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09 नवंबर 2010

रांची विश्वविद्यालय की स्वर्ण जयंती विवादों में

रांची विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के पचास साल पूरे कर लिए हैं । विश्वविद्यालय का २५वां दीक्षांत समारोह १० दिसंबर को होना तय हो चुका है । राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल समारोह की मुख्य अतिथि होंगी । मोराबादी में होने वाले दीक्षांत स्थल पर आयोजित होने वाले समारोह में वे ३६ विद्यार्थियों को गोल्ड मेडल प्रदान करेंगी । रांची विश्वविद्यालय इस मौके को भव्य और यादगार बनाने की तैयारी में जुट गया है पर कई स्तरों से यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या रांची विश्वविद्यालय वाकई में स्वर्ण जयंती वर्ष मनाने के योग्य हो चुका है? आज के दौर के जमाने के अनुरूप क्या यह विश्वविद्यालय कदमताल करने को तैयार हो चुका है? रांची विश्वविद्यालय की स्थापना १२ जुलाई, १९६० को की गई थी । स्थापना काल के दौरान १० पीजी डिपार्टमेंट शुरू हुए थे । एकमात्र अंगीकृत कॉलेज के तौर पर रांची कॉलेज और २० संबद्ध कॉलेज थे । रांची यूनिवर्सिटी ने अविभाजित बिहार और फिर झारखंड में अपनी पहचान कायम की । ५० सालों का सफर उसने कई हालातों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए तय किया । आज रांची विश्वविद्यालय के अंतर्गत २३ पीजी डिपार्टमेंट और ३३ अंगीभूत कॉलेज हैं । विश्वविद्यालय से संबद्ध २४ कॉलेज में रांची और इसके आस-पड़ोस के जिलों में पढ़ाई हो रही है । रांची यूनिवर्सिटी के अंतर्गत तकनीकी, व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में कई नामी-गिरामी कॉलेज भी हैं । इनमें एकेडमिक स्टाफ कॉलेज, दो मेडिकल कॉलेज, दो लॉ कॉलेज, चार तकनीकी कॉलेज, मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रसिद्ध दो न्यूरो-सिश्येट्री एंड एॅलॉयड कॉलेज, एक ऑटोनोमस कॉलेज और एक मैनेजमेंट कॉलेज शामिल हैं । स्वास्थ्य के क्षेत्र में रिम्स और मानसिक स्वास्थ्य के लिए रिनपास तो राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित कॉलेजों में शुमार किए जाते हैं । बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की गिनती भी देश के प्रतिष्ठित कृषि विश्वविद्यालय के तौर पर होती है ।

यूनिवर्सिटी के पीजी स्तर के पाठ्यक्रमों की पढ़ाई मोराबादी के पास स्थित रांची कॉलेज के निकट के भवनों में होती है । यहां एकेडमिक स्टाफ कॉलेज, केंद्रीय पुस्तकालय, यूनिवर्सिटी कंप्यूटर सेंटर, टेबुलेशन सेंटर, बहुउद्देशीय परीक्षा भवन भी हैं । पीजी विद्यार्थियों के लिए दो हॉस्टल हैं । इनमें से एक लड़कों के लिए है जबकि दूसरा लड़कियों के लिए बरियातू के पास यूनिवर्सिटी क्वार्टर के पास बनाया गया है । स्नातक के विद्यार्थियों के लिए एक दर्जन से भी ज्यादा हॉस्टल बनाए गए हैं । यूनिवर्सिटी के केंद्रीय पुस्तकालय भी संमृद्ध हैं । कई ई-जर्नल्स हैं जिनकी मदद रिसर्च स्कॉलर, विद्यार्थी और शिक्षक करते हैं । एकेडमिक स्टाफ कॉलेज शिक्षण-अध्यापन की गुणवत्ता बढ़ाने में अपनी सार्थकता सिद्ध कर रहा है । विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ए.ए. खान कहते हैं कि हमें केवल विद्यार्थियों को पढ़ाना भर नहीं है बल्कि जो शिक्षक उन्हें पढ़ा रहे हैं, उन्हें भी आज की जरूरतों के अनुरूप दक्ष बनाना होगा ।

रांची विश्वविद्यालय स्वर्ण जयंती समारोह के आयोजन का हकदार बने या नहीं, यह कई लोगों के लिए सवाल है । छात्र संघ के पूर्व अध्यक्षों, कुछ पुराने शिक्षकों के अनुसार केवल स्वर्ण जयंती वर्ष मना लेने से आप श्रेष्ठ यूनिवर्सिटियों में शामिल नहीं होने वाले । स्थापना काल से आज तक रांची विश्वविद्यालय लंबे समय तक मुकम्मल तौर पर अपने लिए जमीन नहीं तलाश सका है । पूर्व में रांची जिला स्कूल की जमीन पर चलने वाला विश्वविद्यालय मारवाड़ी विमेंस कॉलेज और फिर वर्तमान में शहीद चौक के पास स्थित कैंपस में संचालित होना शुरू हुआ। लंबे समय तक इसकी जमीन पर पीडब्ल्यूडी डिपार्टमेंट का कब्जा रहा । जिस जमीन पर और जिन भवनों में अभी रांची विश्वविद्यालय संचालित हो रहा है, वह भवन भी ब्रिटिश सरकार के समय का ही है । जिस मौलाना आजाद सीनेट हॉल, बिरसा भवन, टैगोर भवन और अन्य भवनों में विश्वविद्यालय का कार्यालय संचालित है, उसका निर्माण देश की आजादी से भी पूर्व का है । योगदा सत्संग कॉलेज के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष और झारखंड हाईकोर्ट के वकील डॉ. श्रीकृष्ण पांडेय के मुताबिक विश्वविद्यालय का कार्यालय जिन भवनों में चल रहा है, वह उसका अपना नहीं रहा है । वीसी, प्रो-वीसी की बिल्डिंग भले नई बनी हो, अन्यथा पुराने भवनों की रंग-रंगाई करके ही यूनिवर्सिटी अपना प्रचार-प्रसार करता है । पांडेय कहते हैं कि जिस यूनिवर्सिटी के पास अपनी जमीन और अपना भवन नहीं है, उसके बारे में कई बातों का स्वतः आकलन किया जा सकता है । यूनिवर्सिटी ने कुछ सालों पूर्व दावा किया था कि पिठोरिया के पास यूनिवर्सिटी के लिए जमीन देख ली गई है । तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के हाथों इसका ऑनलाइन शिलान्यास कार्यक्रम तक तय कर लिया गया था । इस काम में भी लाखों रुपए यूं ही बर्बाद कर दिए गए । कोई इसके बारे में बताने वाला नहीं है । लगभग २० बरसों से जरूरतमंद छात्रों को कानूनी छात्रवृत्ति से वंचित रखा गया । इसके कारण कई प्रतिभाशाली छात्रों को उच्च शिक्षा से महरूम होना पड़ा । रीडर-प्रोफेसर के पदों पर नियम विरुद्ध प्रोन्नति विश्वविद्यालय में होती रही है । यूजीसी और सरकार के इन प्रोन्नतियों पर १०० करोड़ से ज्यादा की रकम खर्च हो चुकी है(विष्णु राजगढ़िया,संडे नई दुनिया,7-13 नवम्बर,2010) ।

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