भापाल में इस साल जनवरी से दिसंबर तक जांच के लिए आए जाति प्रमाण-पत्रों में से लगभग 15 प्रतिशत फर्जी पाए गए हैं। कई प्रमाण-पत्रों पर तारीख और जाति प्रमाण-पत्र का क्रमांक ही दर्ज नहीं है,तो कुछ रिकार्ड में ही दर्ज नहीं है। इनमें से कई ने जाति प्रमाण-पत्र का सहारा लेकर नौकरियां तक पा लीं, बाद में संबंधित विभाग ने उनकी जांच कराने के लिए कलेक्टोरेट भेजा है।
बिचौलिए या दलालों के संपर्क में आकर भी कई बार लोग धोखा खाते हैं। इसलिए सावधानी बरतकर जाति प्रमाण-पत्र बनवाएं। आरक्षण की पात्रता है जाति प्रमाण-पत्र : राज्य के स्थाई निवासी तथा अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) हेतु 1950 के पूर्व एवं ओबीसी हेतु 1984 के पूर्व स्थायी तौर पर बसे परिवारों को ही आरक्षण की पात्रता है। इसके बाद प्रदेश में बसने आए लोगों को प्रदेश में आरक्षण की पात्रता नहीं है।
15 फीसदी सर्टिफिकेट जाली
साल भर में जांच के लिए
आए जाति प्रमाण पत्र 300 से ज्यादा
प्रमाण-पत्रों की जांच पूरी हुई 200
गलत पाए गए 33
कहां होती है गड़बड़ी
जाति प्रमाण-पत्र बनवाने के लिए यह आवश्यक शर्त है कि एससी-एसटी के मामले में 1950 में प्रदेश में रहने का प्रमाण एवं ओबीसी के मामले में 1984 में प्रदेश में रहने का प्रमाण व्यक्ति प्रस्तुत करे। प्रमाण प्रस्तुत न करने पर जाति प्रमाण-पत्र जारी नहीं किए जाते। ऐसे में प्रमाण-पत्र बनवाने के लिए गलत रास्ता चुन लेता है।
लोग आरक्षण पाने के लिए फर्जी जाति प्रमाण-पत्र बनवा लेते हैं। कई राज्यों में आरक्षण की पात्रता के लिए अलग प्रमाण-पत्र बनते हैं। ऐसे में समस्या काफी हद तक सुलझ जाती है।
वृंदावन सिंह,अनुविभागीय अधिकारी, एमपी नगर
जाति प्रमाण-पत्र में अनुविभागीय अधिकारी अंतिम सक्षम प्राधिकारी होता है। इस साल जांच में कई प्रमाण-पत्र फर्जी पाए गए।
जीपी माली,अनुविभागीय अधिकारी,हुजूर(दैनिक भास्कर,भोपाल,24.12.2010)
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