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25 जून 2011

पंजाबःफार्मेसी के चिराग तले अंधेरा

फिल्लौर के रवि ने दो साल पहले फार्मेसी का डिप्लोमा किया था। नौकरी के लिए सरकारी व गैर संस्थानों से निराशा ही हाथ लगी। दवाइयों की दुकान खोलने के लिए छह माह पूर्व आवेदन किया था, परंतु विभाग से कोई जवाब नहीं आया। किराये पर ली गई दुकान के खर्चे ने कर्ज के बोझ तले दबा दिया है। रवि की ही तरह राज्य में हर साल हजारों विद्यार्थी डी फार्मेसी कर उज्ज्वल भविष्य के इंतजार में भटक रहे हैं। सेहत विभाग की नीतियों के कारण डी फार्मेसी करने वालों के भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
सेहत विभाग में फार्मासिस्ट की नो-वकेंसी और दवाइयों के लाइसेंस के लिए नई नीति डी-फार्मेसी करने वालों के पतन का आधार बन चुकी है। माहिर डी-फार्मेसी करने वालों को उज्ज्वल भविष्य के लिए बी या फिर एम फार्मेसी करने की सलाह देते हैं।
स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग के डायरेक्टर डा. अशोक नैय्यर का कहना है कि राज्य में नशे के बढ़ते कदमों को जंजीर डालने के लिए दवाइयों की दुकानों के लिए लाइसेंस जारी करने के लिए नई नीतियां तैयार की गई हैं। इसके कारण डी-फार्मेसी करने वालों के रोजगार पर असर पड़ेगा।
राज्य में आबादी के अनुपात के आधार पर दवा विक्रेताओं की दुकानें काफी अधिक हैं। राज्य में करीब 30 हजार रिटेल व होलसेल लाइसेंस धारक दुकानें चला रहे हैं। इनमें से करीब 22 हजार रिटेल दवा विक्रेता हैं। शहरी इलाकों में पांच हजार आबादी पर एक ड्रग लाइसेंस, देहात में जिस गांव में डिस्पेंसरी हो वहां 1500 की आबादी पर एक लाइसेंस, दस हजार की आबादी पर दो, पीएससी वाले टाउन में 3-5, सीएचसी वाले इलाके में 10 तक ड्रग लाइसेंस जारी करने की नीति लागू की है। वर्तमान में कानून सख्त होने की वजह से लाइसेंस जारी करने की गति थम गई है।

पंजाब स्टेट टेक्निकल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग बोर्ड के रजिस्ट्रार एएस अरुणाचल की मानें तो राज्य में 43 कालेजों से हर साल करीब 1700 विद्यार्थी डी-फार्मेसी करके निकलते हैं। पिछले पांच साल में राज्य में कालेजों की संख्या काफी बढ़ी है परंतु इनमें दाखिला लेने वालों की संख्या स्थिर है। हर साल 70 फीसदी सीटें भर रही है। डी-फार्मेसी करने वाले 50 फीसदी विद्यार्थी बी फार्मेसी के लिए जाते हैं। पंजाब मेडिकल कौंसिल में पिछले साल 1876 विद्यार्थियों ने पंजीकरण करवाया है।
एलपीयू की फार्मेसी विभाग की डीन डा. मोनिका गुलाटी व मेहरचंद पालिटेक्निक कालेज के प्रिंसिपल जगरूप सिंह मानते हैं कि डी-फार्मेसी करने वाले विद्यार्थी सरकार की नीतियों का शिकार हो रहे हैं। इससे होने वाली बेरोजगारी का असर आने वाले समय में अधिक नजर आएगा। उन्होंने कहा कि डी-फार्मेसी करने वालों के निराश होने की जरूरत नहीं है। उन्हें बी-फार्मेसी में सीधा दूसरे साल में दाखिला मिलता है। बी व एम फार्मेसी करने वालों के लिए बड़े संस्थानों में प्रोड्क्शन, आरएंडडी, क्वालिटी कंट्रोल, सेल्ज एंड मार्केटिंग, ड्रग रेगुलेटरी एफेयर्स, दवाइयों के क्लीनिकल ट्रायल तथा फार्मेसी कालेजों में सर्विस कर 11 से 30 हजार रुपये प्रति माह कमा सकते हैं(जगदीश कुमार,दैनिक जागरण,जालंधर,25.6.11)।

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