वैश्विक मंदी के बाद तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था ने रोजगार की नई संभावनाओं को एक बार फिर पैदा कर दिया है। मंदी के वक्त कुछ क्षेत्रों में ३० फीसदी से अधिक लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा था, तीन साल बाद वहीं नौकरियों की अदला-बदली की दर (एट्रिशन रेट) का सिलसिला एक बार फिर देखा जा रहा है। इसका सबसे पहला शिकार सेवा क्षेत्र है जहां दोबारा एट्रिशन रेट ३० से ३५ फीसदी पर पहुंच गया है।
उद्योग संगठन एसोचैम बिजनेस बेरोमीटर एबीबी द्वारा "विकसित अर्थव्यवस्था में एट्रिशन की समस्या" पर किए गए अध्ययन के मुताबिक, २०१० की पहली छमाही में भारतीय कंपनियां ३० फीसदी तक की अदला-बदली जैसी परेशानी का सामना कर रही हैं। इस अध्ययन में १३७ एचआर वरिष्ठ अधिकारियों को शामिल किया गया है। अध्ययन के मुताबिक, सेवा या वित्तीय क्षेत्र में पहली छमाही के दौरान एट्रिशन रेट ३५ फीसदी तक पहुंच गया है जिसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी बैंकिंग और व्यापार सेवा क्षेत्र की है। सर्वे विश्लेषकों के मुताबिक, आईटी और आईटीस क्षेत्र में अदला-बदली की प्रवृत्ति २४ फीसदी है, जबकि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का प्रदर्शन पहली छमाही के दौरान काफी अच्छा रहा है लेकिन वहां भी एट्रिशन रेट करीब १३ फीसदी तक पहुंच गया है।
एसोचैम के महासचिव डी.एस. रावत ने कहा कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में आर्थिक सुधार और विश्वास बढ़ने से रोजगार बाजार को भी काफी प्रोत्साहन मिला है जिसकी वजह से नियोक्ताओं के लिए मुआवजा स्तर बेंचमार्क और इनाम संरचना को उन्नत करना जरूरी हो गया। कंपनियों ने नई विस्तार योजना के तहत ठंडे बस्ते में पड़े मसलों को फिर गर्म कर दिया। एचआर अधिकारियों को सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा की जरूरी पड़ने लगी जिनकी क्षमताओं का उपयोग कंपनी के विकास में किया जा सके। सर्वे में पाया गया कि ज्यादातर अदला-बदली मध्यम स्तर के कर्मचारियों में की जा रही है जिनका कार्य अनुभव दो से चार साल के बीच है। सबसे ज्यादा स्थायी कर्मचारी समूह १२ से १५ साल के अनुभवी लोगों का है जो कि अपनी नौकरी और अपनी कंपनी में खुद को सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं।
सर्वे के मुताबिक, ५९ फीसदी मामलों में तत्काल वेतन पैकेज बढ़ोतरी नौकरी बदलने का कारण है। हालांकि, ६२ फीसदी एचआर अधिकारियों के मुताबिक, विकास का अनुमान काफी ज्यादा है जो कि कर्मचारियों की तीव्र गतिविधियों का कारक है। एट्रिशन से बचने के लिए कंपनियों की रणनीति पर ८५ फीसदी लोगों ने कहा कि वह साल भर खाली जगहों पर भर्ती करते रहते हैं। इसके अलावा कंपनी को एट्रिशन रेट से सुरक्षित रखने के लिए भी जानबूझकर कुछ लोगों की नियुक्ति की जाती है। कंपनियों द्वारा वरिष्ठ स्तर के कर्मचारियों के लिए औसत वेतन इजाफा २५ से ३० फीसदी के बीच रहता है जबकि मध्यम स्तर के कर्मचारियों के लिए वेतन वृद्धि १० से १५ फीसदी रहती है।
एचआर अधिकारियों के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में जॉब पोर्टल और ऑनलाइन जॉब सर्च विकल्प देने वाले कंसलटेंट्स के जरिए ७० फीसदी नौकरियों को मंजूरी मिली है। सेवा क्षेत्र की बड़ी कंपनी के वरिष्ठ एचआर अधिकारी ने कहा कि भारत में जॉब पोर्टल और कंसलटेशन कारोबार बढ़ने से जो लोग नौकरी बदलने के बारे में सोचते हैं वे तेजी से अपनी नौकरी बदल लेते हैं। मुझे लगता है कि यह मुद्दा कर्मचारी और नियोक्ता के बीच का है जिसका संबंध वेतन, कार्यभार, रुचि क्षेत्र बदलना है, जिससे अदला-बदली की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। रावत ने कहा कि नए कर्मचारियों की नियुक्ति और प्रशिक्षण से संबंधित लागत का स्तर २००९ के मुकाबले २०१० में काफी ज्यादा है। ६५ फीसदी एचआर अधिकारियों ने बताया कि उच्च एट्रिशन दर से स्थायी कर्मचारियों का आत्मविश्वास प्रभावित होता है साथ ही कार्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। वैश्विक स्तर पर भारतीयों की रोजगार संभावनाएं आगामी एक साल में काफी ज्यादा सकारात्मक हैं। एक सर्वे के मुताबिक, हालांकि २०१० की तीसरी तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था और व्यय क्षमता में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। नेल्सन वैश्विक ग्राहक विश्वास सर्वे के अनुसार १२ माह में दस में से ९ भारतीय (९१ फीसदी) अपनी नौकरी संभावनाओं के प्रति सकारात्मक हैं। नौकरी संभावनाओं में विश्वास भारतीयों के वित्तीय स्तर पर सकारात्मक होने का सूचक भी है। सर्वे में कहा गया है कि १० में से आठ भारतीय (८३ फीसदी) अपने व्यक्तिगत आर्थिक स्थिति के प्रति आगामी १२ माह के दौरान काफी सकारात्मक हैं और यह आंकड़ा वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा देखा जा रहा है। रिपोर्ट में हालांकि कहा गया है कि साल-दर-साल के हिसाब से इस वित्त वर्ष के पहली दो तिमाहियों की वृद्धि दर काफी स्थिर रही है। देश की अर्थव्यवस्था के प्रति भारतीयों के सकारात्मक रुख में कोई इजाफा नहीं हुआ है, वहीं वैश्विक रुख में गिरावट दर्ज की गई है(आशुतोष वर्मा,मेट्रो रंग,नई दुनिया,दिल्ली,8.11.2010)।
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