बुनियादी शिक्षा मजबूत करने के सूबे के अरमानों पर जिले पानी फेर रहे हैं। शासन की नाक के नीचे दून जनपद भी इसमें शामिल है। वित्तीय वर्ष गुजरने में तीन महीने शेष होने के बावजूद जिले सर्व शिक्षा अभियान की 50 फीसदी धनराशि खर्च नहीं कर पाए। खराब प्रदर्शन में बागेश्र्वर अव्वल रहा। हरिद्वार, पिथौरागढ़ और दून क्रमश: दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर हैं। कक्षा एक से आठवीं तक सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा की गुणवत्ता पर फोकस किया जा रहा है, लेकिन जिलों को परफारमेंस सुधारने से खास मतलब नहीं है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत जिलों को मिली ग्रेडिंग इसकी पुष्टि कर रही है। प्रारंभिक शिक्षा को संसाधनों की कमी दूर कर बेहतर बनाने और नौनिहालों को स्तरीय शिक्षा दिलाने को राज्य दस वर्षो में केंद्र के दर पर हाथ-पांव मार रहा है। इस मुहिम का नतीजा यह है कि वर्ष 2010-11 में एसएसए का वार्षिक बजट बढ़कर 430 करोड़ से ज्यादा है। इसके सापेक्ष कुल खर्च 213.88 करोड़ हो सका। जिले खर्च को लेकर सरकार की अपेक्षा पर खरे नहीं उतरे। कुल बजट का 50 फीसदी राशि खर्च नहीं हो पाई। अब तक कुल खर्च 49.63 फीसदी हुआ। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की कवायद को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। बजट होने के बावजूद जिलों में प्राइमरी व अपर प्राइमरी स्कूल बजट होने के बावजूद भवन व अन्य निर्माण कार्य समेत तमाम जरूरी सुविधाओं से महरूम हैं। कुछ जिलों में हालत ज्यादा लचर है। सबसे खराब प्रदर्शन वाले जिले बागेश्र्वर को 41.22 फीसदी धन खर्च करने पर 13वीं ग्रेडिंग मिली। 44.40 फीसदी धन खर्च कर पाए हरिद्वार को 12वीं, पिथौरागढ़ को 45.62 फीसदी खर्च पर 11वीं, दून को 46.12 फीसदी खर्च पर दसवीं ग्रेडिंग मिली। हालांकि कोई भी जिला 60 फीसदी राशि खर्च नहीं कर पाया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक खर्च में चमोली जिले का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा। इसमें उत्तरकाशी दूसरे स्थान उत्तरकाशी, पौड़ी तीसरे स्थान पर है। शासन ने एसएसए में जिलों की इस प्रगति पर असंतोष जताया है। शिक्षा सचिव मनीषा पंवार उक्त जिलों के विभागीय अफसरों को प्रदर्शन सुधारने की सख्त हिदायत दे चुकी हैं। अब उन्होंने विशेष तौर पर चार जिलों देहरादून, हरिद्वार, बागेश्र्वर और पिथौरागढ़ के जिलाधिकारियों और मुख्य विकास अधिकारियों को भी प्रदर्शन में सुधार के निर्देश दिए हैं। जिलाधिकारियों और मुख्य विकास अधिकारियों को प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों पर होने वाले खर्च की नियमित मानीटरिंग और इस बाबत शासन को सूचित करने को कहा गया है(रविंद्र बड़थ्वाल,दैनिक जागरण,देहरादून,6.1.11)।
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