हरियाणा के खाद्य एवं पूर्ति निदेशालय के 53 अधिकारी भ्रष्टाचार व अनियमितताओं के मामले में कानूनी पचड़े में फंसे। इन अधिकारियों को न केवल निलंबित किया गया बल्कि उनके विरुद्ध आपराधिक मुकदमे तक दर्ज हुए, लेकिन जांच पूरी होने से पहले ही इन अधिकारियों को बहाल कर दिया गया। तर्क यह दिया कि निलंबन अवधि के दौरान सरकार पर भत्तों के रूप में अधिक आर्थिक बोझ पड़ता है। इसलिए अधिकारियों का ज्यादा देर निलंबन उचित नहीं है।
सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी में खाद्य व पूर्ति निदेशालय में अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। हालांकि इनमें से कुछ अधिकारी अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
पूर्ति निदेशालय ने मुख्य सचिव की इस दलील का खुलासा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी में ही किया है। सिरसा की बैंक कालोनी निवासी कृष्णा ग्रोवर ने खाद्य एवं पूर्ति निदेशालय से भ्रष्ट व आपराधिक रिकार्ड वाले अधिकारियों के बारे में जानकारी मांगी थी।
निदेशालय के राज्य जनसूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक 14 राजपत्रित अधिकारी ऐसे हैं, जो इन अनियमितताओं के दोषी पाए गए। इन अधिकारियों पर गेहूं खरीद में गोलमाल, चावल मिलों को धान व चावल की सप्लाई में हेराफेरी, गरीबी रेखा से ऊपर जीवन जीने वाले लोगों के गेहूं आवंटन में घपला, सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग और राशन डिपुओं के निरीक्षण में कोताही बरतने के आरोप हैं। कुछ अधिकारियों को विभागीय जांच में आरोप मुक्त किया गया तो अधिकतर को मुख्य सचिव की पांच मई 1959 तथा उसके बाद समय-समय पर जारी हिदायतों के आधार पर जांच पूरी होने से पहले ही पाक-साफ करार दे दिया गया।
सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत उपलब्ध जानकारी में मुख्य सचिव के आदेशों में दर्ज उस टिप्पणी का भी उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि अधिकारी अथवा कर्मचारी का निलंबन इसलिए किया जाता है ताकि वह सरकारी दस्तावेजों से छेड़छाड़ न कर सके। सरकारी अधिकारी व कर्मचारी को अनावश्यक निलंबित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि सरकार को निलंबन अवधि के दौरान बिना कार्य किए संबंधित अधिकारी को गुजारा भत्ता देना पड़ता है।
पूर्ति निदेशालय के सात अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमे भी दर्ज हुए हैं। ज्यादातर मामले गेहूं घोटाले से जुड़े हैं। यह अधिकारी कैथल, पानीपत और नारनौल के हैं। इन अधिकारियों के विरुद्ध दर्ज मुकदमे रद करने संबंधी आदेशों के बारे में सूचना देने में असमर्थता जता दी गई है। कुछ मामलों में अदालत अथवा सीबीआई से भी अधिकारी बहाल बताए गए हैं।
पूर्ति निदेशालय के विभिन्न केंद्रों पर कार्यरत 32 अधिकारी को थोड़े-थोड़े समय के लिए निलंबित कर उन्हें फिर बहाल कर दिया गया है। इन अधिकारियों पर भी ड्यूटी से गैर हाजिर रहने, तिरपाल खरीद घोटाले, राशन वितरण में अनियमितता, स्टाक को खुर्दबुर्द करने और अधिकारियों को गुमराह करने के आरोप हैं(दैनिक जागरण संवाददाता,चंडीगढ़,12.11.2010)।
ये भारत देश है मेरा
जवाब देंहटाएंजहां डाल-डाल पर उठाईगीरों का है बसेरा..