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22 जनवरी 2011

पढ़ाई पर छिड़ी लड़ाई

शिक्षा के क्षेत्र में निजी स्कूलों की मनमानी, बेहिसाब मुनाफाखोरी और आर्थिक हेराफेरी किसी एक शहर या प्रदेश की नहीं बल्कि देशव्यापी समस्या बन गई है। सरकारों की उदासीनता के चलते इस गंभीर समस्या का अभी तक कोई हल नहीं खोजा जा सका है। लेकिन अब शिक्षा का अधिकार कानून बन जाने के बाद उम्मीद की जा सकती है कि सरकारों को इस दिशा में संजीदगी के साथ सोचना और सख्त कदम उठाना ही पड़ेगा, अन्यथा शिक्षा का अधिकार कानून एक मजाक बन कर रह जाएगा। हालांकि ऐसा करने में कई तरह की मुश्किलें भी सरकार के सामने आनी तय हैं, क्योंकि मनमानी और मुनाफाखोरी पर सरकारी अंकुश, शिक्षा के कारोबारियों को कतई रास नहीं आएगा और ऐसी स्थिति में उनका सरकार के साथ टकराव होना तय है। इस तरह के टकराव की शुरुआत दिल्ली में तो हो भी चुकी है। दिल्ली में निजी स्कूलों में २५ प्रतिशत सीटें गरीब परिवारों के बच्चों के लिए के आरक्षित करने के सवाल पर दिल्ली सरकार और निजी स्कूलों के संचालकों में ठन गई है। दिल्ली सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून के तहत स्कूलों में २५ प्रतिशत स्थानों पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को दाखिला देना अनिवार्य कर दिया है। लेकिन निजी स्कूलों के संचालकों ने सरकार के इस आदेश को मानने से साफ इनकार करते हुए कह दिया है कि वे सरकारी नीति के मुताबिक गरीब बच्चों के लिए २५ प्रतिशत स्थान आरक्षित नहीं करेंगे और न ही किसी बच्चे को मुफ्त में कॉपी-किताब और वर्दी देंगे। शिक्षा के इन निजी कारोबारियों का यह भी कहना है कि वे २५ फीसदी बच्चों का बोझ सामान्य कोटे के ७५ फीसदी बच्चों पर नहीं डाल सकते, क्योंकि अगर वे सरकार के आदेश पर अमल करेंगे तो उनके लिए अपने स्कूलों के ७५ प्रतिशत बच्चों की फीस बढ़ाना अनिवार्य हो जाएगा। इन शिक्षा व्यवसायियों ने धमकी भरे अंदाज में कहा है कि सरकार ने अगर अपना फैसला मनवाने के लिए जोर-जबरदस्ती की तो ऐसी स्थिति में वे अपने स्कूल बंद कर देंगे। निजी स्कूलों के संचालकों की इस हठधर्मिता और धमकी भरी चेतावनी पर दिल्ली सरकार ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि शिक्षा का अधिकार कानून के प्रावधानों को उल्लंघन करना आपराधिक मामला बनता है। इसलिए ऐसे में निजी स्कूलों को सरकार का फैसला हर हालत में मानना ही होगा और जो स्कूल ऐसा नहीं करेंगे, सरकार उन स्कूलों की मान्यता रद्द करने जैसा सख्त कदम उठाने में भी नहीं हिचकिचाएगी। निजी स्कूल संचालकों की मनमानी के खिलाफ दिल्ली सरकार ने जो कड़े तेवर अख्तियार किए हैं वे किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं कहे जा सकते, क्योंकि सरकार निजी स्कूलों में जिन गरीब बच्चों को दाखिला देने के लिए कह रही है उनके लिए वह प्रति एक बच्चे पर १२०० से १५०० रुपए संबंधित स्कूल को अदा करेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार ने जो कड़े तेवर अभी सिर्फ अपने बयानों में दिखाए हैं, उन्हें वह कार्यरूप में अंजाम भी देगी, जो कि उसे देना ही चाहिए(संपादकीय,नई दुनिया,दिल्ली,22.1.11)।

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