मप्र लोक सेवा आयोग का परीक्षा नियंत्रक एक ऐसे अधिकारी (डॉ. श्रीकृष्ण शर्मा) को बना दिया गया है, जिन्होंने कॉलेज में एक छात्र की कॉपी बदली थी।
इस कारण अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें केन्द्राध्यक्ष पद से हटा दिया गया था।
इतने गंभीर मामले में कार्रवाई के बाद भी मप्र उच्च शिक्षा विभाग ने पहले प्रोफेसर शर्मा को उसी कॉलेज का प्राचार्य और फिर अतिरिक्त निदेशक बनाया। हद तब हो गई, जब जनवरी 2009 में मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग को विभाग ने परीक्षा नियंत्रक के लिए जिन तीन नामों की अनुशंसा की,उनमें एक ये दागी प्रोफेसर भी थे। आयोग ने बिना उनके ट्रेक रिकॉर्ड की पड़ताल किए उन्हें परीक्षा नियंत्रक बना दिया।
दागी के हाथ में ऐसी जिम्मेदारी क्यों?
मप्र लोक सेवा आयोग पर प्रदेश शासन के आला अधिकारियों से लेकर अन्य सरकारी विभागों के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति का दायित्व रहता है। इसकी परीक्षाओं का संचालन अगर कॉलेज स्तर की परीक्षा में इतनी बड़ी धांधली कर चुके व्यक्ति के हाथ में सौंप दिया गया है तो आने वाले परिणाम क्या होंगे,यह समझना काफी मुश्किल है?-डॉ.श्रीकृष्ण शर्मा,परीक्षा नियंत्रक,एमपी पीएससी
कॉपी बदलने का मामला नहीं था?वर्ष 2004 में आपके खिलाफ धार कॉलेज में कॉपी बदलने का कोई मामला था?—नहीं, कोई मामला नहीं था।?लेकिन उस मामले में तो जांच समिति भी बनी थी?—मुझे नहीं पता. बनी होगी।?राजभवन तक मामला गया था। खबरें भी छपी थीं?—मेरे पास कोई मामला ही नहीं आया और न मुझसे पूछा गया।?आपको केन्द्राध्यक्ष पद से हटाया गया था?—नहीं. नहीं., नहीं हटाया था।?फिर यह सब कैसे हो गया?—ऑटोनोमस कॉलेज था.. वहां पर किसी को पास नहीं करें और किसी को कर दें तो ऐसा ही होता है।?डीएवीवी और एडी ने आपको हटाया था?—नहीं. उन्होंने नहीं हटाया था।?मतलब हटाया तो था.?—हां, केन्द्राध्यक्ष से हटाया था।?फिर क्यों हटाया था?—मैं कुछ कामों में आड़े आ रहा था इसलिए हटाया था।?आपके खिलाफ बातें उठ रही हैं?—सब आरोप हैं। मेरे पास न तो नोटिस आया और न ही मेरे खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है।
हां,दोषी पाया था.. परीक्षा कार्य से हटाया था
कॉपी बदलने के मामले में डॉ.श्रीकृष्ण शर्मा दोषी पाए गए थे और उसी आधार पर एडिशनल डायरेक्टर ने पूरे सत्र किसी भी परीक्षा या संचालन से इन्हें हटाने के स्पष्ट निर्देश भी दिए थे-प्रो.आर.के.दवे,प्राचार्य,शा.स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, धार एवं सदस्य- तत्कालीन जांच समिति
नहीं देखा गया शर्मा का ये रिकॉर्ड
वर्ष 2004 में पीएससी के वर्तमान एक्जाम कंट्रोलर डॉ. श्रीकृष्ण शर्मा शा. स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय धार में प्रोफेसर थे। वर्ष 2004 फरवरी में कॉलेज में बीएससी एक्जाम में डॉ. शर्मा सेंटर इंचार्ज थे। 25 फरवरी 2004 को बीएससी तृतीय वर्ष का रसायन शास्त्र का प्रश्न-पत्र था। इसमें एक परीक्षार्थी ने 3 घंटे के पेपर में मात्र 1 घंटा बैठकर भी कुछ नहीं लिखा और वह खाली कॉपी देकर निकल गया।
डॉ.शर्मा ने उसे लाभ देने के लिए उसकी कॉपी बदली थी। परीक्षा खत्म होने के बाद संबंधित इन्वीजलेटर (वीक्षक) कक्ष से कॉपियां जमा करने के लिए केन्द्राध्यक्ष के रूम में गए। वहां डॉ. शर्मा ने वीक्षक से कॉपियां चैक करने के लिए मांगी और बची हुई सप्लीमेंट्री कॉपियां दूसरे प्रोफेसर को देकर आने के बहाने वीक्षक को बाहर भेज दिया।
वीक्षक के सप्लीमेंट्री कॉपी जमा करने लिए जाने से पहले ही डॉ.शर्मा ने उस स्टूडेंट की कॉपी बदल दी। घर से लाई गई लिखी हुई कॉपी उन्होंने मुख्य कॉपियों के साथ मिला दी और वास्तविक कॉपी खुद के पास रख ली। इसके बाद वीक्षक को बुलाकर कॉपी पर साइन नहीं होने की बात कहते हुए उस फर्जी कॉपी पर साइन करवा लिए। हालांकि वीक्षक का कहना था कि उसने सभी कॉपियों पर साइन किए थे।
4-5 दिन बाद संबंधित विषय के प्रोफेसर ने सूचना दी कि एक कॉपी बदली गई है। उसका सीरियल नंबर बाकी कॉपियों से अलग था। तब मामला पकड़ में आया। वीक्षक कॉपी का रिकॉर्ड एक शीट पर अंकित करते हैं, वह शीट भी गायब मिली। इसके बाद कॉलेज प्रशासन ने जांच बैठा दी।
इसके लिए 4 सदस्यीय टीम गठित की गई, जिसमें प्रो. एस.एन. मंडलोई, प्रो. एस.के. नाईक, प्रो. आर.के. दवे और प्रो. एम.ए. खान शामिल थे। समिति ने इस मामले की तहकीकात में कॉपी बदलने की बात सही पाई। इस बात से तत्कालीन एडि. डायरेक्टर हॉयर एजुकेशन डॉ. लोकेश अग्रवाल को अवगत करवाया गया।
तब उन्होंने स्वयं धार कॉलेज जाकर जांच की। उन्होंने जांच समिति की रिपोर्ट और अन्य दस्तावेजों के आधार पर डॉ.श्रीकृष्ण शर्मा को प्रथम दृष्टया दोषी माना। इसकी जानकारी हॉयर एजुकेशन के कमिश्नर को भी भेजी गई। इस समय कॉलेज प्राचार्य डॉ. अशोक शर्मा थे।
महाविद्यालय प्रशासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए केन्द्राध्यक्ष डॉ.श्रीकृष्ण शर्मा को तुरंत परीक्षा कार्य से हटा दिया। इसके बाद इस मामले की शिकायत राजभवन तक हुई। वहीं देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी द्वारा भी उन्हें परीक्षा कार्य से डीबार (हटाया) किया गया।
इसके कुछ दिनों बाद डॉ. शर्मा को नेपानगर कॉलेज का प्राचार्य बनाया गया। वहां से ट्रांसफर के बाद वे पुन: शा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय धार के प्राचार्य के रूप में पदस्थ हुए। वहां पर उन्होंने दो साल तक काम किया। यहां से पदोन्नति के बाद वे इंदौर-उज्जैन संभाग के एडि. डायरेक्टर के रूप में भी कार्यरत रहे।
..और फिर प्रमोशन
इसके बाद डॉ. शर्मा एमपी पीएससी में एक्जाम कंट्रोलर के रूप में प्रतिनियुक्ति पर नियुक्त किए गए। मार्च 2009 में की गई उनकी नियुक्ति स्वयं पीएससी चेयरमैन की अनुशंसा के आधार पर की गई। इसके लिए सरकारी स्वीकृति भी होती है।
देते हैं साफ छवि वाले नाम
पीएससी में एक्जाम कंट्रोलर के पद पर नियुक्ति के लिए उच्च शिक्षा विभाग से स्पष्ट छवि वाले तीन लोगों की सूची मांगी जाती है। इसमें से योग्यताओं के आधार पर किसी एक का चयन होता है। इस विशेष महत्व के पद पर नियुक्ति के पहले डॉ. शर्मा का पूर्व रिकार्ड क्यों नहीं देखा गया, यहां पर यह बड़ा प्रश्न है?
नहीं आया मामला
एक्जाम कंट्रोलर की नियुक्ति का अधिकार पीएससी चेयरमैन और सरकार को है। इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं रहती है। डॉ. शर्मा की नियुक्ति भी उन्हीं के माध्यम से हुई है। हमें इसमें कोई जानकारी नहीं है-आर.के.गुप्ता,पूर्व सेक्रेटरी,एमपी पीएससी
आयोग के समक्ष..
आपने डॉ. शर्मा से संबंधित मामला हमारे संज्ञान में लाया है। हमें इस संबंध में पूर्व में कोई सूचना या शिकायत नहीं प्राप्त हुई है। हम आयोग के समक्ष इस मामले को रखेंगे-निर्मल उपाध्याय,सेक्रेटरी,एमपी पीएससी(रफ़ी मोहम्मद शेख,दैनिक भास्कर,भोपाल-इंदौर,9.12.2010)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।