मध्याह्न भोजन योजना विभाग ने अपनी योजना को बेहतर करने के लिए फिर एक नयी योजना शुरू की है। राज्य परियोजना निदेशक ने सूबे के सभी बेसिक शिक्षा के अधिकारियों को स्कूलों में मिड डे मील के निरीक्षण के दौरान फोटोग्राफी कराने का निर्देश दिया है। उनका कहना है कि फोटोग्राफी से मिड डे मील का भौतिक सत्यापन हो जायेगा। हालांकि यह योजना भी अभी प्रदेश में ट्रायल के रूप में ही लागू होगी।
परिषदीय विद्यालयों में हर बच्चों को मिलने वाले मिड डे मील में आ रही खामियों को दुरुस्त करने के लिए विभाग ने पुन: कमर कस ली है। मालूम हो कि अनुश्रवण प्रणाली से लेकर कई अन्य निगरानी योजनाएं बनायी गयीं लेकिन वे सभी शुरू होने के पहले ही धराशायी हो गयीं। आलम यह है कि मिड डे मील में आने वाली समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। ग्राम प्रधान और प्रधानाध्यापक की आपसी खींचतान में कुछ विद्यालयों में महीनों भोजन ही नहीं बनता तो जहां बनता है वहां बच्चों को सिर्फ खिचड़ी ही मिलती है। उच्चाधिकारियों द्वारा समय- समय पर जांच भी होती रही है। निरीक्षण में सैकड़ों विद्यालयों में चूल्हा ही नहीं जलता पाया गया। अधिकारियों ने एबीएसए को जिम्मेदार माना। कुछ पर कार्रवाइयां भी हुई। इसके बाद भी खामियां हैं कि कम होने का नाम नहीं ले रहीं। ऐसे में माध्याह्न भोजन के राज्य परियोजना निदेशक, लखनऊ ने फिर से एक नयी योजना तैयार की है। विभागीय आधिकारिक सूत्रों की मानें तो निदेशक ने सूबे के सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को अभी फिलहाल मौखिक रूप से निर्देशित किया है कि वे जांच के दौरान स्वयं भोजन करते बच्चों की फोटोग्राफी करायें। लखनऊ भेजे जाने वाली रिपोर्ट के साथ फोटोग्राफी भी भेजें ताकि मिड डे मील का भौतिक सत्यापन हो सके। इसके बाद संबंधित कार्रवाइयां होगी। अब देखना है कि यह योजना कितना कारगर साबित होती है(दैनिक जागरण संवाददाता,गोरखपुर,12.11.2010)।
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