अमेरिका में २०११ के दौरान करीब ५० लाख कर्मचारियों की कमी होगी और यह २०३० तक बढ़कर ३.६ करोड़ हो जाएगी। वहीं, यूरोपीय आयोग अनुसंधान ने कहा कि ब्रिटेन में आईटी कर्मचारियों की भारी मात्रा में कमी है। एक आईटी प्रबंधक का औसत वेतन करीब ७०,००० पौंड हो जाएगा, जिसकी भरपाई छोटे एवं मध्य स्तर के उद्योग नहीं कर पाएंगे।
दुनिया में एक-दूसरे पर बढ़ती निर्भरता की वजह से सभी देश अपनी नीतियों को सख्त करते हुए तुलनात्मक कारकों पर ध्यान दे रहे हैं। दुनिया भर में तकनीकी परिवर्तन तेजी से हो रहा है जबकि लेन-देन की प्रक्रिया और सहज होती जा रही है जिसके कारण वैश्विक एकीकरण को मजबूती मिल रही है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह दशक "विचारों की ताकत" के बल लड़ा और जीता जाएगा। इस मामले में भारत के पास दूसरे देशों की तुलना में अधिक कुशल मैनपावर है। जनसांख्यिकीय भिन्नता बताती है कि आगामी २० से ३० सालों में भारत को बढ़ती युवा फौज का पूरा लाभ मिलेगा, साथ ही, वह नई संभावनाएं पैदा करेंगे जिनका इस्तेमाल भी पूरी तरह किया जाएगा। ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन (आईमा) ने टास्क फोर्स बनाई जिसमें सीआईआई और बोस्टन कंसल्टेंसी गु्रप भी शामिल हैं जिसने अपनी रिपोर्ट में भारत में बढ़ती संभावनाएं व्यक्त की हैं।
दुनिया में एक-दूसरे पर बढ़ती निर्भरता की वजह से सभी देश अपनी नीतियों को सख्त करते हुए तुलनात्मक कारकों पर ध्यान दे रहे हैं। दुनिया भर में तकनीकी परिवर्तन तेजी से हो रहा है जबकि लेन-देन की प्रक्रिया और सहज होती जा रही है जिसके कारण वैश्विक एकीकरण को मजबूती मिल रही है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह दशक "विचारों की ताकत" के बल लड़ा और जीता जाएगा। इस मामले में भारत के पास दूसरे देशों की तुलना में अधिक कुशल मैनपावर है। जनसांख्यिकीय भिन्नता बताती है कि आगामी २० से ३० सालों में भारत को बढ़ती युवा फौज का पूरा लाभ मिलेगा, साथ ही, वह नई संभावनाएं पैदा करेंगे जिनका इस्तेमाल भी पूरी तरह किया जाएगा। ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन (आईमा) ने टास्क फोर्स बनाई जिसमें सीआईआई और बोस्टन कंसल्टेंसी गु्रप भी शामिल हैं जिसने अपनी रिपोर्ट में भारत में बढ़ती संभावनाएं व्यक्त की हैं।
स्टीम इंजन के आविष्कार ने पश्चिम देशों की आर्थिक वृद्धि को तेजी दी और औद्योगिक क्रांति पैदा की। इन इंजनों को कोयला और पेट्रोलियन की जरूरत थी। औद्योगिक देशों ने अपने सभी स्रोतों का इस्तेमाल करने के बाद दूसरे देशों की ओर रुख किया, जिससे आर्थिक वृद्धि आपूर्तिकर्ता देशों की ओर झुक गई जैसे तेल उत्पादक देश। यह कहानी अब एक बार फिर दोहराई जा रही है। पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं को विकास की गति बरकरार रखने के लिए अब जानकार कर्मचारी और सक्षम प्रोफेशनल्स की जरूरत महसूस हो रही है। टास्क फोर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अगले दो दशकों में विकसित देशों को भारी संख्या में सक्षम प्रोफेशनलों की किल्लत पड़ने वाली है। विकसित देशों की यह परेशानी विकासशील देशों जैसे भारत के लिए बड़ी संभावनाएं पैदा करेगी। भारत इन देशों में छाई कमी पूरा करने के लिए दूरस्थ सेवाएं दे सकता है और भारत में ही ग्राहकों और सेवाओं का आयात कर जरूरतों को पूरा कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अकेले दूरस्थ सेवाओं के जरिए वर्ष २०२० तक १३३ से ३१५ अरब डॉलर का अतिरिक्त कारोबार किया जाएगा। इसके अलावा इससे देश में करीब एक करोड़ से २.४ करोड़ अतिरिक्त रोजगार का सृजन होगा। इतना ही नहीं, भारत में ग्राहकों को आयात कर (स्वास्थ्य पर्यटन, शिक्षा सेवाएं, अवकाश पर्यटन) के जरिए ६ से ५० अरब डॉलर का कारोबार किया जाएगा और साल २०२० तक एक करोड़ से ४.८ करोड़ रोजगार पैदा होंगे। दूरस्थ सेवाएं भारत के लिए प्रमुख भूमिका निभाएंगी, क्योंकि इसका कुल जीडीपी में सालाना १.५ फीसदी की हिस्सेदारी होगी। अमेरिकी रोजगार नीति संस्थान के अध्यक्ष ईडी पॉटर ने कहा था कि अगले ३० सालों में अमेरिका में ६.१ करोड़ सेवानिवृत्ति लोगों की फौज खड़ी हो जाएगी। २०११ के दौरान ५० लाख कर्मचारियों की कमी होगी और यह २०३१ तक बढ़कर ३.६ करोड़ हो जाएगी।
यूरोपीय आयोग अनुसंधान ने कहा कि ब्रिटेन में आईटी कर्मचारियों की भारी मात्रा में कमी है। बोस्टन कंसल्टेंसी के मुताबिक, २०२० तक विकसित देशों में दो करोड़ से तीन करोड़ सक्षम कर्मचारियों की कमी हो जाएगी, जिसमें अमेरिका, जापान, स्पेन, कनाडा और ब्रिटेन शामिल हैं।
वहीं विकसित देशों में सेवाओं की बढ़ती लागत भी घातक साबित होगी । भारत में बहुत कंपनियों का प्रबंध अपनी क्षमता के औसतन तीन-चौथाई पर ही काम कर रहा है और उनके कामकाज सुधारने की बड़ी संभावनाएं हैं। अखिल भारतीय प्रबंधन एसोसिएशन एवं वैश्विक परामर्शदाता कंपनी मर्कर के संयुक्त सर्वे के अनुसार भारत में कंपनियों का प्रबंध उनकी क्षमता से कम स्तर पर हो रहा है। इसमें सुधार के पर्याप्त अवसर हैं। इस सर्वे के आधार पर तैयार प्रबंध क्षमता सूचकांक के अनुसार भारत में कंपनियों ने २०१० में कुल मिलाकर अपनी प्रबंधकीय क्षमता के ७४.६ प्रतिशत का उपयोग किया(आशुतोष वर्मा,नई दुनिया,दिल्ली,31.1.11)
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