कई संस्थाएं अब अपने चुने हुए कर्मचारियों की आगे की पढ़ाई स्पॉन्सर करने में रुचि दिखा रही हैं। इसके पीछे कंपनियों का मकसद अपने कर्मचारियों की सोच को व्यापक बनाना और उन्हें विभिन्न कार्यो के आपसी तालमेल को समझने में सक्षम बनाना है
बहुआयामी क्षमता के इस दौर में केवल एक क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करना ही काफी नहीं है। अपने कर्मचारियों को ऊंचे लक्ष्य हासिल करने को प्रेरित करने के लिए विभिन्न कंपनियां अपने कर्मचारियों को उच्चशिक्षा के लिए स्पॉन्सर करने की इच्छा दिखा रही हैं, जिसके लिए बाकायदा उम्मीदवारों को जटिल चुनाव प्रक्रिया से गुजरना होता है। यह स्थिति दोनों ही पक्षों के लिए बेहतर साबित होती है। कर्मचारी एक प्रतिष्ठित संस्थान से कंपनी से किए गए भुगतान के आधार पर उच्चशिक्षा हासिल कर लेता है और कंपनी को एक नए रूप में प्रशिक्षित व विभिन्न कार्यो में निपुण उम्मीदवार मिल जाता है।
मुंबई स्थित नरसी मुंजी इंस्टीटय़ूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (एनएमआईएमएस) देबाशीष सान्याल के अनुसार, यदि कोई कर्मचारी कार्यस्थल पर बने रहना चाहता है, तो विभिन्न कार्यो में दक्षता हासिल होना जरूरी हो गया है। संस्थान के लिए यह प्रक्रिया निवेश करने के समान है। साथ ही एक विभाग विशेष में लगातार काम करते रहने से कर्मचारियों की ग्रोथ भी रुक जाती है।
अर्नेस्ट एंड यंग के ह्यूमन कैपिटल के पार्टनर एन.एस.राजन के अनुसार नई पीढ़ी शिक्षा की जरूरत को समझती है। बीपीओ आदि क्षेत्र में जिस तरह काम करने वालों में अंडर ग्रेजुएट और ग्रेजुएट लोगों की संख्या बढ़ी है, संस्थान को उनकी स्किल्स को अपग्रेड करने की जरूरत महसूस होने लगी है। इसका एक फायदा यह भी है कि इससे कंपनियों को अपने निपुण कर्मचारी को अपने यहां रोके रखने में मदद मिलती है और कर्मचारियों को अपने ही संस्थान में बेहतर संभावनाएं मिल जाती हैं। हमने इस संबंध में ऐसे ही दो कर्मचारियों से बात की, जिन्हें इस तरह के प्रोग्राम से लाभान्वित होने का मौका मिला
फिर जीने को मिली स्टूडेंट लाइफ
कार्तिक राजू मुरुगेसन,
मैनेजर, टेक्निकल सर्विस ग्रुप, मैंडो इंडिया लि. आनंद ग्रुप, इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग में दो वर्षीय पोस्टग्रेजुएट डिग्री, मुंबई एनआईटीआईई से
कब: वर्ष 2008 में
कोर्स फीस: 2 लाख रुपये
मुझे क्यों चुना गया
मैं टेक्निकल सर्विस ग्रुप में सीनियर इंजीनियर था। नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ इंडस्ट्रियल इंजीनियर एनआईटीआईई से पोस्टग्रेजुएट कोर्स करने के लिए आंतरिक सूचना दी गई थी। मेरे विभाग से मेरा नाम चुना गया था। यह प्रोग्राम सप्लाई चेन मैनेजमेंट से संबंधित था और मैं इसे पढ़ने का इच्छुक भी था। मैंने ऑनलाइन एप्टीटय़ूड टेस्ट पास किया था।
चुनौती: हम सभी को नियमित तौर पर अपनी जानकारी अपडेट करने की जरूरत होती है। तीन साल के अंतराल के बाद एक बार फिर विद्यार्थी जीवन के साथ तालमेल बिठाना चुनौतीपूर्ण था।
पढ़ाई का समय : अंतराल के बाद कक्षा में जाना और लेक्चर सुनना बड़ा मुश्किल था। मुझे अपनी बदली जीवनशैली को बदलना था। हर तीन महीने बाद हमारे पेपर होते थे। रात भर जाग कर पढ़ाई करनी होती थी। 77 बच्चों की कक्षा में हम सात लोगों की टीम बन गई थी। हम एक साथ समय बिताते थे। मुझे हिन्दी की अच्छी जानकारी नहीं थी, इस काम में मेरा ग्रुप मुझे मदद करता था।
पारिवारिक समझौता : मैं इससे पहले कभी हॉस्टल में नहीं रहा था। मैं पहली बार घर से दूर रह रहा था। यह एक अच्छा अनुभव था। न सिर्फ मेरी कंपनी ने मेरी पढ़ाई स्पॉन्सर की, बल्कि सेलरी के तौर पर 30 हजार रुपये रुपये प्रतिमाह भी दिए गए। मैं वीकेंड में एक बार घर मिलने के लिए आ जाता था।
क्या सीखा : कोर्स करने के बाद सप्लाई चेन और लॉजिस्टिक्स डिपार्टमेंट में मैनेजर के तौर पर मेरी पदोन्नति हुई। इस भूमिका में मुझे टीम का काम निर्धारित करना और उसे कंपनी के लक्ष्यों से जोड़ने का काम करना था।
कंपनी की नीति
के. एस. भुल्लर, प्रेजिडेंट, एचआर ग्रुप, आनंद ग्रुप चेन्नई आनंद ग्रुप में, 1978 से उच्च शिक्षा को स्पॉन्सर किया जा रहा है। मुझे भी ऐसे ही एक प्रोग्राम का लाभ मिला था और एक्सएलआरआई में एमबीए करने का मौका भी। उन दिनों होस्टल खर्च और फीस स्पॉन्सर्ड थी, पर अब की तरह कर्मचारियों को वेतन या भत्ता आदि नहीं मिलते थे। कंपनी का मानना है कि हम दूसरी जगह जाकर एमबीए हायर करें, इससे बेहतर है कि हम अपने ही योग्य कर्मचारियों को एमबीए करने का मौका दें। इस प्रक्रिया में ऐसे उम्मीदवारों का चुनाव किया जाता है जिनकी उम्र 30 से कम है और जिनकी शादी नहीं हुई है।
शादीशुदा व्यक्ति को कई तरह की पारिवारिक जिम्मेदारियों भी होती हैं। कोर्स के बाद प्रत्येक कर्मचारी को एक पद आगे की पदोन्नति मिलती है। कर्मचारी चुनने का मुख्य आधार उनकी परफॉरमेंस होती है। कर्मचारी 5 लाख रुपये के बॉन्ड पर हस्ताक्षर करता है, जिसे कोर्स पूरा हाने के बाद तीन वर्ष से पहले संस्थान छोड़ने पर भुगतान करना होता है।
लगा कि मैं फिर 21 साल का हूं
दीपक प्रकाश,
उपाध्यक्ष, टैली सॉल्यूशन प्राइवेट लि., बेंगलुरू
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद से 21 दिवसीय एक्जीक्युटिव मैनेजमेंट प्रोग्राम
कब: अगस्त 2010
कोर्स फीस: 3 लाख रुपये
मुझे क्यों चुना गया
मैं टैली में पिछले 17 वर्ष से काम कर रहा हूं और वर्तमान में सेल्स का प्रभार मेरे ऊपर है। टैली में काम करते हुए मैंने पाया कि शिक्षा व्यक्ति को नए अवसरों का सामना करने के लिए तैयार करती है। मैनेजमेंट ने मुझे प्रोग्राम के लिए भेजने का निर्णय किया। इस प्रोग्राम का मुख्य फोकस अन्य बातों के साथ बिजनेस में विकास के पहलुओं और निर्णय लेने की प्रक्रिया पर है।
चुनौतियां : जब किसी संस्थान में आप बहुत तेजी से तरक्की कर रहे होते हैं - आपके सामने कई तरह के डर होते हैं - क्या आप सही निर्णय ले रहे हैं, आप वह निर्णय कैसे लेते हैं? कोर्स से पूर्व मेरा काम सिर्फ विभाग के कार्यो तक सीमित था, पर अब मैं सीनियर मैनेजमेंट का हिस्सा हूं और मुझे सभी तरह के कार्यो मसलन फाइनैंस, स्पलाई आदि विभिन्न कार्यो को समग्रता से देखना सीखना है। आईआईएम-ए का 21 दिवसीय प्रोग्राम इस उद्देश्य तक पहुंचने में मदद करता है।
पढ़ाई के लिए समय : मैंने अपनी बीकॉम की पढ़ाई 1990 में पूरी की थी, यह मेरी अंतिम अकादमिक पढ़ाई थी। कैंपस में आकर मुझे एक बार फिर लगा जैसे मैं 21 साल का हूं। सबसे अच्छा सीखने का अवसर दूसरी कंपनियों में काम करने वाले अपने सहपाठियों के साथ विचारों को शेयर करना था। हम देर रात तक पढ़ते थे और आपस में विचार-विमर्श करते थे। आज भी हम स्टूडेंट्स एक-दूसरे से संपर्क में हैं।
पारिवारिक समझौते : पहली बार ऐसा था कि मैं अपने परिवार से 21 दिनों के लिए दूर जा रहा था। मुझे पूरा वेतन भी दिया गया।
नया सीखना: कोर्स पूरा करने के बाद मुझे समझ आया कि किस तरह विभिन्न भाग और उनके कार्य मेरे काम को प्रभावित करते हैं। हम कई ऐसे कार्य करते हैं, जो हमारे सामने आकर खड़े हो जाते हैं। हमें इसे ही बदलना है और अपने मूल्य स्थापित कर अपने मुताबिक परिणाम हासिल करने हैं यानी कार्यो पर नियंत्रण करना सीखना है।
कंपनी की नीति
गोविंद कृष्ण, वाइस प्रेजिडेंट और मानव संसाधन प्रमुख, टैली सॉल्यूशंस, बेंगलुरू
टैली सॉल्यूशन में अपने कर्मचारियों को उच्च शिक्षा के लिए स्पॉन्सर करने का प्रयास पांच साल पहले शुरू किया गया था। कंपनी की ओर से कर्मचारियों को आईआईएम-ए भेजा जाता है, जो कार्यशील पेशेवरों के लिए इंटरवेंशनल मैनेजमेंट प्रोग्राम चलाया जाता है। कर्मचारी से इसके लिए किसी बॉन्ड पर हस्ताक्षर नहीं कराए जाते, क्योंकि हम विश्वास के सिद्धांत पर काम करते हैं। हम यह विश्वास करते हैं कि कोर्स पूरा करने के बाद भी वे संस्थान में बने रहेंगे। लोगों कोर्स पूरा होते ही पदोन्नति नहीं दी जाती। उस पद पर खाली स्थान होने पर ही पदोन्नति दी जाती है।
(हिंदुस्तान,दिल्ली,31.1.11)
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