आरक्षण व्यवस्था सरकारी नौकरियों में क्या असर दिखा रही है इसका ताजा उदाहरण राजस्थान प्रशासनिक सेवा में हुई नियुक्तियों में देखने को मिला है।
वर्ष 2007 की प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर राज्य सरकार ने जिन 19 अभ्यर्थियों को आरएएस अधिकारी बनाया है, उनमें सामान्य वर्ग का एक भी युवक नहीं है। हालांकि एक युवक चयनित हुआ है, पर वह पहले से ही सरकारी नौकरी में था और नॉनगजेटेड कोटे से आया है। नए 19 आरएएस अधिकारियों में 5 अनुसूचित जनजाति से, 5 अनुसूचित जाति से और 6 पिछड़ा वर्ग से हैं। सामान्य वर्ग के सिर्फ 3 तीन अभ्यर्थी चुने गए, जिनमें दो महिलाएं हैं। राजस्थान की आबादी में करीब 45 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली सवर्ण जातियों के हिस्से में आरएएस के केवल 16 फीसदी पद आए हैं।
राजस्थान पुलिस सेवा में भी ऐसी ही स्थिति है। आरपीएस बनाए गए 41 अभ्यर्थियों में सामान्य वर्ग के 11, ओबीसी के 12, अनुसूचित जाति के 13 और अनुसूचित जनजाति के 5 लोग हैं। यहां सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी करीब 27 प्रतिशत रही है। हालांकि सरकारी सेवाओं में सिर्फ 49 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है और बाकी 51 फीसदी पद सामान्य वर्ग के तहत खुले रखे जाते हैं।
इसके बावजूद आरएएस जैसी महत्वपूर्ण नौकरियों ने सामान्य वर्ग की इतनी कम हिस्सेदारी कई सवाल खड़े करती हैं। समता आंदोलन समिति से जुड़े पराशर नारायण शर्मा का कहना है कि सरकार आरक्षण संबंधी प्रावधानों को गलत तरीके से लागू कर रही हैं, जिसके चलते सामान्य वर्ग के लिए नौकरी के रास्ते तकरीबन बंद हो चुके हैं। वर्ष 2007 की प्रतियोगी परीक्षा में सफल रहे 713 उम्मीदवारों में सामान्य वर्ग से सिर्फ 171 उम्मीदवार थे।
कितना कड़ा मुकाबला
आरएएस परीक्षा में बैठे तीन लाख कुल परीक्षार्थियों में सवर्ण युवक एक लाख से ज्यादा थे, लेकिन आरक्षण के कारण इनके लिए मुकाबला कड़ा हो गया है। वजह ये है कि 21 प्रतिशत ओबीसी, 16 प्रतिशत एससी और 12 प्रतिशत एसटी आरक्षण के बाद महिलाओं का आरक्षण भी सुनिश्चित हो चुका है। आरक्षित वर्गो के प्रतिभाशाली प्रतियोगी अपने वर्ग से बाहर आकर सामान्य कोटे में शामिल हो जाते हैं।
प्रारम्भिक परीक्षा में शामिल हुए 2,99,230
मुख्य परीक्षा तक शामिल 11,726
साक्षात्कार तक पहुंचे 2,678
सफल घोषित 713
उधर,आरएएस नियुक्त 19 आरपीएससी की ओर से आयोजित आरएएस चयन प्रक्रिया पर राजस्थान हाईकोर्ट की मुख्यपीठ में विचाराधीन याचिकाओं का फिलहाल कोई असर नहीं पड़ेगा।
हालांकि इस मामले में चयन एवं प्रक्रियागत बिंदु पूरी तरह हाईकोर्ट में दाखिल याचिकाओं के निर्णय से प्रभावित रहेंगे। हाईकोर्ट के न्यायाधीश गोविंद माथुर ने उपेन्द्र गहलोत व अन्य की ओर से दायर स्थगन प्रार्थना पत्र को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया है। याचिका में कहा गया था कि आरएएस प्री परीक्षा 2010 के दर्शनशास्त्र व सामान्य ज्ञान के प्रश्नपत्र में कई गलतियां हैं तथा प्रश्नपत्र लीक होने के मामले में एफआईआर भी दर्ज करवाई गई है।
साथ ही आयोग इस परीक्षा में भवानीसिंह कविया के मामले में दिए गए निर्णय की भी पालना नहीं कर रहा है। याचिका में इन सभी बिंदुओं के आधार पर यह परीक्षा निरस्त करने की गुहार की गई। राज्य सरकार की ओर से भी जवाब पेश किया गया। सभी पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने स्थगन प्रार्थना पत्र निस्तारित करते हुए कहा कि आयोग द्वारा जारी चयन प्रक्रिया तो जारी रहेगी, लेकिन यह चयन प्रक्रिया न्यायालय में इस संबंध में दायर याचिकाओं के निर्णय से प्रभावी रहेंगी।
खेद: 24 दिसंबर 2010 को प्रकाशित समाचार ‘आरएएस (प्री) परीक्षा निरस्त करने लायक, हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी’ में यह भूलवश प्रकाशित हो गया था कि हाईकोर्ट ने भर्ती को निरस्त करने लायक माना है, जबकि ऐसा नहीं है। इसका हमें खेद है। - संपादक(अजीत सिंह,दैनिक भास्कर,जयपुर-जोधपुर,25.12.2010)
it is injustice to UR category. Govt should thinkover it. Socio-Economic parity does not mean it.
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