सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को खारिज करते हुए कहा कि सेवानिवृत्ति की उम्र को घटाने या बढ़ाने का एकतरफा अधिकार केवल सरकार के पास है और अदालतें सरकार के इस अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं। न्यायाधीश जे एम पांचाल, दीपक वर्मा और बी चौहान की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को अमान्य घोषित करते हुए कहा कि सेवानिवृत्ति की आयु तय करने का अधिकार केवल सरकार के पास है। गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में मायावती सरकार को सरकारी वकीलों की सेवानिवृत्ति की आयु को फिर से 62 वर्ष करने का आदेश दिया था। न्यायालय ने सरकार के इस तर्क को स्वीकार किया कि सेवानिवृत्ति की आयु तय करने का अधिकार राज्य के अधीन निहित है और अदालत को ऐसे नीतिगत फैसलों में तब तक दखल नहीं देना चाहिए जब तक वह संविधान के दायरे से बाहर नहीं हो। बिशुन नारायण मिश्रा बनाम उतर प्रदेश राज्य (1965) पर संवैधानिक खंडपीठ के निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि सेवानिवृत्ति की आयु को घटान न तो अमान्य है और न ही इसे दोहराने के लिए कहा जाना चाहिए क्योंकि जिस नियम के बारे में बात की जा रही है वह मुश्किल परिस्थिति से निपटने के लिए अपनाया गया था जो लोक सेवाओं के सामने उभर सकती है। यह जाहिर है कि सरकारी सेवाओं में जहां नियम और शर्तें संवैधानिक प्रावधानों के जरिए तय की जाती हंै, वहां विधायिका सेवानिवृत्ति की समय सीमा को घटाने और बढ़ाने को लेकर सक्षम है। खंडपीठ ने कहा उपरोक्त मामलों के आलोक में यह हमारी समझ के बाहर है आखिर क्यों इस मामले को स्वीकार किया गया जबकि जिला स्तर पर काम करने वाले सरकारीवकीलों की सेवानिवृत्ति की उम्र को राज्य निर्धारित कर रहा था(दैनिक जागरण,दिल्ली,1.1.11)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।