25 फीसदी गरीब कोटे को लेकर सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद पब्लिक स्कूलों का रवैया बदल नहीं रहा है। दिल्ली सरकार की चेतावनी के बावजूद एक बार फिर से कोटे का विरोध कर रहे पब्लिक स्कूलों ने साफ कर दिया है कि गरीब कोटा किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं होगा।
सरकार और स्कूलों के बीच जारी तानातनी के बीच जहां एक ओर आगे की रणनीति तैयार करने के उद्देश्य से राजधानी के स्कूलों के प्रतिनिधियों का एक समूह शनिवार दोपहर एक बार फिर से एकजुट हो रहा है, वहीं दूसरी ओर दिल्ली सरकार की ओर से भी सोमवार को पब्लिक स्कूलों की बैठक का बुलावा भेजा जा रहा है।
बीती 19 जनवरी को निजी स्कूलों की सात प्रतिनिधि एसोसिएशन ने मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून 2009 के तहत 25 फीसदी गरीब कोटा देने से इंकार कर दिया था। जिसके तुरंत बाद सरकार हरकत में आई और मुख्यमंत्री से लेकर शिक्षामंत्री तक सभी ने साफ किया कि स्कूलों की मनमानी नहीं चलेगी और कानून का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
सरकार के इस रुख के बाद एक बार फिर से शुक्रवार को कोटे का विरोध कर रहे सभी स्कूल संगठनों ने न सिर्फ सरकार की बात मानने से इंकार कर दिया है, बल्कि आगे की रणनीति तय करने की मुहिम में भी जुट गए हैं।
कोटे का विरोध कर रहे संगठनों मंे शामिल दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के प्रमुख आरसी जैन ने बताया कि सरकार चाहे जो कहे, हमें कोटे के जरिए निजी क्षेत्र में आरक्षण स्वीकार नहीं होगा।
उन्हें सरकार का डर नहीं है। कानून के तहत जो कार्रवाई उनके खिलाफ होगी, उसके लिए वह तैयार है। शनिवार को एक बार फिर से पब्लिक स्कूलों का समूह बैठक करने जा रहा है और जल्द ही विरोध ओर तेज किया जाएगा।
हालांकि सरकार के खिलाफ राजधानी के स्कूलों में भी दो धड़े नजर आ रहे हैं और एक्शन कमेटी के तौर पर खड़ा दूसरा धड़ा कानून की बात करते हुए फिलहाल के लिए कोटे को लागू करने की बात कर रहा है।
एक्शन कमेटी के उपाध्यक्ष एसएल जैन कहते हैं कि गरीब कोटे को लेकर पहले ही स्कूल सर्वोच्च न्यायालय जा चुके हैं, ऐसे में न्यायालय का फैसला आने का इंतजार करना ही सही है। कानून का पालन करना उनका दायित्व है(दैनिक भास्कर,दिल्ली,22.1.11)।
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