आजीविका के विषय में दशम भाव को देखा जाता है। दशम भाव अगर खाली है तब दशमेश जिस ग्रह के नवांश में होता है, उस ग्रह के अनुसार आजीविका का विचार किया जाता है। द्वितीय एवं एकादश भाव में ग्रह अगर मजबूत स्थिति में हो तो वह भी आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार व्यक्ति की कुण्डली में दशमांश शुभ स्थान पर मजबूत स्थिति में होता है तो यह आजीविका के क्षेत्र में उत्तम संभावनाओं का दर्शाता है। दशमांश अगर षष्टम, अष्टम द्वादश भाव में हो अथवा कमजोर हो तो यह रोजी-रोजगार के संदर्भ में कठिनाई पैदा करता है।
जैमिनी पद्धति के अनुसार व्यक्ति के कारकांश कुण्डली में लग्न स्थान में सूर्य या शुक्र होता है तो व्यक्ति राजकीय पक्ष से सम्बन्धित कारोबार अथवा सरकारी नौकरी करता है। कारकांश में चन्द्रमा लग्न स्थान में हो और शुक्र उसे देखता हो तो अध्यापन के कार्य में सफलता मिलती है। कारकांश में चन्द्रमा लग्न में होता है और बुध उसे देखता है तो यह चिकित्सा के क्षेत्र में बेहतर संभावनाओं को दर्शाता है। कारकांश में मंगल के लग्न स्थान पर होने से व्यक्ति अस्त्र, शस्त्र, रसायन एवं रक्षा विभाग से जुड़कर सफलता प्राप्त करता है। जिस व्यक्ति के बुध होता है वह कला अथवा व्यापार में सफलता पाता है। कारकांश में लग्न स्थान पर अगर शनि या केतु है तो इसे सफल व्यापारी होने का संकेत समझना चाहिए। सूर्य और राहु के लग्न में होने पर वह रसायनशास्त्री अथवा चिकित्सक हो सकता है। कारकांश से तीसरे, छठे भाव में अगर पाप ग्रह स्थित है तो ऎसे में कृषि को आजीविका का संकेत मानना चाहिए(राजस्थान पत्रिका,3.10.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।