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06 नवंबर 2010

विदेशों में बेहतर कैंपस लाइफ के लिए

यदि आप विदेश में पढ़ाई करने जा रहे हैं तो आपको कई बातों का ध्यान रखना पड़ेगा। जैसे ही आप एयरपोर्ट पर अपने परिवार को अलविदा कहते हैं, तबसे ही मान लीजिए कि अब आपकी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं। क्या आप अपने इस नए जीवन के लिए तैयार हैं?

छात्रों को यह समझ लेना चाहिए कि अपने माता-पिता और भाई-बंधुओं के साथ अब तक जिंदगी का जो आराम था, वह अब नहीं रहेगा। वहां कोई भी आपको यह बताने वाला नहीं रहेगा कि ढंग से बोलो, अपने पासपोर्ट, रकम और जरूरी दस्तावेजों को संभालकर रखो, अपने यात्रा संबंधी दस्तावेजों और यूनिवर्सिटी द्वारा भेजे गए स्वीकृति पत्र की एक प्रतिलिपि भी रखो इत्यादि-इत्यादि।

अमूमन विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों को वहां के माहौल और शिक्षा तकनीक के बारे में बताने के लिए एक ओरिएंटेशन वीक आयोजित किया जाता है। बेहतर यही होगा कि आपने जिस यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है, वहां ओरिएंटेशन वीक से पहले ही पहुंच जाएं।

ओरिएंटेशन वीक आपके लिए काफी मददगार रहेगा क्योंकि इससे आपको अपने बैचमेट्स, क्लासमेट्स के साथ मिलने का मौका मिलेगा और सीनियर्स के अलावा अकादमिक व एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ के साथ शुरुआती संपर्क और नेटवर्क तैयार करने में भी मदद मिलेगी।

स्थानीय छात्रों के अलावा अन्य देशों के छात्रों से मेलजोल बढ़ाने और स्थानीय संस्कृति के बारे में समझने का यह अच्छा मौका है। ज्यादातर विश्वविद्यालयों में छात्रों के लिए ओरिएंटेशन वीक में कम से कम दो दिन उपस्थिती अनिवार्य है।

क्लासरूम संस्कृति

अंतरराष्ट्रीय क्लासरूम हमारे क्लासरूम्स से काफी अलग होते हैं। जो छात्र विदेश जाने की तैयारी कर रहे हैं, वे इसके बारे में पहले ही समझ लें तो बेहतर है। वहां क्लासरूम में छात्रों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे निष्क्रिय बैठे हुए सिर्फ प्रोफेसरों की बातों को सुनते रहें।

उन्हें एक्टिव होना चाहिए, वे परिचर्चाओं में हिस्सा लें। इस लिहाज से उन्हें काफी हद तक खुद अपना ट्यूटर बनना होगा। उनके लिए वहां ट्यूशन क्लासेस का कोई बैकअप नहीं होगा।

यदि आपकी इंटरनेट से कंटेट कॉपी-पेस्ट कर प्रोजेक्ट तैयार करने की आदत है तो यह अब वहां नहीं चलेगी, क्योंकि वहां इस तरह की साहित्यिक चोरी स्वीकार्य नहीं है। छात्रों को अपने विचारों को ही लिपिबद्ध करना होगा और प्रोजेक्ट के अंत में किसी हवाले से ली गई सामग्री के लिए पर्याप्त क्रेडिट भी देना होगा।

क्लासरूम में आपकी सक्रिय भागीदारी और प्राध्यापकों के साथ विकसित किए गए आपके संबंधों से आपकी सफलता की राह निर्धारित होगी। इस वजह से क्लास बंक करना, क्लास में बातचीत करना या अव्यवस्था फैलाने जैसी चीजों को वहां हल्के ढंग से नहीं लिया जाएगा।

ऐसा ही कुछ टेस्ट्स, प्रोजेक्ट जमा करने, प्रोफेसर के साथ अपॉइंटमेंट व लेक्चर्स में लेट होने के साथ भी है। लेक्चर्स के दौरान लैपटॉप का इस्तेमाल सिर्फ नोट्स लेने के लिए किया जाना चाहिए, न कि आप इस पर कोई दूसरा काम या वेब सर्फिग करने लगें। आपकी छवि अच्छी बने, इसके लिए अपने साथी छात्रों व स्टाफ के साथ हमेशा सौम्य व्यवहार करें, यहां तक कि कैफेटेरिया में भी।

हॉस्टल में रहना

क्या आप जानते हैं कि स्कॉटलैंड का राष्ट्रीय भोजन भेड़ की अंतड़ियां हैं? कैंपस में रहते समय आपको बाकी देशों से आए छात्रों के साथ अपना कमरा शेयर करना पड़ सकता हैं। इसलिए जरूरी है कि आपको दूसरों की संस्कृति की पूरी समझ हो और आपको उनका सम्मान करना भी आना चाहिए।

यदि आपकी अपने कमरे के एक कोने में बैग और दूसरे कोने में जूते फेंकने की आदत है तो इसे तुरंत सुधार लीजिए। इसी तरह छात्रों को दूसरों के साथ रहने के बाकी नियम-कायदे तय कर लेने चाहिए। चाहे यह कमरे की सफाई करने का मामला हो या कुछ और। काम का आपस में उचित विभाजन होना चाहिए।

सामाजिक व्यवहार

जरूरी है कि आप कैंपस के आसपास के माहौल को अच्छी तरह समझ लें और पहनावे, अभिवादन के तौर-तरीके, दूसरे लोगों से मिलना-जुलना, गैर-अकादमिक स्टाफ के साथ सौहार्द बनाने जैसी बातों का ख्याल रखें। छात्रों को यह सलाह दी जाती है कि वे गुटबाजी से दूर रहें और नॉन-जजमेंटल होने से बचें। उन्हें दूसरों की निजता का पूरा सम्मान करना चाहिए।जब आप स्थानीय लोगों को अपना दोस्त बनाते हैं और वे आपको अपने पारिवारिक समारोहों में आमंत्रित करते हैं तो वहां समय पर पहुंचें। किसी बिजनेस एपॉइंटमेंट में ठीक समय पर या फिर समय से थोड़ा पहले पहुंचें।

सुरक्षा का ख्याल

बड़ी मात्रा में नकदी लेकर न चलें। क्रेडिट कार्डस, चेक या ट्रैवलर्स चेक का इस्तेमाल करें। किसी दूसरे के कमरे में जाने के प्रति सजग रहें। देर रात बाहर घूमने से बचें। इसके अलावा किसी अनजान व्यक्ति की कार में न बैठें, न ही किसी अनजान शख्स को लिफ्ट दें। यदि आपके पास अपनी कार है तो इसे हमेशा सही जगह पर पार्क करें और पार्किग के वक्त लॉक करना न भूलें(दैनिक भास्कर,1.11.2010)।

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