सोलह से बीस साल की सेवा अवधि, लेकिन आज भी गिड़गिड़ाने पर मजबूर। कहानी है नगर निगम के लगभग 22 सौ दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की जिनकी फरियाद हर बार नक्कार खाने में तूती बनकर गूंज रही है। महापौर के निर्देश, एमआईसी का संकल्प और परिषद का प्रस्ताव भी सदर मंजिल की नस्तियों में गुम हो गया। यहां तक कि अदालत के आदेश और विधानसभा के निर्देश भी गायब हैं। अब तो कर्मचारी संगठन भी पूछने लगे हैं कि इन कर्मचारियों का गुनाह क्या है। कोई 1992 में आया तो कोई दो साल बाद 1994 में। नगर निगम में लगातार भर्ती चलती रही और 22 सौ से अधिक लोग दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के रूप में सेवा में नियोजित हो गए। केन्द्रीय कर्मशाला, जलकार्य विभाग, परिवहन शाखा और यहां तक कि मुख्यालय में भी इनकी सेवाएं जारी हैं। हर माह एक मुश्त वेतन और फिर मजदूरी की नई शुरुआत। नगर निगम में कर्मचारी संगठन भी लाचार हो गए इन कर्मचारियों को कैसे न्याय दिलाएं। नगर निगम कर्मचारी कांग्रेस के नेता तंजीम अहमद दैवेभो के मामले को लेकर हाईकोर्ट गए। जहां से निर्देश दिए गए कि छह माह के अंदर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का अनुसरण कर दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित करने की कार्यवाही की जाए, लेकिन बात नहीं बनी। अब मामला उन्होंने अदालत की अवमानना के रूप में प्रस्तुत करने का मन बना लिया है। एक और कर्मचारी संगठन के नेता अशोक वर्मा भी पिछले कई सालों से दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के नियमितिकरण के प्रयास कर रहे हैं। इस मामले में महत्वपूर्ण बात यह है कि एमआईसी के अलावा नगर निगम परिषद में भी प्रस्ताव पारित हो चुका है कि दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित किया जाए। एमआईसी के कुछ सदस्य तो खुले रूप में इसे अधिकारियों की हठधर्मिता मान रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि महापौर परिषद पांच बार प्रस्ताव पारित कर चुकी है कि दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित किया जाए। 8 संकल्प नंबर 2086 में निर्देश दिए गए थे कि नियमितिकरण की कार्यवाही की जाए। 8 नगर निगम परिषद में तीन माह पहले महापौर कृष्णा गौर ने भी नियमितिकरण की मांग स्वीकार की थी। 8 2009 व 2010 में दो बार डीपीसी की जा चुकी है। लेकिन कर्मचारियों को पदोन्नति नहीं मिली। 8 22 जुलाई 2010 को हाईकोर्ट ने दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को 3 माह में नियमित करने के निर्देश दिए थे। यह अवधि बीत चुकी है। 8 नगरीय प्रशासन विभाग के आयुक्त एसएन मिश्रा ने विगत 26 अक्टूबर को सभी नगर निगमों के आयुक्तों को पत्र लिखकर दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के नियमितिकरण की सूची 30 अक्टूबर तक प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे।
उधर,नगर निगम सूत्रों से जानकारी मिली है कि अधिकारियों ने महज चार सौ लोगों की सूची तैयार की है। जिसमें से दो सौ सफाई कामगारों को नियमित किए जाने की बात की जा रही है। इस बात को लेकर नगर निगम कर्मचारियों व संगठनों में आक्रोश है कि अन्य कर्मचारियों को क्यों उपेक्षित किया जा रहा है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि यदि सभी को एक साथ नियमित नहीं किया जा सकता तो कम से कम ऐसी नीति बना दी जाए कि एक समयावधि के बाद सभी कर्मचारी नियमित हो जाएंगे। नगर निगम में लगभग नौ सौ पद रिक्त हैं, जिनमें से कुछ पद पदोन्नति के आधार पर भरे जाना है जबकि कुछ पदों पर नियुक्ति की जा सकती है। सबसे बड़ी बात यह है कि निगम ने दो बार पदोन्नति समिति की बैठक आयोजित कर सूचियां तैयार कर ली, इसके बाद सब कुछ भुला दिया गया। सूत्रों की मानें तो लगभग दो साल से पदोन्नति समिति की अनुशंसा संबंधी फाइल सदर मंजिल से गायब है। नगर निगम के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को लेकर जहां अधिकारी उदासीन हैं, वहीं जन प्रतिनिधि के रूप में चुन कर गए पार्षद अब इसे अपनी लड़ाई बना रहे हैं। एमआईसी सदस्यों का कहना है कि इस मामले में वे धरना भी दे सकते हैं। एक मेंबर तो आमरण अनशन की बात भी कर रहे हैं। नगर निगम नेता प्रतिपक्ष मो. सगीर ने यह मामला परिषद की बैठक में उठा कर आग्रह किया था कि पन्द्रह वर्षों की सेवा दे चुके लोगों को अब और कितना इंतजार करना पड़ेगा। इसके बाद महापौर ने नियमितिकरण का भरोसा दिलाया था(प्रकाश पांडेय,दैनिक जागरण,भोपाल,9.11.2010)।
ज्ञातव्य है कि महापौर परिषद पांच बार प्रस्ताव पारित कर चुकी है कि दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित किया जाए। 8 संकल्प नंबर 2086 में निर्देश दिए गए थे कि नियमितिकरण की कार्यवाही की जाए। 8 नगर निगम परिषद में तीन माह पहले महापौर कृष्णा गौर ने भी नियमितिकरण की मांग स्वीकार की थी। 8 2009 व 2010 में दो बार डीपीसी की जा चुकी है। लेकिन कर्मचारियों को पदोन्नति नहीं मिली। 8 22 जुलाई 2010 को हाईकोर्ट ने दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को 3 माह में नियमित करने के निर्देश दिए थे। यह अवधि बीत चुकी है। 8 नगरीय प्रशासन विभाग के आयुक्त एसएन मिश्रा ने विगत 26 अक्टूबर को सभी नगर निगमों के आयुक्तों को पत्र लिखकर दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के नियमितिकरण की सूची 30 अक्टूबर तक प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे।
उधर,नगर निगम सूत्रों से जानकारी मिली है कि अधिकारियों ने महज चार सौ लोगों की सूची तैयार की है। जिसमें से दो सौ सफाई कामगारों को नियमित किए जाने की बात की जा रही है। इस बात को लेकर नगर निगम कर्मचारियों व संगठनों में आक्रोश है कि अन्य कर्मचारियों को क्यों उपेक्षित किया जा रहा है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि यदि सभी को एक साथ नियमित नहीं किया जा सकता तो कम से कम ऐसी नीति बना दी जाए कि एक समयावधि के बाद सभी कर्मचारी नियमित हो जाएंगे। नगर निगम में लगभग नौ सौ पद रिक्त हैं, जिनमें से कुछ पद पदोन्नति के आधार पर भरे जाना है जबकि कुछ पदों पर नियुक्ति की जा सकती है। सबसे बड़ी बात यह है कि निगम ने दो बार पदोन्नति समिति की बैठक आयोजित कर सूचियां तैयार कर ली, इसके बाद सब कुछ भुला दिया गया। सूत्रों की मानें तो लगभग दो साल से पदोन्नति समिति की अनुशंसा संबंधी फाइल सदर मंजिल से गायब है। नगर निगम के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को लेकर जहां अधिकारी उदासीन हैं, वहीं जन प्रतिनिधि के रूप में चुन कर गए पार्षद अब इसे अपनी लड़ाई बना रहे हैं। एमआईसी सदस्यों का कहना है कि इस मामले में वे धरना भी दे सकते हैं। एक मेंबर तो आमरण अनशन की बात भी कर रहे हैं। नगर निगम नेता प्रतिपक्ष मो. सगीर ने यह मामला परिषद की बैठक में उठा कर आग्रह किया था कि पन्द्रह वर्षों की सेवा दे चुके लोगों को अब और कितना इंतजार करना पड़ेगा। इसके बाद महापौर ने नियमितिकरण का भरोसा दिलाया था(प्रकाश पांडेय,दैनिक जागरण,भोपाल,9.11.2010)।
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