झारखंड में प्राथमिक शिक्षा का क्या हाल है, इसे प्रथम नाम की संस्था ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट असर (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2010) के जरिये पेश किया है. रिपोर्ट में कुछ सकारात्मक बातें हैं, तो कुछ नकारात्मक भी हैं.
शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के तहत सभी 6-14 आयु वर्ग के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देनी है. राज्य के प्राथमिक स्कूलों में दाखिला तो बढ़ा है, साथ ही लड़कियों के ड्राप आउट रेट में भी कमी आयी है. लेकिन अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां काम करना बाकी है.3.8 प्रतिशत बच्चे स्कूल नहीं जाते
प्रथम की रिपोर्ट की खास बातें :- ग्रामीण इलाकों में (3-4) आयु वर्ग के 79.9 प्रतिशत बच्चे आंगनबाड़ी या प्री स्कूलों में पढ़ते हैं. कोडरमा एक मात्र जिला है, जहां शत प्रतिशत बच्चे इस आयु वर्ग में आंगनबाड़ी या प्री स्कूलों में पढ़ते हैं.
- सभी जिलों में (6-14) आयु वर्ग के 3.8 प्रतिशत बच्चे स्कूल से बाहर हैं. इनमें चाईबासा और पाकुड़ में 12 प्रतिशत से ऊपर बच्चे इस आयु वर्ग में स्कूल नहीं जाते. जबकि धनबाद में यह दर मात्र 0.7 प्रतिशत है
- (6-14) आयु वर्ग के 8.8 प्रतिशत बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं. पलामू में प्राइवेट स्कूल में जानेवालों की संख्या सबसे कम 0.9 प्रतिशत तो सिमडेगा में सबसे अधिक 27.6 प्रतिशत है-कक्षा चार से कक्षा आठ तक के 33.8 प्रतिशत बच्चे प्राइवेट टय़ूशन पढ़ते हैं
- कक्षा तीन से कक्षा पांच के बच्चे, जो कक्षा एक की किताबें पढ़ सकने में सक्षम हैं, उनकी संख्या 58.9 प्रतिशत है.
पूर्वी सिंहभूम में यह ग्राफ सबसे कम केवल 22 प्रतिशत है. गोड्डा जिले में यह सबसे ज्यादा 78 प्रतिशत हैलड़कियों की शिक्षा
-लड़कियों की ड्राप आउट दर में कमी आयी है. 11-14 आयु वर्ग की लड़कियों में यह मात्र 4.9 प्रतिशत है. जबकि 2006 में यह 13 प्रतिशत, 2007 में 8 प्रतिशत, 2008 में 9.4 प्रतिशत और 2009 में 7.5 प्रतिशत रहा है
-(7-10) आयु वर्ग की लड़कियों में 87.2 प्रतिशत लड़कियां सरकारी स्कूलों में पढ़ती हैं. वहीं 11-14 आयु वर्ग में 84.3 प्रतिशत लड़कियां सरकारी स्कूलों में पढ़ती हैं.छात्र-शिक्षक अनुपात- 61 से 90 छात्र दाखिले वाले स्कूलों में शिक्षकों की संख्या तीन होनी चाहिए. इस केटेगरी में केवल 14 प्रतिशत स्कूलों में ही यह अनुपात है. जबकि 72 प्रतिशत स्कूलों में यह अनुपात नहीं है
- 91 से 120 छात्र दाखिलेवाले स्कूलों में शिक्षकों की संख्या चार निर्धारित है. इनमें 88 प्रतिशत स्कूलों में शिक्षकों की संख्या तीन से अधिक नहीं है. केवल नौ प्रतिशत स्कूलों में ही यह अनुपात है
-120 से अधिक दाखिलेवाले स्कूलों में शिक्षकों की संख्या पांच होनी चाहिए. लेकिन केवल 13 प्रतिशत स्कूल ही यह अनुपात रखते हैं, जबकि लगभग
54 प्रतिशत स्कूलों में यह संख्या अधिकतम चार ही है
स्कूलों में मिलनेवाली सुविधाएं
- 16 प्रतिशत स्कूलों के पास ऑफिस नहीं हैं.
62 प्रतिशत स्कूलों में खेल के मैदान नहीं हैं.
74 प्रतिशत स्कूलों की बाउंड्री नहीं हैं
-73 प्रतिशत स्कूलों में पेय जल की सुविधा उपलब्ध है
-18 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय की सुविधा नहीं है. 51 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय की सुविधा तो है, लेकिन वे इस्तेमाल करने लायक नहीं. केवल 31.7 प्रतिशत शौचालय ही इस्तेमाल के लायक हैं
- 29 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था नहीं है. जहां लड़कियों के लिए शौचालय की व्यवस्था है, वहां केवल 25 प्रतिशत स्कूलों में ही शौचालयों को बंद करने की सुविधा है
- 38 प्रतिशत स्कूलों में लाइब्रेरी की सुविधा नहीं- केवल 73.4 प्रतिशत स्कूलों में ही मिड डे मील के लिए किचन शेड की सुविधासकारात्मक बातें
- लड़कियों के ड्राप आउट रेट में कमी- आंगनबाड़ी या प्री स्कूल जानेवाले बच्चों की संख्या में वृद्धि
-(6-14) आयु वर्ग में 85 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में
- अधिकतर स्कूलों में किचन शेड की सुविधानकारात्मक बातें-90 प्रतिशत स्कूलों में कंप्यूटर नहीं
- 62 प्रतिशत स्कूलों में खेल के मैदान नहीं
-29 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं- छात्र शिक्षक अनुपात आरटीइ के मानकों के अनुसार नहीं(प्रभात ख़बर,रांची,26.1.11).
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