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23 दिसंबर 2010

दिल्लीःनर्सरी दाखिले के दिशा-निर्देशों पर सरकार को नोटिस

नर्सरी दाखिले के दिशा-निर्देशों को रद्द करने की मांग पर हाईकोर्ट ने केन्द्र और दिल्ली सरकार से जवाब-तलब कर लिया है। दोनों को नोटिस जारी करके छह हफ्ते में जवाब मांगा है।

इस बाबत बीती २० दिसंबर को गैर सरकारी संस्था सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से जनहित याचिका दाखिल की गई थी। सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ कर रही है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता अशोक अग्रवाल का कहना है कि सरकारी दिशा-निर्देशों पर पब्लिक स्कूलों को ७५ फीसदी सीटों पर अपनी मर्जी से दाखिले के नियम लागू करने की छूट मिली हुई है। बाकी २५ फीसदी सीटें निम्न आय वर्ग के बच्चों के लिए हैं। ७५ फीसदी सीटों पर दाखिले के लिए इस कारण वह मनमानी उतर आए हैं। दाखिले पर स्कूलों के अलग-अलग क्राइटेरिया से अभिभावक असमंजस में हैं। यह सरकारी दिशा-निर्देश शिक्षा अधिनियम के खिलाफ हैं। इसलिए इन्हें रद्द किया जाना चाहिए। इस कारण बड़ी संख्या में आम घरों के बच्चों को स्कूलों में दाखिला नहीं मिल रहा है।


याचिका में कहा गया है कि केन्द्र सरकार ने नर्सरी दाखिला संबंधी फैसला सभी राज्य सरकारों के लिए २३ नवंबर को जारी किया था। दिल्ली सरकार ने भी लगभग वही फैसला १५ दिसंबर को लागू कर दिया। उसके तहत पब्लिक स्कूलों को भी अपनी मर्जी से दिशा-निर्देश बनाने की छूट मिल गई(नई दुनिया,दिल्ली,23.12.2010)।


दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण की रिपोर्टः
हाईकोर्ट ने नर्सरी दाखिला पर दिल्ली व केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। नोटिस उस जनहित याचिका पर दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने नर्सरी दाखिले के लिए जिन दिशा-निर्देशों को तैयार किया है, वे शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन हैं। याचिका में दिशा-निर्देशों को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने दिल्ली और केंद्र सरकार से छह हफ्ते में जबाव दाखिल करने के लिए कहा है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार के साथ केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी किया है। नोटिस में कहा गया है कि छह हफ्ते में दिल्ली और केंद्र सरकार इस पर अपना पक्ष रखें। हाईकोर्ट में जनहित याचिका नागरिक अधिकार समूह सोशल जूरिस्ट की ओर से दायर की गई है। इसमें सरकार की अधिसूचना की वैधता को चुनौती दी गई है। गैर सरकारी संगठन सोशल जूरिस्ट के वकील अशोक अग्रवाल ने कहा कि निजी स्कूलों को दाखिले की योग्यता शर्ते तय करने की छूट देना शिक्षा के अधिकार कानून और उच्च न्यायालय के पिछले आदेशों के खिलाफ है। जनहित याचिका में कहा गया है कि यह बच्चों के वर्गीकरण पर आधारित है। यह दिशा-निर्देश लाचार माता-पिता और छात्रों की कीमत पर शिक्षा को व्यापारीकरण की ओर ले जाता है। अग्रवाल ने दलील दी कि उच्च न्यायालय ने अशोक गांगुली की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया था। इस समिति को नर्सरी में दाखिले से जुड़े सभी मुद्दों की पड़ताल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उसने साझा दाखिला प्रक्रिया, पारदर्शिता, साक्षात्कार को खत्म करने और प्रबंधन के विशेषाधिकार को कम करने के लिए तीन आधारभूत सिद्धांत तैयार किए थे जिसका पालन दिल्ली सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में नहीं किया गया है।

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