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31 मई 2011

चयन का मतलब नियुक्ति नहीं:दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी नौकरी के लिए चयनित किए जाने का मतलब नियुक्ति नहीं होता। 17 वर्ष पहले एक नौकरी के लिए चयनित एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने यह बात कही।

लाल बाबू (45) ने अपनी याचिका में न्यायालय से कहा था कि जून 1991 में तत्कालीन दिल्ली इलेक्ट्रीसिटी सप्लाई अंडरटेकिंग (डेसू) में अनुसूचित जाति एवं जनजाति कोटे के तहत मेकेनिक के पद पर उसका चयन हुआ था। लेकिन 20 मई, 1993 को एक आधिकारिक पत्र में डेसू ने बाबू से कहा कि एससी/एसटी उम्मीदवार के लिए आरक्षित उस पद के लिए कोई जगह खाली नहीं है।
न्यायमूर्ति राजीव सहाय ने गुरुवार को दिए अपने आदेश में कहा कि 17 वर्ष लंबी देरी दुखद है और याचिकाकर्ता को किसी तरह की राहत मिलने का हक समाप्त होने के लिए यह पर्याप्त है। इसके अलावा केवल चयन होने से ही किसी को नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं मिल जाता।
बाबू ने 17 वर्षों तक इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाया। लेकिन उसने पांच जून, 2010 को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत एक आवेदन किया। उसे सूचित किया गया कि एससी/एसटी श्रेणी में वहां रिक्तियां थीं, लेकिन डेसू इन रिक्तियों को सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों से भर रहा था।


उसके बाद बाबू ने दिल्ली सरकार और डेसू के महाप्रबंधक के यहां आवेदन कर कहा कि उसे उस पद पर नियुक्त किया जाए या मौजूदा कंपनी में उसी दर्जे की कोई वैकल्पिक नियुक्ति दी जाए। न्यायालय ने कहा, ''डेसू का अस्तित्व 1997 से ही समाप्त हो गया है और उसका उत्तरवर्ती, दिल्ली विद्युत बोर्ड 2002 से ही कई हिस्सों में बिखर गया है। तभी से डेसू की विभिन्न जिम्मेदारियां कई उपक्रमों को स्थानांतरित कर दी गई हैं।''(हिंदुस्तान,दिल्ली,31.5.11)

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