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27 नवंबर 2010

वैज्ञानिक शोध में जालसाजी

ज्ञान के क्षेत्र में भारत ने मानव सभ्यता को अनेक उपहार प्रदान किए हैं। शून्य के आविष्कार से लेकर लोहा बनाने का गुर भारत ने ही दुनिया को सिखाया। खगोलशास्त्र के हम जनक रहे हैं और चिकित्साशास्त्र की नींव भी हमने ही रखी है। लेकिन दुर्भाग्य है कि कुछ भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा नकली शोध प्रस्तुत किए जाने के चलते आज भारत का नाम दुनिया में बदनाम हो रहा है। अमेरिका में किए गए एक नए अध्ययन के मुताबिक वैज्ञानिक परिणामों की रिपोर्टिंग करते समय अन्य देशों की तुलना में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा धोखाधड़ी करने की ज्यादा संभावना होती है। इस अध्ययन के सूत्रधार आर. ग्रांट स्टीन का कहना है कि भारत में "गलती से जालसाजी" का अनुपात दूसरे देशों की अपेक्षा निश्चित रूप से ज्यादा है। यह रिपोर्ट "जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स" में प्रकाशित हुआ है। इस निष्कर्ष तक पहुंचने के पहले स्टीन ने पिछले १० वर्षों में वापस लिए गए लाइफ साइंस से संबंधित अकादमिक शोधों की संख्या का विश्लेषण किया और पाया कि वापस लिए गए ५० भारतीय शोध पत्रों में से १७ शोध पत्रों में किसी न किसी तरह की जालसाजी की गईं है। इस विश्लेषण का सत्यापन स्वतंत्र वैज्ञानिकों ने भी किया है।यह निश्चित रूप से हमें शर्मसार करने वाली बात है क्योंकि दुनिया में इसका संदेश गलत जाएगा और हमारी वैज्ञानिक उपलब्धियों पर संदेह करने का यह आधार प्रदान करेगा। ऐसे शोधकर्ताओं को समझना चाहिए कि उनकी ऐसी करतूतों से देश के अन्य ईमानदार शोधकर्ताओं को भी संदेह की नजर से देखा जा सकता है। बहरहाल, ऐसा नहीं है कि अन्य देशों के वैज्ञानिक कोई दूध के धुले हैं। इस मामले में जापान और अमेरिका की स्थिति भी कुछ-कुछ भारत जैसी ही है। जहां २६० अमेरिकी शोध पत्रों में से ८४ जाली पाए गए हैं, वहीं जापान के ६० शोध पत्रों में १८ नकली निकले हैं। लेकिन यह कहकर हम अपना बचाव नहीं कर सकते क्योंकि मामला विश्वसनीयता का है। इसलिए वैज्ञानिक शोधों में जालसाजी करने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की जरूरत महसूस होती है। दरअसल, हमारे यहां वैज्ञानिक जालसाजी रोकने के लिए कोई कानूनी प्राधिकार नहीं है, जैसा कि अमेरिका में है। इसलिए अगर कोई शोधकर्ता अपने शोध में धोखाधड़ी भी करता है तो उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई करनी संभव नहीं होती। अतः सरकार को ऐसा कोई न कोई प्राधिकार अवश्य बनाना चाहिए जो शोध में की जानेवाली जालसाजी पर नजर रखे(संपादकीय,नई दुनिया,27.11.2010)।

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