सचिवालय संवर्ग की वरिष्ठता सूची पर नैनीताल हाई कोर्ट का निर्णय आया है। कोर्ट ने 2006 में जारी की गई वरिष्ठता सूची को विवादित करार दिया है। इस मामले में कोर्ट की शरण में जाने वाले दो वादियों को उसी तिथि से प्रोन्नत करने के निर्देश राज्य सरकार को दिए गए हैं, जब से विवादित सूची के आधार पर उनके जूनियर को प्रोन्नति देकर डिप्टी सेक्रेटरी बनाया गया था।
पिछले करीब चार साल से सचिवालय संवर्ग की वरिष्ठता सूची पर विवाद चल रहा था। एक वरिष्ठता सूची 2006 में जारी की गई थी, जिसके आधार पर कई लोगों को प्रोन्नत कर दिया गया था। इस सूची पर विवाद होने की स्थिति में मूल राज्य उत्तर प्रदेश द्वारा जारी की गई सूची के आधार पर 2010 में एक और सूची जारी की गई। इस सूची पर उन लोगों की पहल पर कार्मिक मंत्री ने रोक लगा दी, जो प्रभावित हो सकते थे। नौबत उनके रिवर्ट होने तक की आ सकती थी। यह विवाद अभी चल ही रहा था कि क्षेत्रपति पाटनी और मदन मोहन सेमवाल इसके खिलाफ हाई कोर्ट की शरण में चले गए। 2010 की सूची के अनुसार उक्त दोनों वरिष्ठता में पहले और दूसरे स्थान पर हैं। इस मामले में उन्होंने राज्य सरकार और गोकुलानंद लोहनी को वादी बनाया।
22 दिसंबर को दिए गए अपने निर्णय में मुख्य न्यायाधीश बारेन घोष और न्यायाधीश बीके बिष्ट की खंड पीठ ने 2006 की सूची को विवादित करार दिया है। निर्णय में कहा गया है कि इस विवादित सूची के आधार पर प्रतिवादी गोकुलानंद लोहनी को जिस दिन से प्रोन्नत कर डिप्टी सेक्रेटरी बनाया गया था, दोनों वादियों को उसी दिन से प्रोन्नत किया जाए। वादियों ने हाई कोर्ट का यह निर्णय सचिवालय प्रशासन को रिसीव करा दिया है(दैनिक जागरण,देहरादून,25.12.2010)।
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