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13 नवंबर 2010

राजनीति के खेल ने संस्कृत का रास्ता रोका

पिछले दिनों दिल्ली में संस्कृत नाटकों के महाकुंभ 'कौमुदी महोत्सव' का आयोजन किया गया। इसमें देश भर के संस्कृत संस्थानों और प्रसार भारती की ओर से प्रसिद्ध नाटककार भास के नाटकों का मनमोहक मंचन किया गया। उत्सव के आयोजक राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के कुलपति और संस्कृत के जाने-माने कवि प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी से संस्कृत के प्रचार-प्रसार को लेकर कमला भारद्वाज की बातचीत।

कौमुदी महोत्सव में संस्कृत नाटकों के मंचन का क्या उद्देश्य है?
रंगमंच हमारी शिक्षा का माध्यम है। संस्कृत नाट्यशास्त्र की प्राचीन काल से ही समृद्ध परंपरा रही है। कला और सौंदर्य की परंपरा रही है। रंगमंच पर अभिनय करने से छात्रों में अभिव्यक्ति की क्षमता बढ़ती है।

टीवी सीरियलों के इस युग में नाट्य विधा की क्या प्रासंगिकता है?
आजकल टीवी सीरियलों के प्रति रुचि बढ़ी है मगर संस्कृत नाटकों के मंचन से संस्कृत का संस्कार जाग्रत होता है। संस्कृत बोलचाल की भाषा है। मृत भाषा नहीं है, यह भी स्पष्ट होता है। ग्रीस आदि देशों में भी नाटकों के मंचन की परंपरा है। विश्व के कला जगत में हमारी विशेष प्रतिष्ठा है। भारतीयता, प्राचीन परंपराओं, तत्कालीन समाज का चित्र प्रस्तुत करने में नाट्य विधा की अहम भूमिका है। दर्शकों एवं छात्रों को संस्कारित करना तथा संस्कृत रंगमंच की एक नई दिशा का उद्बोधन करना संस्कृत नाटकों के मंचन से सरल हो जाता है।

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय जैसी सुविख्यात संस्थाओं में संस्कृत नाटक की क्या स्थिति है?
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय समय-समय पर प्रासंगिक विषयों से संबद्ध नाटकों का मंचन कराता रहा है। पिछले कुछ सालों से वहां संस्कृत रंगमंच पाठ्यक्रम में शामिल था परंतु इस वर्ष से संभवत: उसे हटाने पर विचार किया जा रहा है। इस प्रकार की विचारधारा समाप्त होनी चाहिए। आज की मांग है कि संस्कृत भाषा के नाटकों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंचन किया जाए। इससे संस्कृत को वैश्विक भाषा के रूप में विकसित करने में सहयोग मिलेगा।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्कृत का प्रचार आवश्यक है, पर देश में संस्कृत के पिछड़ने के क्या कारण हैं?
देश में संस्कृत के पिछड़ने का मुख्य कारण शिक्षा-व्यवस्था में पारंपरिक शिक्षा की कमी है। ग्लोबलाइजेशन में शक्ति का प्रभाव है, जिसमें पारंपरिक मूल्य कम हो रहे हैं। आधुनिक शिक्षा समाज में संस्कृत की स्थिति जटिल है। वास्तव में 'राजनीति के खेल' में संस्कृत पिछड़ रही है। सुसंस्कृत समाज, आधुनिक शिक्षा-प्रणाली इसके लिए जिम्मेदार है और यह घातक है। स्कूलों में संस्कृत के स्थान पर फेंच और जर्मन भाषाएं पढ़ने के लिए बच्चों को विवश किया जा रहा है। संस्कृत को पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाना चाहिए तथा अतिरिक्त भाषा के रूप में विदेशी भाषाएं पढ़ाई जानी चाहिए। आजकल प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में संस्कृत को काफी कम स्थान दिया जा रहा है। आकाशवाणी और दूरदर्शन में संस्कृत वार्ता और अन्य कार्यक्रमों को नाममात्र का समय दिया गया है।

संस्कृत पढ़ने के बाद जॉब के लिए क्या-क्या अवसर मिल सकते हैं?
संस्कृत को ज्योतिष, वास्तु एवं कर्मकांड की भाषा समझा जाता है, परंतु संस्कृत की वेद, व्याकरण, दर्शन, धर्मशास्त्र आदि विधाएं आजकल अनेक क्षेत्रों में व्यवसाय दिला सकती हैं। वनस्पति विज्ञान, इंजीनियरिंग, सौंदर्यशास्त्र, वृक्ष विज्ञान, कृषि विज्ञान, जल चिकित्सा, मौसम विभाग आदि के क्षेत्रों में संस्कृत की विधाएं उपयुक्त हैं। धर्मशास्त्र पर तो आज की पूरी न्याय प्रणाली आधारित है। सृष्टि के उद्भव का समय जानने के लिए लगाई गई 'महामशीन' दर्शन के 'अणु सिद्धांत' पर कार्य कर रही है।

संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए क्या प्रयत्न किए जा सकते हैं?
संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए आधुनिक वैज्ञानिकों एवं संस्कृत के विद्वानों को एक साथ कार्य करना चाहिए। आज के लोकप्रिय प्रबंधन आदि विषयों को संस्कृत के साथ जोड़ना होगा। इस दृष्टि से वैदिक गणित, भगवद्गीता एवं अन्य शास्त्र बहुत उपयोगी हैं। सभी संस्कृत विद्वानों को आधुनिक सहायकोपकरणों जैसे कंप्यूटर का समुचित प्रयोग छात्रों और विद्वानों के लिए सुलभ कराना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा राजाश्रय प्राप्त होना। सरकार को संस्कृत संबंधी नीतियों में कुछ परिवर्तन करना होगा जैसा कि हाल ही में उत्तराखंड प्रशासन ने किया है। उसने संस्कृत को द्वितीय राजभाषा माना है।

इसके लिए आपके संस्थान की ओर से क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ अनौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था दूरस्थ शिक्षा एवं पत्राचार कार्यक्रमों के द्वारा की जा रही है। ऑनलाइन कोचिंग की व्यवस्था की जा रही है। सेल्फ लर्निंग मैटीरियल भी उपलब्ध कराया जा रहा है। संस्कृत आधारित नॉलेज सेंटर बनाए जाने का भी प्रयास है।

संस्कृत कंप्यूटर की भाषा है, इससे संस्कृत के प्रचार में क्या सहायता मिलती है?
कंप्यूटर के आने से संस्कृत भाषा में भी नई संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं। कंप्यूटर के लिए पाणिनीय व्याकरण सबसे उपयुक्त है। अनुवाद की माध्यम भाषा के रूप में भी संस्कृत उपयोगी है। आकाशवाणी से प्रकाशित होने वाले समाचार भी ऑनलाइन संस्कृत में सुने जा सकते हैं। पारंपरिक शिक्षा संस्थानों में कंप्यूटर के सही एवं लाभप्रद प्रयोग की व्यवस्था से संस्कृत का प्रचार-प्रसार करने में कंप्यूटर भी सहायक है।
(नवभारत टाइम्स,दिल्ली,12.11.2010)

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