जल्द ही यह धारणा टूटने जा रही है कि लंबे समय तक किसी कथा वाचक का शिष्य बनकर ही कथा प्रवचन सीखा जा सकता है। इसके लिए अब किसी आश्रम में जाने की जरूरत भी नहीं रहेगी। कथा वाचक बनना है तो क्लास में आने के लिए तैयार हो जाइए। उत्तराखंड संस्कृत विवि की ओर से कथा प्रवचन नाम से पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है। इसके पौराणिक कर्म को प्रोफेशनल पाठ्यक्रम का पुट देने की तैयारी है।
संस्कृत विद्यालयों और महाविद्यालयों से पढ़कर आने वाले अनेक छात्र पंडिताई और पुरोहिताई को आजीविका का माध्यम बनाते हैं। संस्कृत का ज्ञान होने के चलते यह छात्र ग्रंथों में वर्णित श्लोकों का सही उच्चारण करने में सक्षम होते हैं। कथा वाचकों के प्रवचनों में उमड़ती भीड़ इन युवाओं को आकर्षित करती है। संस्कृत का ज्ञान और धर्मग्रंथों की जानकारी होने के बाद भी यह युवा कथा वाचक नहीं बन पाते, क्योंकि इनके पास प्रवचन की शैली नहीं होती। इन युवाओं को छोटे-मोटे पौरोहित्य कर्म कर ही आजीविका चलानी पड़ती है। जिसके चलते इन्हें कथा वाचक की अपेक्षा नाम और दान दोनों कम मिल पाते हैं।
संस्कृत महाविद्यालयों से शास्त्री (समकक्ष बीए) और आचार्य (समकक्ष एमए) करने के बाद कथा प्रवचन के क्षेत्र में नाम कमाने के इच्छुक युवाओं के लिए उत्तराखंड संस्कृत विवि नया पाठ्यक्रम शुरू करने जा रही है।
कुलपति डा. सुधा रानी पांडे ने बताया कि कथा प्रवचन नाम से सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स शुरू किए जाएंगे। इनके लिए पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है। सर्टिफिकेट कोर्स छह माह और डिप्लोमा कोर्स एक साल की अवधि का होगा। शास्त्री उत्तीर्ण छात्रों को इनमें प्रवेश दिए जाएंगे। बताया कि कथा प्रवचन पाठ्यक्रम की कक्षाएं आने वाले सत्र से प्रारंभ हो जाएंगी(अमर उजाला,हरिद्वार,30.1.11)।
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