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02 फ़रवरी 2011

भर्ती के पिछले हादसों से सबक नहीं लिया हमने

सुरक्षा बलों में भर्ती के दौरान तरह-तरह के हादसों से दो चार होने के बावजूद जिस तरह बरेली में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की भर्ती के समय अव्यवस्था का परिचय दिया गया उससे यही पता चलता है कि पुरानी भूलों से कोई भी सबक सीखने के लिए तैयार नहीं-न तो इस तरह की भर्ती का आयोजन करने वाले सुरक्षा बल और न ही स्थानीय प्रशासन। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के अधिकारियों को इसका अहसास होना ही चाहिए था कि भर्ती के दौरान बड़ी संख्या में छात्र आ सकते हैं। ऐसा लगता है कि इस बारे में कहीं कोई विचार ही नहीं किया गया। परिणाम यह रहा कि जब भर्ती में अनुमान से अधिक प्रतिभागी आ गए तो आईटीबीपी के अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए और उन्होंने प्रतिभागियों को टरकाने की कोशिश की। इस स्थिति में भर्ती के लिए आए प्रतिभागियों में आक्रोश उमड़ना स्वाभाविक ही था, लेकिन यह समझना कठिन है कि उन्होंने अपना गुस्सा वाहनों, दुकानों और रेलगाडि़यों पर क्यों उतारा? ऐसा लगता है कि स्थानीय प्रशासन भी इस सबसे अनजान था कि आईटीबीपी की भर्ती में बड़ी संख्या में प्रतिभागी आ सकते हैं और भारी भीड़ के कारण कई तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। भर्ती से लौट रहे प्रतिभागियों के साथ शाहजहांपुर में जो दुर्घटना हुई वह भी अव्यवस्था का ही परिचायक है। आखिर किसी ने छात्रों को ट्रेन की छत पर चढ़ने से क्यों नहीं रोका? रेलकर्मियों और अधिकारियों को तो यह पता ही होगा कि ट्रेन की छत पर बैठकर यात्रा करने वाले छात्र हाईटेंशन तारों की चपेटमें आ सकते हैं। इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और क्या होगा कि छात्रों के साथ हुई इस दुर्घटना और बरेली में तोड़फोड़ तथा आगजनी की घटनाओं को लेकर दोषारोपण का सिलसिला आरंभ हो गया है। राज्य सरकार, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और स्थानीय प्रशासन के बीच अव्यवस्था के लिए जिस तरह एक-दूसरे को दोषी ठहराने का सिलसिला आरंभ हो गया है उससे यही पता चलता है कि कोई भी अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार नहीं है। आरोप-प्रत्यारोप के इस सिलसिले को देखते हुए इस पर आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता कि भर्ती के लिए आवश्यक इंतजाम करने में लापरवाही करने वाले लोगों को दंडित किया जा सकेगा(संपादकीय,दैनिक जागरण,लखनऊ,2.2.11)

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