अब न तो एम्स में होने वाली नई रिसर्च, स्टडी और डॉक्टरी कारनामों के बारे में लोगों को पता चल सकेगा और न ही किसी महत्वपूर्ण विषय पर उनकी प्रतिक्रिया मिल सकेगी। देश के इस सबसे बड़े और प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान के डॉक्टरों की बोलने की आजादी छीन ली गई है और उनके मीडिया से बात करने पर पाबंदी लगा दी गई है। वैसे तो इस संबंध में कई सर्कुलर जारी किए गए हैं, लेकिन पाबंदी लगाने का कोई कारण नहीं दिया गया है। एम्स के सीनियर डॉक्टर इससे काफी नाराज हैं, लेकिन कोई भी खुलकर विरोध करने से बच रहा है।
पिछले एक महीने के भीतर प्रशासन ने फैकल्टी सदस्यों के लिए कई सर्कुलर जारी किए हैं। इनमें से एक सर्कुलर में कहा गया है कि कोई भी डॉक्टर लोगों को प्रभावित करने वाली किसी नई साइंटिफिक रिसर्च या डेटा आदि पर पत्रकारों से बात नहीं करेगा, यानी हेल्थ से जुड़े किसी मुद्दे पर अब एम्स के एक्सपर्ट की राय नहीं ली जा सकेगी। यहां तक की एम्स द्वारा की गई स्टडी पर भी दूसरे अस्पतालों के डॉक्टरों से बात करनी होगी। अगर कोई डॉक्टर प्रेस रिलीज जारी करना चाहे, तो भी पहले प्रशासन की एक कमिटी से मंजूरी लेना होगा। इसके लिए मीडिया संयोजन और प्रेस रिलीज समिति बनाई गई है। दूसरे सर्कुलर में कहा गया है कि किसी भी मुद्दे पर डॉक्टर एक साथ नहीं आ सकते। एक अन्य सर्कुलर में कहा गया है कि किसी भी फैकल्टी सदस्य को ऐसी मीटिंग, कॉन्फ्रेंस, वर्कशॉप और सिंपोजियम में शामिल होने की इजाजत नहीं दी जाएगी, जिसके रिक्वेस्ट लेटर में समयसीमा नहीं बताई गई होगी। इसके साथ यह भी कहा गया है कि कोई डॉक्टर अपनी ईएल (अर्न्ड लीव) के दौरान इस तरह की गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकते।
डॉक्टरों का कहना है कि विंटर वेकेशन का फायदा उठाकर प्रशासन ने ऐसे जनविरोधी फरमान जारी किए हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, ताकि जन विरोधी फैसलों के खिलाफ डॉक्टर अपनी प्रतिक्रिया न दे सकें। सीनियर डॉक्टरों के संगठन प्रोग्रेसिव मेडिकोज एंड साइंटिस्ट फोरम के सदस्यों का कहना है कि एक तरफ वलियाथन कमिटी की सिफारिशों में संस्था की स्वायत्तता बढ़ाने की बात कही गई है और दूसरी ओर प्रशासन अपने फैसलों से इसकी अकादमिक स्वायत्तता खत्म कर रही है। इससे देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान में काम करने वाले एक्सपर्ट्स की राय से लोगों को वंचित होना पड़ेगा। सीनियर डॉक्टरों का कहना है कि इससे पहले एम्स में इस तरह की कोशिश कभी नहीं हुई थी। यही वजह है कि इमरजेंसी के दौरान यहां स्टूडेंट तक ने विरोध प्रदर्शन किए थे। हमेशा से यहां की फैकल्टी को किसी भी मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता थी। दुनिया के किसी अन्य कॉलेज या संस्थान के टीचर्स पर भी इस तरह के प्रतिबंध नहीं हैं। पहले दो संस्थानों की फैकल्टी पर इस तरह के प्रतिबंध लगाए थे, लेकिन कड़े विरोध के बाद उन्हें हटाना पड़ गया। इनमें पीजीआई चंडीगढ़ और हावर्ड मेडिकल स्कूल सबसे बड़ा उदाहरण हैं।
(नीतू सिंह,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,20.1.11)
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