन हकीकत में उसका ध्यान इस ओर नहीं है। इसकी बानगी सिर्फ इसी बात से मिल जाती है कि प्रदेश के सरकारी आयुर्वेद कालेजों में कार्यरत लेक्चर से लेकर प्राचार्य तक एक ही वेतन पर काम कर रहे हैं। यहां तक कि कमोबेश उनका ग्रेड पे भी लगभग बराबर है। आयुर्वेद कालेज के व्याख्याता, रीडर, प्रोफेसर व प्राचार्य का वेतन 15600 से 39100 रुपए है। इसके अलावा प्राचार्य का ग्रेड पे 7600, प्रोफेसर और रीडर का 6600 और व्याख्याता का 5400 रुपए है। यह हालात शुरू से ही बने हुए हैं। आयुर्वेद कालेज के शिक्षकों को न तो यूजीसी वेतनमान दिया जा रहा है और न ही मप्र मेडिकल कालेज के शिक्षकों को दिया जाने वाला वेतनमान। इस कारण उनका वेतन डिग्री कालेज के शिक्षक से भी कम है, जबकि उन्हें शिक्षण के साथ अस्पताल संबंधी कार्य भी करने पड़ते हैं। 

आयुर्वेद शिक्षक संघ द्वारा हाईकोर्ट में भी वेतन विसंगति को लेकर याचिका दायर की गई थी। इस पर कोर्ट ने यूजीसी या मेडिकल कालेज के शिक्षकों के बराबर वेतनमान देने के निर्देश दिए थे। इसके अलावा संचालनालय भारतीय चिकित्सा पद्धति द्वारा भी इस संबंध में चार सदस्यीय कमेटी बनाई गई है। उधर सेंट्रल काउंसिल आफ इंडियन मेडीसीन (सीसीआईएम) ने भी प्रदेश के आयुर्वेद शिक्षकों को कम से कम यूजीसी वेतनमान देने हेतु निर्देशित किया है। इन सब कवायदों के बाद भी आयुर्वेद शिक्षक स्कूल शिक्षक के बराबर वेतनमान पर काम कर रहे हैं। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में आयुर्वेद शिक्षकों को यूजीसी वेतन मान दिया जा रहा है। इस कारण करीब दस सालों के भीतर कई कई आयुर्वेद शिक्षक कालेज छोड़कर चले गए हैं(दैनिक जागरण,भोपाल,15.11.2010)।

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