पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) में आये दिन किसी न किसी घपले या गोरखधंधे के खिलाफ आवाज बुलंद होती है। मामले को गंभीरता से लेते हुए विवि प्रशासन बिना कोई देर किये जांच समिति का गठन करता है। मामले की पड़ताल तब तक जारी रहती है, जब तक आरोपी छोड़ नहीं दिए जाते। जांच के नाम पर लाखों रुपये पानी में बहाने के बावजूद नतीजा सिफर ही रहता है। बीते कुछ सालों में जांच समितियों और पीयू प्रशासन के बीच सांठगांठ के कई मामले सामने आये हैं। इसके मद्देनजर अब पीयू प्रशासन और जांच समितियों की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। विवि में इवनिंग स्टडीज के नाम पर लाखों के खेल की शिकायत किए जाने पर कुलपति प्रो.आरसी सोबती ने हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जीएस बराड़ को मामले की जांच सौंपी और डेढ़ लाख रुपये का भुगतान किया। बराड़ ने मामले की जांच के बाद पूर्व चेयरपर्सन द्वारा उठाए सभी सवालों को नजर अंदाज कर विवि प्रशासन को क्लीन चिट दे दी कि सब कुछ पाक साफ है। इसके बाद इंजीनियरिंग में दाखिले में करोड़ों के गबन का मामला सामने आया। आरोप लगे कि केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में दाखिले के दौरान करीब आधा दर्जन शिक्षकों ने करोड़ों का गबन किया है। तत्कालीन चेयरमैन ने जांच कराई जिसमें गड़बड़ी पाई गई। टीचरों ने विद्यार्थियों से पैसे लिए और रसीद भी दी लेकिन पैसा बैंक में जमा नहीं हुआ। कंपनियों से स्पांसरशिप ली गई लेकिन इसका कोई रिकार्ड नहीं रखा। करोड़ों की स्पांसरशिप रकम खुदबुर्द हुई। एडमिशन के दौरान जो भी खर्च हुआ इसका भी कोई रिकार्ड नहीं रखा गया। बाद में इस सारे मामले की जांच बॉटनी के चेयरमैन प्रो. आरके कोहली को दे दी गई जिन्हें आज तक खुद नहीं पता कि रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई हुई। नंबर घटाने-बढ़ाने का खेल : इतिहास विभाग के कई टीचरों ने साथी शिक्षक प्रो.जेएस धानकी की बेटी हरप्रीत कौर के नंबर बढ़ाने और विभाग की टॉपर अवनीत कौर के नंबर घटाने के काम को अंजाम दिया। स्वर्गीय सीनेट सदस्य जेसी बंसल को जांच सौंपी गई जिन्होंने छह टीचरों सहित तीन नान टीचिंग कर्मियों को दोषी पाया। फिर जस्टिस (रि) एमएल सिंघल और जस्टिस (रि) जीसी गर्ग को जांच सौंपी गई। जांच तब तक कराई जाती रही जब तक आरोपियों को छोड़ नहीं दिया गया। सीनेट सदस्य जीके चतरथ की अगुवाई में बनी कमेटी ने इन सभी नौ लोगों को आरोप मुक्त कर दिया। मामला चंडीगढ़ की जिला अदालत में चल रहा है। विवि की परीक्षा प्रकोष्ठ में गंभीर धांधली हुई। दर्जनों कर्मचारी संशय के घेरे में हैं। पूर्व डीयूआई प्रो. एसके शर्मा की अगुवाई वाली जांच कमेटी ने इन्हें दोषी पाया लेकिन इस जांच पर ही सवाल उठा दिए गए। अब जांच रिटायर्ड जस्टिस केसी गुप्ता के पास है, जिन्होंने शर्मा को गवाही के लिए बुलाया है। उम्मीद कम ही है कि आरोपी घेरे में आएं। इसी प्रकार यूबीएस विभाग में पेपर सेटिंग की धांधली में रीडर मनोज शर्मा पर आरोप लगे कि उन्होंने किसी और को दिया पेपर खुद सेट कर दिया। पहले लॉ के डॉ. वरिंदर कुमार को जांच सौंपी गई जिन्होंने आरोपी के पक्ष में रिपोर्ट दी। जांच जस्टिस (रि)आरके नेहरू को सौंपी गई जिन्होंने मामले में रीडर को पूरी तरह से आरोप मुक्त कर दिया(साजन शर्मा,दैनिक जागरण,चंडीगढ़,28.1.11)।
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