चाहे पोषण आहार का मामला हो या फिर विभाग की प्रमुख सचिव के यहां से आयकर छापे में करोड़ों रुपए मिलने की बात, महिला एवं बाल विकास विभाग इन दिनों सुर्खियों में है। इस विभाग में घोटाले और घोटालेबाज अफसरों के कारनामों की फेहरिस्त काफी लंबी है। इसी फेहरिस्त में एक और कारनामा जुड़ा हुआ है। यह मामला विभाग के अधिकारियों को नियम विरुद्ध पदोन्नति देने से संबंधित है। विभाग में बैठे आला अफसरों ने अपनों को उपकृत करने के चक्कर में डीपीसी के लिए राजपत्र में दिए गए नियमों की धज्जियां उड़ाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। महिला एवं बाल विकास विभाग में 1998 से 2008 तक हुई विभागीय पदोन्नति समितियों की बैठकें केवल औपचारिकता समझ में आती हैं। इन बैठकों में जहां पदोन्नति के लिए निर्धारित नियमों की अनदेखी की गई, वहीं कई ऐसे अधिकारियों को पदोन्नति दे दी गई जो इस लायक नहीं थे।
दैनिक जागरण के पास इससे संबंधित दस्तावेज हैं जो विभाग में समय-समय पर हुई पदोन्नतियों पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। महिला बाल विकास विभाग की 22 अप्रैल 1998 को इंदौर में हुई डीपीसी में इन नियमों को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया। उस समय डीपीसी समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोक सेवा आयोग अध्यक्ष ओपी मेहरा, विभाग की सचिव रंजना चौधरी, आयुक्त टी राधाकृष्णन और संभागीय कार्यक्रम अधिकारी ने डीपीसी की थी। इस डीपीसी में जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी और सहायक संचालक पद से उप संचालक पद के लिए डीपीसी की गई थी। यह डीपीसी द्वितीय से द्वितीय श्रेणी के लिए हुई थी। डीपीसी समिति ने इसमें योग्यता सह वरिष्ठता के सिद्धांत पर पदोन्नति सूची जारी की। 27 जुलाई 1998 में प्रकाशित मप्र राजपत्र असाधारण क्रमांक 402 में सामान्य प्रशासन विभाग ने विभागीय पदोन्नति के लिए आधार का निर्धारण किया है। इसके तहत द्वितीय श्रेणी से प्रथम श्रेणी के पदों पर पदोन्नति वरिष्ठता सह उपयुक्तता के आधार पर किए जाने के निर्देश हैं। इसके अलावा भी बाद में हुई डीपीसी में भी नियमों को दरकिनार कर अपनों को उपकृत करने का प्रयास किया गया है।
मंत्री के यहां अटकी पड़ी हैं फाइलें :
डीपीसी में हुई अनियमितताओं को लेकर हुई शिकायतों की फाइलें विभागीय मंत्री रंजना बघेल के यहां विचार के लिए पड़ी हुई हैं। सूत्रों के अनुसार पद न होने के बावजूद पदोन्नति देने के मामले में अलंकार मालवीय और अक्षय श्रीवास्तव को संयुक्त संचालक बनाने के मामले की शिकायत के बाद करीब एक साल से फाइल कार्रवाई के लिए मंत्री के बंगले गई हुई है। इसके अलावा एचसी अग्रवाल और हेमचंद्र पांडेय को डीपीसी में अतिरिक्त संचालक बनाने के मामले की फाइल भी मंत्री के बंगले पर धूल खा रही है। मंत्री के बंगले के अलावा सामान्य प्रशासन विभाग में भी प्रज्ञा अवस्थी को रिवर्ट करने संबंधी फाइल कई दिनों से विचाराधीन है, पर इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है(मनोज सिंह राजपूत,दैनिक जागरण,भोपाल,16.11.2010)।
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