मानव संसाधन विकास मंत्रालय की गाइडलाइंस के आधार पर शिक्षा निदेशालय ने नर्सरी एडमिशन का नया फॉर्म्युला तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। निदेशालय के सूत्रों के मुताबिक, मंत्रालय ने कहा है कि राइट टु एजुकेशन एक्ट को देखते हुए एडमिशन के लिए कुछ कैटिगरी बनाई जा सकती हैं, जिनमें अप्लाई करने वालों का सिलेक्शन ड्रॉ के जरिए किया जाएगा। यानी पिछले कई बरसों से लागू 100 पॉइंट फॉर्म्युले को अब नहीं अपनाया जाएगा।
अब तक जो प्रक्रिया अपनाई जाती थी, उसमें देखने में आता था कि किसी स्कूल में 100 में से 70 पॉइंट हासिल करने वालों को एडमिशन मिलता था, तो किसी में 50 पॉइंट वालों को और इसी तरह से मेरिट लिस्ट बनती थी। लेकिन अब मेरिट नहीं बनेगी, बल्कि ड्रॉ के आधार पर सिलेक्शन होगा। इसके अलावा उम्र को लेकर कोई बदलाव करने की भी फिलहाल संभावना न के बराबर है और पिछले बरसों की तरह 3+ वाले बच्चों को ही एडमिशन मिल पाएगा।
निदेशालय के एक सीनियर अफसर ने बताया कि मंत्रालय ने कहा है कि ऐसी कैटिगरी बनाई जाएं, जो स्क्रीनिंग के दायरे में न हों। इसी को देखते हुए कौन- कौन सी कैटिगरी रखी जाए इस पर विचार किया जा रहा है। कैटिगरी में अप्लाई करने वालों का ड्रॉ के जरिए सिलेक्शन होगा। मसलन, सिबलिंग कैटिगरी में अगर किसी स्कूल के पास 10 सीटें हैं, तो देखा जाएगा कि इस कैटिगरी में कितनी अप्लीकेशन आई हैं और उनका ड्रॉ निकाला जाएगा। ड्रॉ के जरिए 10 बच्चों का सिलेक्शन होगा। अगर इनमें से कोई एडमिशन नहीं लेता, तो बची सीटों पर फिर से ड्रॉ निकाला जाएगा। इसी तरह से अगर एलुमनी कैटिगरी बनेगी, तो उसके लिए भी इसी तरह से ड्रॉ होगा। डिस्टेंस फैक्टर को लेकर भी निदेशालय विचार कर रहा है। दरअसल पिछले बरसों तक डिस्टेंस फैक्टर सबसे अहम होता था। हर स्कूल अपने 100 पॉइंट फॉर्म्युले में डिस्टेंस को 20-40 पॉइंट तक देता था। मसलन, तीन किमी में रहने वाले बच्चों को 40 और उससे ज्यादा दूर रहने वाले बच्चों को कम नंबर। डिस्टेंस फैक्टर को इस बार किस तरह से शामिल किया जाएगा, यह बड़ा सवाल है।
क्या होगा नया: कुछ कैटिगरी तय की जाएंगी (मसलन दूरी और पैरंट्स प्रोफाइल)। उनके तहत अप्लाई करने वाले बच्चों की स्क्रीनिंग होगी और उनमें से ड्रॉ के जरिए एडमिशन दिए जाएंगे।
अब तक: 100 पॉइंट फॉर्म्युले के तहत होते थे एडमिशन। इसमें इस बात के हिसाब से पॉइंट मिलते थे कि बच्चा कितनी दूर रहता है, पैरंट्स का प्रोफाइल क्या है, क्या भाई-बहन पहले से स्कूल में पढ़ रहे हैं और क्या पैरंट्स ने उसी स्कूल से पढ़ा है। इसमें स्कूल मनमर्जी करते थे(भूपेंद्र,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,26.11.2010)।
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