प्रदेश के कालेजों में सालों से खाली असिस्टेंट प्रोफेसरों व प्रोफेसरों के पद जल्द ही भरे जाएंगे। उच्च शिक्षा विभाग ने एक साल में दो हजार पदों पर भर्ती करने का फैसला किया है। इनमें से अधिकांश पद असिस्टेंट प्रोफेसरों के रखे गए हैं। इन पदों पर भर्ती के लिए लोक सेवा आयोग को प्रस्ताव भेज दिए गए हैं। जानकारी के अनुसार प्रदेश में करीब डेढ़ दशक से सहायक प्राध्यापकों की भर्ती नहीं हो सकी है। इसका सर्वाधिक असर कस्बाई क्षेत्रों के कालेजों पर पड़ा है। अधिकांश कस्बाई कालेज अतिथि शिक्षकों के हवाले हैं। कई कालेजों में प्राचार्य का प्रभार देने के भी लाले पड़े हैं। इसका सीधा असर शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ रहा है। गंभीर स्थिति को देखते हुए शासन ने असिस्टेंट प्रोफेसर के साथ ही प्रोफेसरों के पद पर भी सीधी भर्ती करने का निर्णय लिया है। इस पर कार्रवाई भी शुरू कर दी गई है। केबिनेट द्वारा मंजूर प्रोफेसरों के 752 पदों में से पचास प्रतिशत पर भर्ती प्रक्रिया चल रही है। इन 378 पदों के लिए इनके प्रस्तावों पर एमपी पीएससी ने प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। विधि और सैन्य विज्ञान के लिए चयन सूची भी जारी हो चुकी है। अब प्रोफेसरों के शेष 50 फीसदी के साथ ही सहायक प्राध्यापकों के पदों के प्रस्ताव भी पीएससी को भेजे जा रहे हैं। करीब 1200 पदों पर एक ही साल में भर्ती का लक्ष्य रखा जा रहा है। प्रमोशन की प्रक्रिया भी ठप : सहायक प्राध्यापक के करीब 400 पदों पर आखिरी बार 1994 में भर्ती की गई थी। यह सब भी पदोन्नत हो चुके हैं। सबसे बुरी हालत प्रोफेसरों की ही है। पूर्व में पदोन्नत सभी प्रोफेसरों को विभाग द्वारा प्राचार्य बना दिया गया है। अब प्रदेश में प्रोफेसर ही नहीं बचे। हालत यह है कि प्रदेश में प्रोफेसरों के 773 पद स्वीकृत हैं। इनमें से मात्र चार भरे हैं और 769 पद लंबे समय से खाली हैं। जो चार प्रोफेसर उपलब्ध हैं, उनमें दो अर्थशास्त्र एवं एक-एक राजनीति शास्त्र व संगीत के हैं। फीडिंग कैडर ही उपलब्ध न होने का असर स्नातक और स्नातकोत्तर प्राचार्य के पदों पर भी पड़ रहा है। निचले क्रम में दावेदार न होने से इन पदों के लिए भी उम्मीदवार नहीं मिल पा रहे हैं। यह सभी पदोन्नति के पद हैं, इसलिए इन्हें भरने के लिए सहायक प्राध्यापकों के पद पर भर्ती की जाना अनिवार्य हो गई है(दैनिक जागरण,भोपाल,२७.११.२०१०)।
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