महिलाओं के बारे में अगर आपकी कोई बनी-बनाई धारणा है तो उसे बदल डालिए। अपने देश की ये महिलाएं बहुत पहले से ही पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलना शुरू कर चुकी हैं। अब वे अमेरिकी महिलाओं को भी मुकाबले में पछाड़ रही हैं। उस अमेरिका की महिलाओं को, जिसे हर तरह के भेदभाव से मुक्त देश का दर्जा प्राप्त है। यह निष्कर्ष है द बैटल ऑफ फीमेल टैलेंट इन इंडिया शीर्षक से प्रकाशित एक रिपोर्ट का। रिपोर्ट के अनुसार भारत की 80 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए कटिबद्ध हैं। इसके लिए वे कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं। इसके विपरीत, अमेरिका की 52 फीसदी महिलाओं ने जीवन में अपने लक्ष्य के प्रति इतनी प्रतिबद्धता जताई। हालांकि अपने देश में मात्र 30 फीसदी महिलाएं घर से बाहर निकल कर काम कर रही हैं और आश्चर्यजनक ढंग से 2009 में 11 फीसदी सीईओ महिलाएं थी। फॉच्र्यून 500 और एफटीएसई 100 की कंपनियों की सूची के अनुसार, अमेरिका और ब्रिटेन में यह आंकड़ा सिर्फ तीन फीसदी का था। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के तेज आर्थिक विकास ने महिलाओं की सामाजिक हैसियत में बदलाव के एक नए युग का सूत्रपात किया है। अगर महिलाओं को बच्चे पालने और खाना बनाने जैसी जिम्मेदारियों से आजादी मिले, उनके लिए घर से कार्यस्थल तक सुरक्षित सफर का इंतजाम किया जाए और काम के घंटे कम कर दिए जाएं, तो रोजगार में महिलाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होगी। रिपोर्ट बताती है कि देश की 70 फीसदी महिलाएं घर और बाहर में तालमेल कायम करने में मुश्किलों का सामना करती हैं। उन्हें घर में बच्चों, अभिभावकों और बड़ों की छोटी-बड़ी सभी जरूरतों का ध्यान रखना होता है और कार्यस्थल पर भी तमाम बाधाओं को पार करना होता है। रिपोर्ट के अनुसार 45 फीसदी महिलाओं का मानना है कि कार्यस्थल पर अनुचित व्यवहार उनकी प्रगति की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली अमेरिका की बूज एंड कंपनी के डीएन एग्वायर का मानना है कि महिलाओं की घरेलू जिम्मेदारियों को देखते हुए नियोक्ता कंपनियों को उनके प्रति लचीला रुख अपनाना चाहिए(दैनिक जागरण,दिल्ली,9.12.2010)।
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