सर्वशिक्षा अभियान के बेहतर नतीजों के बाद सरकार ने माध्यमिक शिक्षा को सबकी पहंुच में लाने का एजेंडा तो तय कर दिया, लेकिन राज्य सरकारें अपने ही ढर्रे पर चल रही हैं। पुराने प्रस्तावों पर अमल और धन खर्च करने की समस्या तो है ही, राज्य सरकारें केंद्र को सालाना नए प्रस्ताव भेजने में भी उदासीन हैं। राज्यों के इस रवैये को देखते हुए ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने उन्हें अपने नए सालाना प्रस्ताव हर हाल में 28 फरवरी तक भेज देने को कहा है। सूत्रों के मुताबिक सर्वशिक्षा अभियान की तर्ज पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ माध्यमिक शिक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए शुरू किया गया राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान गति नहीं पकड़ पा रहा है। ज्यादातर राज्य सरकारें 2009-10 में ही नहीं, बल्कि 2010-11 में भी अपने सालाना प्रस्ताव भेजने में उदासीन ही रहीं। आलम यह रहा कि आगामी 31 मार्च को खत्म होने वाले चालू वित्तीय वर्ष के लिए भी आधा दर्जन से अधिक राज्यों ने बीते साल नवंबर तक अपने प्रस्ताव मानव संसाधन विकास मंत्रालय नहीं भेजे थे। बताते हैं कि राज्यों के इस रुख के मद्देनजर ही मंत्रालय ने आगामी वित्तीय वर्ष 2011-12 के लिए राज्यों को आगामी 28 फरवरी तक हर हाल में अपने सालाना प्रस्ताव भेजने के निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि 11वीं योजना के अंत (2011-12) तक माध्यमिक स्तर पर (कक्षा नौ-दस) का दाखिला दर 52 प्रतिशत से बढ़ाकर 70 प्रतिशत करने का लक्ष्य तय किया है। इसके पीछे उसकी मंशा लगभग 32 लाख से अधिक अतिरिक्त बच्चों को माध्यमिक में दाखिला दिलाने की है। योजना के तहत 60 हजार माध्यमिक विद्यालयों को उच्चीकृत या फिर ज्यादा सुदृढ़ बनाना है। ग्यारह हजार नए माध्यमिक विद्यालयों को खोलने के साथ ही 80,500 हजार अतिरिक्त कक्षाओं का निर्माण व लगभग दो लाख और शिक्षकों की भर्ती भी की जानी है। सूत्र बताते हैं कि बीते वर्षो का अनुभव बताता है कि ज्यादातर राज्य सरकारों ने अपने सालाना प्रस्तावों पर केंद्र से मंजूरी तो ले ली, लेकिन धन खर्च और भौतिक लक्ष्य को पूरा करने के मामले में वे प्राय: खरी नहीं उतरीं। ऐसे में 11वीं योजना के अंत तक के लक्ष्य को हासिल कर पाना लगभग नामुमकिन लगता है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,12.1.11)।
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