करोड़ों लोगों की मायड़ भाषा राजस्थानी को अपने ही घर में मान्यता के लिए भले ही तरसना पड़ता हो, लेकिन इसकी सुवास देश की सीमाएं लांघ कर जापान तक जा पहुंची है।
टोक्यो के प्रोफेसर तोमोयूकी यामाहाता को तो यह भाषा इतनी भा गई कि उन्होंने इसे अपने शोध का विषय बनाया है। इन दिनों जोधपुर के राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में राजस्थानी भाषा से संबधित पुरा सामग्री खंगाल रहे प्रो. यामाहाता का मानना है कि दुनियाभर की तमाम भाषाओं में राजस्थानी सबसे मीठी है। राजस्थान की कला, संस्कृति व धार्मिक परंपराओं में जापानियों की दिलचस्पी काफी पुरानी है। कई वर्षो से जापानियों का एक दल हर साल रुद्राभिषेक करने जोधपुर आया करता है।
यहां की कला व संस्कृति उन्हें हमेशा ही लुभाती रही है। इसी कड़ी में प्रो. यामाहाता राजस्थानी भाषा के बारे गहन शोध कर रहे हैं। उनका इरादा इस भाषा पर एक किताब लिखने का है। इसके लिए वे राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में प्राकृत व्याकरण, कामधेनु, जमकालंकार, पिंगल, ढुढ़िका, केशी संधि, पाल रास ग्रंथ जैसे राजस्थानी भाषा से संबंधित प्राचीन ग्रंथों के पन्ने टटोल रहे हैं। प्रोफेसर तोमोयूकी ने भास्कर को बताया कि टोक्यो विश्वविद्यालय में यों तो दुनिया भर की भाषाओं पर शोध की सुविधा है, लेकिन उन्होंने एकदम सरल और कानों में मिठास घोलने वाली राजस्थानी भाषा को चुना है।
अरसा पहले उन्होंने टोक्यो में कुछ लोगों को राजस्थानी भाषा में बातचीत करते सुना था। तबसे ही वे इस भाषा के कायल हो गए। इस पर शोध करने से पहले उन्होंने हिंदी बोलना और लिखना भी सीखा। प्रोफेसर तोमोयूकी ने बताया कि भारत आने से पहले उन्होंने राजस्थानी ग्रंथालयों के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की थी।
फिलहाल वे राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में मौजूद पांडुलिपियों व ग्रंथों का अध्ययन कर रहे है। इसके बाद वे दिल्ली जाएंगे। सभी स्रोतों से आवश्यक सामग्री जुटाने के बाद वे विधिवत शोध शुरू कर देंगे। प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. श्याम सिंह राजपुरोहित ने बताया कि विदेशी प्रोफेसर द्वारा राजस्थानी भाषा पर किताब लिखी जा रही है। यहां से पुरा-सामग्री उपलब्ध कराने के लिए उAसे लिखित में आवेदन लिया गया है(दैनिक भास्कर,जोधपुर,18.12.2010)।
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